Ye Baar-E-Gham Bhi Uthaya Nahi - ये बार-ए-ग़म भी उठाया नहीं बहुत दिन से Azhar Iqbal Ghazal ये बार-ए-ग़म भी उठाया नहीं बहुत दिन से कि उस ने हम को रुलाया नहीं बहुत दिन से चलो कि ख़ाक उड़ाएँ चलो शराब पिएँ किसी का हिज्र मनाया नहीं बहुत दिन से ये कैफ़ियत है मेरी जान अब तुझे खो कर कि हम ने ख़ुद को भी पाया नहीं बहुत दिन से हर एक शख़्स यहाँ महव-ए-ख़्वाब लगता है किसी ने हम को जगाया नहीं बहुत दिन से ये ख़ौफ़ है कि रगों में लहू न जम जाए तुम्हें गले से लगाया नहीं बहुत दिन से - अज़हर इक़बाल
|| महाभारत पर रोंगटे खड़े कर देने वाली कविता || || Mahabharata Poem On Arjuna || तलवार, धनुष और पैदल सैनिक कुरुक्षेत्र में खड़े हुए, रक्त पिपासु महारथी इक दूजे सम्मुख अड़े हुए | कई लाख सेना के सम्मुख पांडव पाँच बिचारे थे, एक तरफ थे योद्धा सब, एक तरफ समय के मारे थे | महा-समर की प्रतिक्षा में सारे ताक रहे थे जी, और पार्थ के रथ को केशव स्वयं हाँक रहे थे जी || रणभूमि के सभी नजारे देखन में कुछ खास लगे, माधव ने अर्जुन को देखा, अर्जुन उन्हें उदास लगे | कुरुक्षेत्र का महासमर एक पल में तभी सजा डाला, पांचजन्य उठा कृष्ण ने मुख से लगा बजा डाला | हुआ शंखनाद जैसे ही सब का गर्जन शुरु हुआ, रक्त बिखरना हुआ शुरु और सबका मर्दन शुरु हुआ | कहा कृष्ण ने उठ पार्थ और एक आँख को मीच जड़ा, गाण्डिव पर रख बाणों को प्रत्यंचा को खींच जड़ा | आज दिखा दे रणभूमि में योद्धा की तासीर यहाँ, इस धरती पर कोई नहीं, अर्जुन के जैसा वीर यहाँ || सुनी बात माधव की तो अर्जुन का चेहरा उतर गया, एक धनुर्धारी की विद्या मानो चूहा कुतर गया | बोले पार्थ सुनो कान्हा - जितने