Chetna Parik, Kaisi Ho - चेतना पारीक, कैसी हो? ट्राम में एक याद - Traam Me Ek Yaad चेतना पारीक, कैसी हो? पहले जैसी हो? कुछ-कुछ ख़ुश कुछ-कुछ उदास कभी देखती तारे कभी देखती घास चेतना पारीक, कैसी दिखती हो? अब भी कविता लिखती हो? तुम्हें मेरी याद न होगी लेकिन मुझे तुम नहीं भूली हो चलती ट्राम में फिर आँखों के आगे झूली हो तुम्हारी क़द-काठी की एक नन्ही-सी, नेक सामने आ खड़ी है तुम्हारी याद उमड़ी है चेतना पारीक, कैसी हो? पहले जैसी हो? आँखों में उतरती है किताब की आग? नाटक में अब भी लेती हो भाग? छूटे नहीं हैं लाइब्रेरी के चक्कर? मुझ-से घुमंतू कवि से होती है कभी टक्कर? अब भी गाती हो गीत, बनाती हो चित्र? अब भी तुम्हारे हैं बहुत-बहुत मित्र? अब भी बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती हो? अब भी जिससे करती हो प्रेम, उसे दाढ़ी रखाती हो? चेतना पारीक, अब भी तुम नन्ही गेंद-सी उल्लास से भरी हो? उतनी ही हरी हो? उतना ही शोर है इस शहर में वैसा ही ट्रैफ़िक जाम है भीड़-भाड़ धक्का-मुक्का ठेल-पेल ताम-झाम है ट्यूब-रेल बन रही चल रही ट्राम है विकल है कलकत्ता दौड़ता अनवरत अविराम है इस महावन में फिर भी एक गौरैए की जगह ख़ाली है ...
|| महाभारत पर रोंगटे खड़े कर देने वाली कविता || || Mahabharata Poem On Arjuna || तलवार, धनुष और पैदल सैनिक कुरुक्षेत्र में खड़े हुए, रक्त पिपासु महारथी इक दूजे सम्मुख अड़े हुए | कई लाख सेना के सम्मुख पांडव पाँच बिचारे थे, एक तरफ थे योद्धा सब, एक तरफ समय के मारे थे | महा-समर की प्रतिक्षा में सारे ताक रहे थे जी, और पार्थ के रथ को केशव स्वयं हाँक रहे थे जी || रणभूमि के सभी नजारे देखन में कुछ खास लगे, माधव ने अर्जुन को देखा, अर्जुन उन्हें उदास लगे | कुरुक्षेत्र का महासमर एक पल में तभी सजा डाला, पांचजन्य उठा कृष्ण ने मुख से लगा बजा डाला | हुआ शंखनाद जैसे ही सब का गर्जन शुरु हुआ, रक्त बिखरना हुआ शुरु और सबका मर्दन शुरु हुआ | कहा कृष्ण ने उठ पार्थ और एक आँख को मीच जड़ा, गाण्डिव पर रख बाणों को प्रत्यंचा को खींच जड़ा | आज दिखा दे रणभूमि में योद्धा की तासीर यहाँ, इस धरती पर कोई नहीं, अर्जुन के जैसा वीर यहाँ || सुनी बात माधव की तो अर्जुन का चेहरा उतर गया, ...