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मनुष्यता - Manushyata Poem By Maithilisharan Gupt | विचार लो कि मर्त्य हो

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हेमन्त में बहुधा घनों से पूर्ण रहता व्योम है - Hemant Mein Bahudha Ghanon | Kisaan Poem By मैथिलीशरण गुप्त

हेमन्त में बहुधा घनों से पूर्ण रहता व्योम है - Hemant Mein Bahudha Ghanon Kisaan Poem By मैथिलीशरण गुप्त हेमन्त में बहुधा घनों से पूर्ण रहता व्योम है पावस निशाओं में तथा हँसता शरद का सोम है हो जाये अच्छी भी फसल, पर लाभ कृषकों को कहाँ खाते, खवाई, बीज ऋण से हैं रंगे रक्खे जहाँ आता महाजन के यहाँ वह अन्न सारा अंत में अधपेट खाकर फिर उन्हें है काँपना हेमंत में बरसा रहा है रवि अनल, भूतल तवा सा जल रहा है चल रहा सन सन पवन, तन से पसीना बह रहा देखो कृषक शोषित, सुखाकर हल तथापि चला रहे किस लोभ से इस आँच में, वे निज शरीर जला रहे घनघोर वर्षा हो रही, है गगन गर्जन कर रहा घर से निकलने को गरज कर, वज्र वर्जन कर रहा तो भी कृषक मैदान में करते निरंतर काम हैं किस लोभ से वे आज भी, लेते नहीं विश्राम हैं बाहर निकलना मौत है, आधी अँधेरी रात है है शीत कैसा पड़ रहा, औ’ थरथराता गात है तो भी कृषक ईंधन जलाकर, खेत पर हैं जागते यह लाभ कैसा है, न जिसका मोह अब भी त्यागते सम्प्रति कहाँ क्या हो रहा है, कुछ न उनको ज्ञान है है वायु कैसी चल रही, इसका न कुछ भी ध्यान है मानो भुवन से भिन्न उनका, दूसरा ही लोक है शशि सूर्य हैं फिर

Teachers' Day Par Hindi Kavita | Teachers Ke Liye Kavita - चरन धूर निज सिर धरो

Teachers' Day Par Hindi Kavita | Teachers Ke Liye Kavita चरन धूर निज सिर धरो - Charan Dhoor Nij Sir Dharo चरन धूर निज सिर धरो, सरन गुरु की लेय, तीन लोक की सम्पदा, सहज ही में गुरु देय। सहज ही में गुरु देय चित्त में हर्ष घनेरा, शिवदीन मिले फल मोक्ष, हटे अज्ञान अँधेरा। ज्ञान भक्ति गुरु से मिले, मिले न दूजी ठौर, याते गुरु गोविन्द भज, होकर प्रेम विभोर। राम गुण गायरे।। और न कोई दे सके, ज्ञान भक्ति गुरु देय, शिवदीन धन्य दाता गुरु, बदले ना कछु लेय। बदले ना कछु लेय कीजिये गुरु की सेवा, जन्मा जन्म बहार, गुरु देवन के देवा। गुरु समान तिहूँ लोक में,ना कोई दानी जान, गुरु शरण शरणागति, राखिहैं गुरु भगवान। राम गुण गायरे।। समरथ गुरु गोविन्दजी , और ना समरथ कोय, इक पल में, पल पलक में, ज्ञान दीप दें जोय। ज्ञान दीप दें जोय भक्ति वर दायक गुरुवर , गुरु समुद्र भगवन, सत्य गुरु मानसरोवर । शिवदीन रटे गुरु नाम है, गुरुवर गुण की खानि, गुरु चन्दा सम सीतल, तेज भानु सम जानि। राम गुण गायरे।। शिवदीन राम जोशी चरन धूर निज सिर धरो - Charan Dhoor Nij Sir Dharo

सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो - Safar Mein Dhoop To Hogi Jo Chal Sako To Chalo | Nida Fazli Ghazal

सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो - Safar Mein Dhoop To Hogi Jo Chal Sako To Chalo Nida Fazli Ghazal सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं तुम अपने आप को ख़ुद ही बदल सको तो चलो यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता मुझे गिरा के अगर तुम सँभल सको तो चलो कहीं नहीं कोई सूरज धुआँ धुआँ है फ़ज़ा ख़ुद अपने आप से बाहर निकल सको तो चलो यही है ज़िंदगी कुछ ख़्वाब चंद उम्मीदें इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो - निदा फ़ाज़ली सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो - Safar Mein Dhoop To Hogi Jo Chal Sako To Chalo safar meñ dhoop to hogī jo chal sako to chalo sabhī haiñ bhiiḌ meñ tum bhī nikal sako to chalo kisī ke vāste rāheñ kahāñ badaltī haiñ tum apne aap ko ḳhud hī badal sako to chalo yahāñ kisī ko koī rāsta nahīñ detā mujhe girā ke agar tum sambhal sako to chalo kahīñ nahīñ koī sūraj dhuāñ dhuāñ hai fazā ḳhud apne aap se bāhar nikal sako to chalo yahī hai zindagī kuchh ḳhvāb chand ummīdeñ inhīñ khilaunoñ se tum bhī ba

बे-सबब मुस्कुरा रहा है चाँद - Besabab Muskura Raha Hai Chand | Gulzar Sahab Shayari

बे-सबब मुस्कुरा रहा है चाँद - Besabab Muskura Raha Hai Chand  Gulzar Sahab Shayari बे-सबब मुस्कुरा रहा है चाँद कोई साज़िश छुपा रहा है चाँद  जाने किस की गली से निकला है  झेंपा झेंपा सा आ रहा है चाँद  कितना ग़ाज़ा लगाया है मुँह पर  धूल ही धूल उड़ा रहा है चाँद  कैसा बैठा है छुप के पत्तों में  बाग़बाँ को सता रहा है चाँद  सीधा-सादा उफ़ुक़ से निकला था  सर पे अब चढ़ता जा रहा है चाँद  छू के देखा तो गर्म था माथा  धूप में खेलता रहा है चाँद | - गुलज़ार बे-सबब मुस्कुरा रहा है चाँद - Besabab Muskura Raha Hai Chand Gulzar Sahab Shayari be-sabab muskurā rahā hai chāñd  koī sāzish chhupā rahā hai chāñd  jaane kis kī galī se niklā hai  jheñpā jheñpā sā aa rahā hai chāñd  kitnā ġhāza lagāyā hai muñh par  dhuul hī dhuul uḌā rahā hai chāñd  kaisā baiThā hai chhup ke pattoñ meñ  bāġhbāñ ko satā rahā hai chāñd  sīdhā-sāda ufuq se niklā thā  sar pe ab chaḌhtā jā rahā hai chāñd  chhū ke dekhā to garm thā māthā  dhuup meñ kheltā rahā hai chāñd 

हटो नहीं, डरो नहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो - Sohanlal Dwivedi Ki Motivational Poems In Hindi

बढे़ चलो , बढे़ चलो Sohanlal Dwivedi Ki Motivational Poems In Hindi न हाथ एक शस्त्र हो,  न हाथ एक अस्त्र हो,  न अन्न वीर वस्त्र हो,  हटो नहीं, डरो नहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो । रहे समक्ष हिम- शिखर ,  तुम्हारा प्रण उठे निखर ,  भले ही जाए जन बिखर ,  रुको नहीं, झुको नहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो । घटा घिरी अटूट हो,  अधर में कालकूट हो,  वही सुधा का घूंट हो,  जिये चलो, मरे चलो, बढ़े चलो, बढ़े चलो । गगन उगलता आग हो,  छिड़ा मरण का राग हो, लहू का अपने फाग हो,  अड़ो वहीं, गड़ो वहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो । चलो नई मिसाल हो,  जलो नई मिसाल हो, बढो़ नया कमाल हो, झुको नही, रूको नही, बढ़े चलो, बढ़े चलो । अशेष रक्त तोल दो,  स्वतंत्रता का मोल दो,  कड़ी युगों की खोल दो,  डरो नही, मरो नहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो । – सोहनलाल द्विवेदी Sohanlal Dwivedi Ki Motivational Poems In Hindi

ऐसा ख़ामोश तो मंज़र न फ़ना का होता - Aisa Khamosh To Manzar Na Fanaa Ka Hota | Gulzar

ऐसा ख़ामोश तो मंज़र न फ़ना का होता - Aisa Khamosh To Manzar Na Fanaa Ka Hota Gulzar Sahab Ghazal ऐसा ख़ामोश तो मंज़र न फ़ना का होता  मेरी तस्वीर भी गिरती तो छनाका होता  यूँ भी इक बार तो होता कि समुंदर बहता  कोई एहसास तो दरिया की अना का होता  साँस मौसम की भी कुछ देर को चलने लगती  कोई झोंका तिरी पलकों की हवा का होता  काँच के पार तिरे हाथ नज़र आते हैं  काश ख़ुशबू की तरह रंग हिना का होता  क्यूँ मिरी शक्ल पहन लेता है छुपने के लिए  एक चेहरा कोई अपना भी ख़ुदा का होता | - गुलज़ार ऐसा ख़ामोश तो मंज़र न फ़ना का होता -  Aisa Khamosh To Manzar Na Fanaa Ka Hota Gulzar Sahab Ghazal aisā ḳhāmosh to manzar na fanā kā hotā merī tasvīr bhī girtī to chhanākā hotā yuuñ bhī ik baar to hotā ki samundar bahtā koī ehsās to dariyā kī anā kā hotā saañs mausam kī bhī kuchh der ko chalne lagtī koī jhoñkā tirī palkoñ kī havā kā hotā kāñch ke paar tire haath nazar aate haiñ kaash ḳhushbū kī tarah rañg hinā kā hotā kyuuñ mirī shakl pahan letā hai chhupne ke liye ek chehra koī apnā bhī ḳhudā kā hotā

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महाभारत पर रोंगटे खड़े कर देने वाली हिंदी कविता - Mahabharata Poem On Arjuna

|| महाभारत पर रोंगटे खड़े कर देने वाली कविता || || Mahabharata Poem On Arjuna ||   तलवार, धनुष और पैदल सैनिक कुरुक्षेत्र में खड़े हुए, रक्त पिपासु महारथी इक दूजे सम्मुख अड़े हुए | कई लाख सेना के सम्मुख पांडव पाँच बिचारे थे, एक तरफ थे योद्धा सब, एक तरफ समय के मारे थे | महा-समर की प्रतिक्षा में सारे ताक रहे थे जी, और पार्थ के रथ को केशव स्वयं हाँक रहे थे जी ||    रणभूमि के सभी नजारे देखन में कुछ खास लगे, माधव ने अर्जुन को देखा, अर्जुन उन्हें  उदास लगे | कुरुक्षेत्र का महासमर एक पल में तभी सजा डाला, पांचजन्य  उठा कृष्ण ने मुख से लगा बजा डाला | हुआ शंखनाद जैसे ही सब का गर्जन शुरु हुआ, रक्त बिखरना हुआ शुरु और सबका मर्दन शुरु हुआ | कहा कृष्ण ने उठ पार्थ और एक आँख को मीच जड़ा, गाण्डिव पर रख बाणों को प्रत्यंचा को खींच जड़ा | आज दिखा दे रणभूमि में योद्धा की तासीर यहाँ, इस धरती पर कोई नहीं, अर्जुन के जैसा वीर यहाँ ||    सुनी बात माधव की तो अर्जुन का चेहरा उतर गया, एक धनुर्धारी की विद्या मानो चूहा कुतर गया | बोले पार्थ सुनो कान्हा - जितने

अरे! रणभूमि में छल करते हो, तुम कैसे भगवान हुए ! | Karna Par Hindi Kavita | Ranbhoomi Me Chhal Karte

अरे! रणभूमि में छल करते हो, तुम कैसे भगवान हुए ! || Karna Par Hindi Kavita || || Poem On Karna || अरे! रणभूमि में छल करते हो, तुम कैसे भगवान हुए ! | Karna Par Hindi Kavita | Ranbhoomi Me Chhal Karte सारा जीवन श्रापित-श्रापित , हर रिश्ता बेनाम कहो, मुझको ही छलने के खातिर मुरली वाले श्याम कहो, तो किसे लिखूं मैं प्रेम की पाती, किसे लिखूं मैं प्रेम की पाती, कैसे-कैसे इंसान हुए, अरे! रणभूमि में छल करते हो, तुम कैसे भगवान हुए ! अरे! रणभूमि में छल करते हो, तुम कैसे भगवान हुए ! | Karna Par Hindi Kavita | Ranbhoomi Me Chhal Karte || माँ को कर्ण लिखता है || अरे! रणभूमि में छल करते हो, तुम कैसे भगवान हुए ! | Karna Par Hindi Kavita | Ranbhoomi Me Chhal Karte कि मन कहता है, मन करता है, कुछ तो माँ के नाम लिखूं , एक मेरी जननी को लिख दूँ, एक धरती के नाम लिखूं , प्रश्न बड़ा है मौन खड़ा - धरती संताप नहीं देती, और धरती मेरी माँ होती तो , मुझको श्राप नहीं देती | तो जननी माँ को वचन दिया है, जननी माँ को वचन दिया है, पांडव का काल नहीं हूँ मैं, अरे! जो बेटा गंगा में छोड़े, उस कुंती का लाल नहीं हूँ

अरे! खुद को ईश्वर कहते हो तो जल्दी अपना नाम बताओ | Mahabharata Par Kavita

अरे! खुद को ईश्वर कहते हो तो जल्दी अपना नाम बताओ  || Mahabharata Par Kavita ||   तलवार, धनुष और पैदल सैनिक   कुरुक्षेत्र में खड़े हुए, रक्त पिपासु महारथी  इक दूजे सम्मुख अड़े हुए | कई लाख सेना के सम्मुख पांडव पाँच बिचारे थे, एक तरफ थे योद्धा सब, एक तरफ समय के मारे थे | महा-समर की  प्रतिक्षा  में सारे ताक रहे थे जी, और पार्थ के रथ को केशव स्वयं  हाँक  रहे थे जी ||    रणभूमि के सभी नजारे  देखन  में कुछ खास लगे, माधव ने अर्जुन को देखा, अर्जुन उन्हें  उदास  लगे | कुरुक्षेत्र का  महासमर  एक पल में तभी सजा डाला, पांचजन्य  उठा कृष्ण ने मुख से लगा बजा डाला | हुआ  शंखनाद  जैसे ही सब का गर्जन शुरु हुआ, रक्त बिखरना हुआ शुरु और सबका  मर्दन   शुरु हुआ | कहा कृष्ण ने उठ पार्थ और एक आँख को  मीच  जड़ा, गाण्डिव   पर रख बाणों को प्रत्यंचा को खींच जड़ा | आज दिखा दे रणभूमि में योद्धा की  तासीर  यहाँ, इस धरती पर कोई नहीं, अर्जुन के जैसा वीर यहाँ ||    सुनी बात माधव की तो अर्जुन का चेहरा उतर गया, एक  धनुर्धारी  की विद्या मानो चूहा कुतर गया | बोले पार्थ सुनो कान्हा - जितने ये सम्मुख खड़े हुए है, हम तो इन से सीख-स

अरे ! कान खोल कर सुनो पार्थ Lyrics In Hindi - Mahabharata Poem On Arjuna

अरे ! कान खोल कर सुनो पार्थ Lyrics In Hindi Mahabharata Poem On Arjuna अरे ! कान खोल कर सुनो पार्थ Lyrics In Hindi - Mahabharata Poem On Arjuna तलवार,धनुष और पैदल सैनिक  कुरुक्षेत्र मे खड़े हुये, रक्त पिपासू महारथी  इक दूजे सम्मुख अड़े हुये | कई लाख सेना के सम्मुख पांडव पाँच बिचारे थे, एक तरफ थे योद्धा सब, एक तरफ समय के मारे थे | महासमर की  प्रतिक्षा  में सारे टाँक रहे थे जी, और पार्थ के रथ को केशव स्वयं  हाँक  रहे थे जी ||    रणभूमि के सभी नजारे  देखने में कुछ खास लगे, माधव ने अर्जुन को देखा, अर्जुन उन्हें  उदास  लगे | कुरुक्षेत्र का  महासमर  एक पल में तभी सजा डाला, पाञ्चजन्य  उठा कृष्ण ने मुख से लगा बजा डाला | हुआ  शंखनाद  जैसे ही सबका गर्जन शुरु हुआ, रक्त बिखरना हुआ शुरु और सबका  मर्दन  शुरु हुआ | कहा कृष्ण ने उठ पार्थ और एक आँख को  मीच  जड़ा, गाण्डिव  पर रख बाणों को प्रत्यंचा को खींच जड़ा | आज दिखा दे रणभूमि में योद्धा की  तासीर  यहाँ, इस धरती पर कोई नहीं, अर्जुन के जैसा वीर यहाँ ||   अरे ! कान खोल कर सुनो पार्थ Lyrics In Hindi - Mahabharata Poem On Arjuna सुनी बात माधव की तो अर्जु

Kahani Karn Ki Poem Lyrics By Abhi Munde (Psycho Shayar) | कहानी कर्ण की - Karna Par Hindi Kavita

Kahani Karn Ki Poem Lyrics By Psycho Shayar   कहानी कर्ण की - Karna Par Hindi Kavita पांडवों  को तुम रखो, मैं  कौरवों की भी ड़ से , तिलक-शिकस्त के बीच में जो टूटे ना वो रीड़ मैं | सूरज का अंश हो के फिर भी हूँ अछूत मैं , आर्यवर्त को जीत ले ऐसा हूँ सूत पूत मैं |   कुंती पुत्र हूँ, मगर न हूँ उसी को प्रिय मैं, इंद्र मांगे भीख जिससे ऐसा हूँ क्षत्रिय मैं ||   कुंती पुत्र हूँ, मगर न हूँ उसी को प्रिय मैं, इंद्र मांगे भीख जिससे ऐसा हूँ क्षत्रिय मैं ||   आओ मैं बताऊँ महाभारत के सारे पात्र ये, भोले की सारी लीला थी किशन के हाथ सूत्र थे | बलशाली बताया जिसे सारे राजपुत्र थे, काबिल दिखाया बस लोगों को ऊँची गोत्र के ||   सोने को पिघलाकर डाला शोन तेरे कंठ में , नीची जाती हो के किया वेद का पठंतु ने | यही था गुनाह तेरा, तू सारथी का अंश था, तो क्यों छिपे मेरे पीछे, मैं भी उसी का वंश था ?   यही था गुनाह तेरा, तू सारथी का अंश था, तो क्यों छिपे मेरे पीछे, मैं भी उसी का वंश था ? ऊँच-नीच की ये जड़ वो अहंकारी द्रोण था, वीरों की उसकी सूची में, अर्जुन के सिवा कौन था ? माना था माधव को वीर, तो क्यों डरा एकल

कृष्ण की चेतावनी - KRISHNA KI CHETAWANI | रश्मिरथी - रामधारी सिंह " दिनकर " | Mahabharata Poems |

|| कृष्ण की चेतावनी - KRISHNA KI CHETAWANI || || रश्मिरथी - रामधारी सिंह " दिनकर " || | MAHABHARATA POEMS | | MAHABHARATA POEMS IN HINDI | Krishna Ki Chetawani - कृष्ण की चेतावनी वर्षों तक वन में घूम-घूम, बाधा-विघ्नों को चूम-चूम, सह धूप - घाम , पानी-पत्थर, पांडव आये कुछ और निखर । सौभाग्य न सब दिन सोता है, देखें, आगे क्या होता है || Krishna Ki Chetawani - कृष्ण की चेतावनी मैत्री की राह बताने को, सबको सुमार्ग पर लाने को, दुर्योधन को समझाने को, भीषण विध्वंस बचाने को, भगवान हस्तिनापुर आये, पांडव का संदेशा लाये || Krishna Ki Chetawani - कृष्ण की चेतावनी दो न्याय, अगर तो, आधा दो, पर, इसमें भी यदि बाधा हो, तो दे दो केवल पाँच ग्राम , रखों अपनी धरती तमाम | हम वहीं खुशी से खायेंगे, परिजन पर असि न उठायेंगे !! दुर्योधन वह भी दे ना सका, आशीष समाज की ले न सका, उलटे, हरि को बाँधने चला, जो था असाध्य , साधने चला। जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है ||   जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है || Krishna Ki Chetawani - कृष्ण की चेतावनी हरि ने भ

सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है - Sach Hai Vipatti Jab Aati Hai

  सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है रामधारी सिंह "दिनकर" हिंदी कविता दिनकर की हिंदी कविता   सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है, शूरमा नहीं विचलित होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते, विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं। मुख से न कभी उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं, जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग-निरत नित रहते हैं, शूलों का मूल नसाने को, बढ़ खुद विपत्ति पर छाने को। है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके वीर नर के मग में ? खम ठोंक ठेलता है जब नर , पर्वत के जाते पाँव उखड़। मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है । गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर, मेंहदी में जैसे लाली हो, वर्तिका-बीच उजियाली हो। बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है। पीसा जाता जब इक्षु-दण्ड , झरती रस की धारा अखण्ड , मेंहदी जब सहती है प्रहार, बनती ललनाओं का सिंगार। जब फूल पिरोये जाते हैं, हम उनको गले लगाते हैं। वसुधा का नेता कौन हुआ? भूखण्ड-विजेता कौन हुआ ? अतुलित यश क्रेता कौन हुआ? नव-धर्म प्रणेता कौन हुआ ? जिसने न कभी आराम किया, विघ्नों में रहकर ना

Dar Pe Sudama Garib Aa Gaya Hai Lyrics | दर पे सुदामा गरीब आ गया है

Dar Pe Sudama Garib Aa Gaya Hai Lyrics दर पे सुदामा गरीब आ गया है  लिरिक्स देखो देखो ये गरीबी, ये गरीबी का हाल । कृष्ण के दर पे, विश्वास लेके आया हूँ ।। मेरे बचपन का यार है, मेरा श्याम । यही सोच कर मैं, आस कर के आया हूँ ।। अरे द्वारपालों, कन्हैया से कह दो । अरे द्वारपालों, कन्हैया से कह दो ।। के दर पे सुदामा, गरीब आ गया है । के दर पे सुदामा, गरीब आ गया है ।। भटकते भटकते, ना जाने कहां से । भटकते भटकते, ना जाने कहां से ।। तुम्हारे महल के, करीब आ गया है । तुम्हारे महल के, करीब आ गया है ।। ना सर पे है पगड़ी, ना तन पे हैं जामा । बता दो कन्हैया को, नाम है सुदामा ।। Dar Pe Sudama Garib Aa Gaya Hai Lyrics दर पे सुदामा गरीब आ गया है  लिरिक्स बता दो कन्हैया को, नाम है सुदामा । बता दो कन्हैया को, नाम है सुदामा ।। ना सर पे है पगड़ी, ना तन पे हैं जामा । बता दो कन्हैया को, नाम है सुदामा ।। हो..ना सर पे है पगड़ी, ना तन पे हैं जामा । बता दो कन्हैया को, नाम है सुदामा ।। बता दो कन्हैया को । नाम है सुदामा ।। इक बार मोहन, से जाकर के कह दो । तुम इक बार मोहन, से जाकर के कह दो ।। के मिलने सखा, बदनसीब आ गया है ।

सादगी तो हमारी जरा देखिये | Saadgi To Hamari Zara Dekhiye Lyrics | Nusrat Fateh Ali Khan Sahab

Saadgi To Hamari Zara Dekhiye Lyrics सादगी तो हमारी जरा देखिये   सादगी तो हमारी जरा देखिये,  एतबार आपके वादे पे कर लिया | मस्ती में इक हसीं को ख़ुदा कह गए हैं हम,  जो कुछ भी कह गए वज़ा कह गए हैं हम  || बारस्तगी तो देखो हमारे खुलूश कि,  किस सादगी से तुमको ख़ुदा कह गए हैं हम || किस शौक किस तमन्ना किस दर्ज़ा सादगी से,  हम करते हैं आपकी शिकायत आपही से || तेरे अताब के रूदाद हो गए हैं हम,  बड़े खलूस से बर्बाद हो गए हैं हम ||

अग्निपथ (Agneepath) - हरिवंश राय बच्चन | Agnipath Poem By Harivansh Rai Bachchan

अग्निपथ - हरिवंश राय बच्चन  Agnipath Poem By Harivansh Rai Bachchan वृक्ष हों भले खड़े, हों घने हों बड़े, एक पत्र छाँह भी, माँग मत, माँग मत, माँग मत, अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ । अग्निपथ(Agneepath) - हरिवंश राय बच्चन | Agnipath Poem By Harivansh Rai Bachchan तू न थकेगा कभी, तू न रुकेगा कभी, तू न मुड़ेगा कभी, कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ, अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ । अग्निपथ(Agneepath) - हरिवंश राय बच्चन | Agnipath Poem By Harivansh Rai Bachchan यह महान दृश्य है, चल रहा मनुष्य है, अश्रु श्वेत रक्त से, लथपथ लथपथ लथपथ, अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ । Agneepath Poem By Harivansh Rai Bachchan Agneepath Poem In Hinglish Vriksh hon bhale khade, hon ghane hon bade, Ek patra chhah bhi maang mat, maang mat, maang mat, Agnipath, Agnipath, Agnipath. Tu na thakega kabhi tu na thamega kabhi tu na mudega kabhi, Kar shapath, Kar shapath, Kar shapath, Agnipath, Agnipath, Agnipath. अग्निपथ(Agneepath) - हरिवंश राय बच्चन | Agnipath Poem By Harivansh Rai Bachchan Ye Mahaan Drishya hai, Chal raha Manushya hai, Ashru, swed,