जब हम हिंदी साहित्य में राम को देखते हैं, तो एक गहरा प्रश्न जन्म लेता है—क्या राम अपनी शक्तियों के कारण ईश्वर थे, या अपनी पीड़ा और संघर्षों को सहकर वे 'पुरुषोत्तम' बने?
साहित्यशाला पर प्रस्तुत है हर्ष नाथ झा की एक नई और मर्मस्पर्शी रचना "वो मेरे सम इंसान हुए"। यह केवल एक Lord Ram Hindi Poem on Struggle नहीं है, बल्कि यह उस यात्रा का दर्शन है जो एक राजकुमार को वनवासी और अंततः भगवान बनाती है। आधुनिक हिंदी कविता में ऐसा संतुलन दुर्लभ है, जहाँ भक्ति और यथार्थवाद (Realism) एक साथ चलें।
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| हर्ष नाथ झा की कविता ‘वो मेरे सम इंसान हुए’ के संघर्ष-आधारित भाव को दर्शाता भगवान राम का युद्ध दृश्य |
नीचे प्रस्तुत कविता राम के उस स्वरूप को उजागर करती है जो मुकुट पहनने से नहीं, बल्कि वन में नंगे पाँव चलने से निखरा।
‘वो मेरे सम इंसान हुए कविता’ आधुनिक हिंदी में राम के मानवीय रूप को सबसे स्पष्ट और संवेदनशील ढंग से प्रस्तुत करती है।
मूल कविता: “वो मेरे सम इंसान हुए”
(रचनाकार: हर्ष नाथ झा)
जो क्रोधित और शंकाकुल हों,
वो मेरे ही तो समान हुए।
संघर्षों से निकले भगवान,
तब पुरुषोत्तम राम हुए।
थी नियति जानी, आज्ञा मानी,
राज-पाठ से विरक्त हुए।
स्थिर नयन और मंदहास्य,
बस माताओं के पाँव छुए।
पुत्रधर्म का पालन कर वो
रघुकुल की पहचान हुए।
जो हर संकट में मुस्कुराएँ,
वो राम मेरे प्रतिमान हुए।
संघर्षों से निकले भगवान,
तब पुरुषोत्तम राम हुए।
भटके वर्षों-वर्ष वनों में,
आखिर वे कैसे भगवान हुए?
भूख-प्यास और
पैर में छाले—
वो मेरे सम इंसान हुए।
अपहृत है पत्नी, शत्रु बली है,
कष्ट उन्हें अविराम हुए।
ग्रहण भेद कर चमके गगन में,
राम नवीन दिनमान हुए।
बहे अश्रु और व्याकुल हों जो,
वो मेरे सम इंसान हुए।
संघर्षों से लड़कर भगवान,
तब पुरुषोत्तम राम हुए।
हँसकर पीड़ा सही उन्होंने,
वो ख़ुद कितने महान हुए।
संघर्षों से लड़कर भगवान,
तब पुरुषोत्तम राम हुए।
कविता का भाव और संदेश (Theme & Message)
इस कविता का मर्म समझने के लिए हमें इसे राम की 'मानवीयता' और 'देवत्व' के तराजू पर तोलना होगा।
1. “वो मेरे सम इंसान हुए” — ईश्वर का मानवीय चेहरा
कविता की पहली ही पंक्ति एक क्रांतिकारी विचार रखती है। कवि कहते हैं कि राम मनुष्यों के समान भावनाओं वाले हैं—उन्हें क्रोध आता है, वे शंका करते हैं, वे थकते हैं। धर्मग्रंथों में भी ऐसे संदर्भ अनेक बार आते हैं (जैसे वाल्मीकि रामायण में समुद्र पर क्रोध या सीताहरण पर शोक)। राम का यह रूप उन्हें हमसे जोड़ता है।
यदि आप हिंदी साहित्य में कृष्ण को देखें, तो वे लीला करते हैं, लेकिन राम मर्यादा में रहकर कष्ट भोगते हैं।
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| हर्ष नाथ झा की नई कविता ‘वो मेरे सम इंसान हुए’ के लिए शीर्षक चित्र। |
2. "भूख-प्यास और पैर में छाले" — संघर्ष ही देवत्व की नींव है
राम का वनवास केवल एक राजनीतिक घटनाक्रम नहीं, बल्कि चरित्र-निर्माण की प्रक्रिया थी।
"भटके वर्षों-वर्ष वनों में, आखिर वे कैसे भगवान हुए?"
यह रचना स्पष्ट करती है कि महानता का जन्म महलों में नहीं, बल्कि वन के कांटों और पैरों के छालों से होता है।
यह संघर्ष वही तप है जिसे हम कर्ण के जीवन और उन पर लिखी कविताओं में भी अनुभव करते हैं—जहाँ विपरीत परिस्थितियां ही एक योद्धा को परिभाषित करती हैं।
3. वियोग और प्रेम: सीता और राम का त्याग
"अपहृत है पत्नी, शत्रु बली है, कष्ट उन्हें अविराम हुए।"
जब प्रिय आपसे छीन लिया जाए, और शत्रु अधिक शक्तिशाली हो, तब मनुष्य टूटता है। राम भी टूटे, रोए, लेकिन रुके नहीं। राम के इस वियोग को समझने के लिए, हमें सीता के दृष्टिकोण को भी समझना आवश्यक है, जिसे आप 'मांग की सिन्दूर रेखा' में विस्तार से पढ़ सकते हैं। प्रेम में तड़प का यह भाव ही राम कथा को जीवंत बनाता है।
तुलनात्मक दृष्टि: राम, कृष्ण और सुदामा
भारतीय साहित्य में मित्रता और संघर्ष के कई रूप हैं।
- मित्रता: जैसे सुदामा की गरीबी और कृष्ण का प्रेम एक मिसाल है, वैसे ही राम और निषाद-राज या सुग्रीव की मित्रता भी हमें समानता का पाठ पढ़ाती है।
- नेतृत्व: राम ने विभीषण को अपनाया और वानर सेना का नेतृत्व किया। इस विषय पर गहरा विश्लेषण आप Hey Bharat Ke Ram Jago में पढ़ सकते हैं।
आज के दौर में इस कविता की प्रासंगिकता
आज का युवा अवसाद (Depression) और चुनौतियों से जल्दी घबरा जाता है। हर्ष नाथ झा की यह कविता एक दर्पण है:
- समानता: "स्थिर नयन और मंदहास्य"—विपरीत परिस्थितियों में शांत रहना ही सबसे बड़ा शस्त्र है।
- धैर्य: राम देव इसलिए नहीं हैं कि वे त्रेता में जन्मे, वे देव इसलिए हैं क्योंकि उन्होंने परिस्थिति से बड़ा 'चरित्र' चुना।
"वो मेरे सम इंसान हुए" एक ऐसी कविता है जो राम को देवत्व के आसन से उतारकर हमारे बीच खड़ा करती है—एक ऐसे इंसान के रूप में जिसने हार नहीं मानी। राम का जीवन बताता है कि कष्ट ईश्वर तक ले जाने वाली सीढ़ियाँ होते हैं।
❓ अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
Q1. ‘वो मेरे सम इंसान हुए’ कविता का मुख्य संदेश क्या है?
उत्तर: राम जन्म से भगवान नहीं थे, बल्कि अपने त्याग, संघर्ष और मानवीय पीड़ा को धैर्यपूर्वक सहने के कारण वे 'पुरुषोत्तम' और भगवान बने।
Q2. इस कविता में राम को 'इंसान' क्यों कहा गया है?
उत्तर: क्योंकि उन्होंने भूख, प्यास, वियोग, क्रोध और शारीरिक कष्टों को एक सामान्य मनुष्य की तरह महसूस किया और भोगा।
संदर्भ (References):
1. Ramayana - Wikipedia (Historical Context)
2. Rama - Britannica (Literary Analysis)
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