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Auratein - औरतें By रमाशंकर यादव विद्रोही | Women Empowerment Poems

महाभारत पर रोंगटे खड़े कर देने वाली हिंदी कविता - Mahabharata Poem On Arjuna

 
|| महाभारत पर रोंगटे खड़े कर देने वाली कविता ||  || Mahabharata Poem On Arjuna ||

तलवार, धनुष और पैदल सैनिक कुरुक्षेत्र में खड़े हुए,
रक्त पिपासु महारथी इक दूजे सम्मुख अड़े हुए |
कई लाख सेना के सम्मुख पांडव पाँच बिचारे थे,
एक तरफ थे योद्धा सब, एक तरफ समय के मारे थे |
महा-समर की प्रतिक्षा में सारे ताक रहे थे जी,
और पार्थ के रथ को केशव स्वयं हाँक रहे थे जी || 

 
रणभूमि के सभी नजारे देखन में कुछ खास लगे,
माधव ने अर्जुन को देखा, अर्जुन उन्हें उदास लगे |
कुरुक्षेत्र का महासमर एक पल में तभी सजा डाला,
पांचजन्य उठा कृष्ण ने मुख से लगा बजा डाला |
हुआ शंखनाद जैसे ही सब का गर्जन शुरु हुआ,
रक्त बिखरना हुआ शुरु और सबका मर्दन शुरु हुआ |
कहा कृष्ण ने उठ पार्थ और एक आँख को मीच जड़ा,
गाण्डिव पर रख बाणों को प्रत्यंचा को खींच जड़ा |
आज दिखा दे रणभूमि में योद्धा की तासीर यहाँ,
इस धरती पर कोई नहीं, अर्जुन के जैसा वीर यहाँ || 

 

|| महाभारत पर रोंगटे खड़े कर देने वाली कविता ||  || Mahabharata Poem On Arjuna ||


सुनी बात माधव की तो अर्जुन का चेहरा उतर गया,
एक धनुर्धारी की विद्या मानो चूहा कुतर गया |
बोले पार्थ सुनो कान्हा - जितने ये सम्मुख खड़े हुए है,
हम तो इन से सीख-सीख कर सारे भाई बड़े हुए है |
इधर खड़े बाबा भीष्म ने मुझको गोद खिलाया है,
गुरु द्रोण ने धनुष-बाण का सारा ग्यान सिखाया है |
सभी भाई पर प्यार लुटाया कुंती मात हमारी ने,
कमी कोई नहीं छोड़ी थी, प्रभू माता गांधारी ने |
ये जितने गुरुजन खड़े हुए है सभी पूजने लायक है, 
माना दुर्योधन दुसासन थोड़े से नालायक है |
मैं अपराध दुःशासन करता हूँ, बेशक हम ही छोटे है,
ये जैसे भी है आखिर माधव, सब ताऊ के बेटे है ||
 
छोटे से भू-भाग की खातिर हिंसक नहीं बनूंगा मैं,
 
छोटे से भू-भाग की खातिर हिंसक नहीं बनूंगा मैं |

स्वर्ण ताककर अपने कुल का विध्वंसक नहीं बनूंगा मैं,
खून सने हाथों को होता, राज-भोग अधिकार नहीं |
परिवार मार कर गद्दी मिले तो सिंहासन स्वीकार नहीं,
रथ पर बैठ गया अर्जुन, मुँह माधव से मोड़ दिया,
आँखों में आँसू भरकर गाण्डिव हाथ से छोड़ दिया ||

 
गाण्डिव हाथ से जब छुटा माधव भी कुछ अकुलाए थे,
शिष्य पार्थ पर गर्व हुआ, और मन ही मन हर्षाए थे |
मन में सोच लिया अर्जुन की बुद्धि ना सटने दूंगा,
समर भूमि में पार्थ को कमजोर नहीं पड़ने दूंगा |
धर्म बचाने की खातिर इक नव अभियान शुरु हुआ,
उसके बाद जगत गुरु का गीता ग्यान शुरु हुआ ||

|| महाभारत पर रोंगटे खड़े कर देने वाली कविता ||  || Mahabharata Poem On Arjuna ||

Mahabharata Poem On Arjuna

Mahabharata Par Hindi Kavita

 

एक नजर ! एक नजर ! एक नजर ! एक नजर !
एक नजर में, रणभूमि के कण-कण डोल गये माधव,
टक-टकी बांधकर देखा अर्जुन एकदम बोल गये माधव -
हे! पार्थ मुझे पहले बतलाते मैं संवाद नहीं करता,

पार्थ मुझे पहले बतलाते मैं संवाद नहीं करता |
तुम सारे भाइयों की खातिर कोई विवाद नहीं करता,
पांचाली के तन पर लिपटी साड़ी खींच रहे थे वो,
दोषी वो भी उतने ही है जबड़ा भिंच रहे थे जो |
घर की इज्जत तड़प रही कोई दो टूक नहीं बोले,
पौत्र बहू को नग्न देखकर गंगा पुत्र नहीं खौले |

पौत्र बहू को नग्न देखकर गंगा पुत्र नहीं खौले |

|| महाभारत पर रोंगटे खड़े कर देने वाली कविता ||  || Mahabharata Poem On Arjuna ||

तुम कायर बन कर बैठे हो ये पार्थ बड़ी बेशर्मी है,
संबंध उन्हीं से निभा रहे जो लोग यहाँ अधर्मी है |
धर्म के ऊपर यहाँ आज भारी संकट है खड़ा हुआ,
और तेरा गांडीव पार्थ, रथ के कोने में पड़ा हुआ |
धर्म पे संकट के बादल तुम छाने कैसे देते हो,
कायरता के भाव को मन में आने कैसे देते हो |
 
हे पांडू के पुत्र !
हे पांडू के पुत्र !

  धर्म का कैसा कर्ज उतारा है,
शोले होने थे !
शोले होने थे ! शोले होने थे !

 आँखो में, पर बहती जल धारा है ||

 
गाण्डिव उठाने में पार्थ जितनी भी देर यहाँ होगी,
इंद्रप्रस्थ के राज भवन में उतनी अंधेर वहाँ होगी |
अधर्म-धर्म की गहराई में खुद को नाप रहा अर्जुन,
अश्रुधार फिर तेज हुई और थर-थर काँप रहा अर्जुन | 

 

हे केशव ! ये रक्त स्वयं का पीना नहीं सरल होगा,
और विजय यदि हुए हम जीना नहीं
सरल होगा |

 
हे माधव ! मुझे बतलाओ कुल नाशक कैसे बन जाऊँ,
रख सिंहासन लाशों पर मैं, शासक कैसे बन जाऊँ |
कैसे उठेंगे कर उन पर जो कर पर अधर लगाते हैं?
करने को जिनका स्वागत, ये कर भी स्वयं जुड़ जाते है |
इन्हीं करो ने बाल्य-काल में सब के पैर दबाये है,
इन्हीं करो को पकड़ करो में, पितामह मुस्काये है |
अपनी बाणों की नोक जो इनकी ओर करूंगा मैं,
केशव मुझको मृत्यु दे दो उससे पूर्व मरूंगा मैं || 


|| महाभारत पर रोंगटे खड़े कर देने वाली कविता ||  || Mahabharata Poem On Arjuna ||

|| Mahabharata Poem On Arjuna ||

|| Mahabharata Par Hindi Kavita || 

 

बाद युद्ध के मुझे ना कुछ भी पास दिखाई देता है,
माधव ! इस रणभूमि में, बस नाश दिखाई देता है |

 
बात बहुत भावुक थी किंतु जगत गुरु मुस्काते थे,
और ग्यान की गंगा निरंतर चक्रधारी बरसाते थे |
जन्म-मरण की यहाँ योद्धा बिल्कुल चाह नहीं करते,
क्या होगा अंजाम युद्ध का ये परवाह नहीं करते,
पार्थ ! यहाँ कुछ मत सोचो बस कर्म में ध्यान लगाओ तुम !
बाद युद्ध के क्या होगा ये मत अनुमान लगाओ तुम,
इस दुनिया के रक्तपात में कोई तो अहसास नहीं |
निज-जीवन का करें फैसला नर के बस की बात नहीं,
तुम ना जीवन देने वाले नहीं मारने वाले हो |
ना जीत तुम्हारे हाथों में, तुम नहीं हारने वाले हो,
ये जीवन दीपक की भांति, यूं ही चलता रहता है |
पवन वेग से बुझ जाता है, वरना जलता रहता है,

मानव वश में शेष नहीं कुछ, फिर भी मानव डरता है,
वह मर कर भी अमर हुआ,

जो धर्म की खातिर मरता है ||

|| महाभारत पर रोंगटे खड़े कर देने वाली कविता ||  || Mahabharata Poem On Arjuna ||
 
ना सत्ता सुख से होता है, ना सम्मानों से होता है,
जीवन का सार सफल केवल, बस बलिदानों से होता है |

देह-दान योद्धा ही करते है, ना कोई दूजा जाता है,
रणभूमि में वीर मरे तो शव भी पूजा जाता है ||

 
योद्धा की प्रव्रत्ति जैसे खोटे शस्त्र बदलती है,
वैसे मानव की दिव्य आत्मा दैहिक वस्त्र बदलती है |

कान्हा तो सादा नर को मन के उदगार बताते थे,
इस दुनिया के खातिर ही गीता का सार बताते थे |
हे केशव ! कुछ तो समझ गया, पर कुछ-कुछ असमंजस में हूँ,
इतना समझ गया की मैं न स्वयं के वश में हूँ | 

हे माधव ! मुझे बतलाओ कुल नाशक कैसे बन जाऊँ,
रख सिंहासन लाशों पर, मैं शासक कैसे बन जाऊँ |

 ये मान और सम्मान बताओ जीवन के अपमान बताओ,
जीवन मृत्यु क्या है माधव?

रण में जीवन दान बताओ
काम, क्रोध की बात कही मुझको उत्तम काम बताओ,
अरे! खुद को ईश्वर कहते हो तो जल्दी अपना नाम बताओ |

 

|| महाभारत पर रोंगटे खड़े कर देने वाली कविता ||  || Mahabharata Poem On Arjuna ||

|| Mahabharata Poem On Arjuna ||

|| Mahabharata Par Hindi Kavita ||


इतना सुनते ही माधव का धीरज पूरा डोल गया,
तीन लोक का स्वामी फिर बेहद गुस्से में बोल गया -

 

सारे सृष्टि को भगवन बेहद गुस्से में लाल दिखे,
देवलोक के देव डरे सब को माधव में काल दिखे |

अरे ! कान खोल कर सुनो पार्थ मैं ही त्रेता का राम हूँ |
कृष्ण मुझे सब कहता है, मैं द्वापर का घनश्याम हूँ ||
रुप कभी नारी का धरकर मैं ही केश बदलता हूँ |
धर्म बचाने की खातिर, मैं अनगिन वेष बदलता हूँ |
विष्णु जी का दशम रुप मैं परशुराम मतवाला हूँ ||
नाग कालिया के फन पे मैं मर्दन करने वाला हूँ |
बाँकासुर और महिषासुर को मैंने जिंदा गाड़ दिया ||
नरसिंह बन कर धर्म की खातिर हिरण्यकश्यप फाड़ दिया |
रथ नहीं तनिक भी चलता है, बस मैं ही आगे बढता हूँ |
गाण्डिव हाथ में तेरे है, पर रणभूमि में मैं लड़ता हूँ ||

इतना कहकर मौन हुए, खुद ही खुद सकुचाये केशव,
पलक झपकते ही अपने दिव्य रूप में आये केशव | 

दिव्य रूप मेरे केशव का सबसे अलग दमकता था,
कई लाख सूरज जितना चेरे पर तेज़ चमकता था |
इतने ऊँचे थे भगवन सर में अम्बर लगता था,
और हज़ारों भुजा देख अर्जुन को डर लगता था ||

 

माँ गंगा का पावन जल उनके कदमों को चूम रहा था,
और तर्जनी ऊँगली में भी चक्र सुदर्शन घूम रहा था |
नदियों की कल कल सागर का शोर सुनाई देता था,
केशव के अंदर पूरा ब्रम्हांड दिखाई देता था ||

 
जैसे ही मेरे माधव का कद थोड़ा-सा
बड़ा हुआ,
सहमा-सहमासा था अर्जुन एक-दम रथ से खड़ा हुआ |
माँ गीता के ग्यान से सीधे ह्रदय पर प्रहार हुआ,
मृत्यु के आलिंगन हेतु फिर अर्जुन तैयार हुआ ||

मैं धर्म भुजा का वाहक हूँ, कोई मुझको मार नहीं सकता |
जिसके रथ पर भगवन हो वो युद्ध हारे नहीं सकता ||

 
जितने यहाँ अधर्मी है चुन-चुनकर उन्हें सजा दूंगा,
इतना रक्त बहाऊंगा धरती की प्यास बुझा दूंगा||

|| महाभारत पर रोंगटे खड़े कर देने वाली कविता ||  || Mahabharata Poem On Arjuna ||
 
अर्जुन की आंखों में धर्म का राज दिखाई देता था,
पार्थ में केशव को बस यमराज दिखाई देता था |
रण में जाने से पहले उसने एक काम किया,
चरणों में रखा शीश अर्जुन ने, केशव को प्रणाम किया |

जिधर चले बाण पार्थ के सब पीछे हट जाते थे,
रणभूमि के कोने-कोने लाशों से पट जाते थे |
कुरुक्षेत्र की भूमि पे नाच नचाया अर्जुन ने,
साड़ी धरती लाल हुई कोहराम मचाया अर्जुन ने |
बड़े-बड़े महारथियों को भी नानी याद दिलाई थी,
मृत्यु का वो तांडव था जो मृत्यु भी घबराई थी ||
 
ऐसा लगता था सब को मृत्यु से प्यार हुआ है जी !
ऐसा धर्मयुद्ध दुनिया में पहली बार हुआ है जी !!
 
अधर्म समूचा नष्ट किया पार्थ ने कसम निभाई थी,
इन्द्रप्रस्ठ  के राजभवन पर धर्म भुजा लहराई थी |
धर्मराज के शीश के ऊपर राज मुकुट की छाया थी,
पर सारी दुनिया जानती थी ये बस केशव की माया थी ||
धर्म किया स्थापित जिसने दाता दया निधान की जय !
हाथ उठा कर सारे बोलो चक्रधारी भगवान की जय !!

 

- Amit Sharma 




Mahabharata Poem On Arjuna

Mahabharata Par Hindi Kavita


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Saadgi To Hamari Zara Dekhiye Lyrics सादगी तो हमारी जरा देखिये   सादगी तो हमारी जरा देखिये,  एतबार आपके वादे पे कर लिया | मस्ती में इक हसीं को ख़ुदा कह गए हैं हम,  जो कुछ भी कह गए वज़ा कह गए हैं हम  || बारस्तगी तो देखो हमारे खुलूश कि,  किस सादगी से तुमको ख़ुदा कह गए हैं हम || किस शौक किस तमन्ना किस दर्ज़ा सादगी से,  हम करते हैं आपकी शिकायत आपही से || तेरे अताब के रूदाद हो गए हैं हम,  बड़े खलूस से बर्बाद हो गए हैं हम ||

Aadmi Chutiya Hai Song Lyrics - फूलों की लाशों में ताजगी चाहता है, आदमी चूतिया है | Rahgir Song Lyrics

Aadmi Chutiya Hai Song Lyrics फूलों की लाशों में ताजगी चाहता है, आदमी चूतिया है फूलों की लाशों में ताजगी चाहता है फूलों की लाशों में ताजगी ताजगी चाहता है आदमी चूतिया है, कुछ भी चाहता है फूलों की लाशों में ज़िंदा है तो आसमान में उड़ने की ज़िद है ज़िंदा है तो आसमान में उड़ने की ज़िद है मर जाए तो मर जाए तो सड़ने को ज़मीं चाहता है आदमी चूतिया है काट के सारे झाड़-वाड़, मकाँ मकाँ बना लिया खेत में सीमेंट बिछा कर ज़मीं सजा दी, मार के कीड़े रेत में काट के सारे झाड़-वाड़, मकाँ बना लिया खेत में सीमेंट बिछा कर ज़मीं सजा दी, मार के कीड़े रेत में लगा के परदे चारों ओर क़ैद है चार दीवारी में मिट्टी को छूने नहीं देता, मस्त है किसी खुमारी में मस्त है किसी खुमारी में और वो ही बंदा अपने घर के आगे आगे नदी चाहता है आदमी चूतिया है टाँग के बस्ता, उठा के तंबू जाए दूर पहाड़ों में वहाँ भी डीजे, दारू, मस्ती, चाहे शहर उजाड़ों में टाँग के बस्ता, उठा के तंबू जाए दूर पहाड़ों में वहाँ भी डीजे, दारू, मस्ती, चाहे शहर उजाड़ों में फ़िर शहर बुलाए उसको तो जाता है छोड़ तबाही पीछे कुदरत को कर दाग़दार सा, छोड़ के अपनी स्याही पीछे छोड़ के अपनी स्याही ...