मर्यादित राम - Maryadit Ram | Ram Par Hindi Kavita By Rahul 'Akshat' Sharma - जब बात धर्म की होगी तो कोई वाद सहा ना जाएगा
मर्यादित राम - Maryadit Ram | Ram Par Hindi Kavita Ram Par Hindi Kavita By Rahul 'Akshat' Sharma जब बात धर्म की होगी तो कोई वाद सहा ना जाएगा जब बात करेंगे शस्त्रों से, संवाद सहा ना जाएगा। कितने सर मर कर अज़र अमर, इस धरती से हो गये विहीन ये जीवात्मा मानव की कैसे हो गई कूड़े में विलीन ! जाओ जाकर के पुण्य गिनो, जो प्राण धरा से चले गए, जिनको ना जाना ना जाए, जिनको जाना वे भले गए, अपनी अपनी मक्करी को जाओ जाकर के शून्य करो ईंट से ईंट मिलाओ जाकर थोड़ा सा तुम पुण्य करो ! अब की जो चूक गए मूर्ख, फिर मुझे बसा ना पाओगे जो रूठ गया मैं तुम सब से, फिर मुझे मना ना पाओगे, ना मैं सत्ता अभिलाषी हूँ, ना सत्ता मेरी दासी है ये रघु पुत्र तो जन जन के बस मन मंदिर का वासी है, सृष्टि में जल थल और नभ में मर्यादा का मैं हूँ स्वरूप किसने क्या क्या देखा मूर्ख मैं हूँ देवों का देव रूप ! भरा तत्व का मैं परिचायक हूँ ! मैं पुरषोत्तम हूँ नायक हूँ ! देखा मेरा हृदय निर्मल पावन सी सृष्टि पूर्ण सकल तीनों लोकों में वन्दनीय ना कृत्य करो अब निंदनीय मैंने कब माँगा राज पाठ कब चाहा मैंने ठाट बाट तू देख प्रभंजन अब मेरा अ...