महाभारत पर हिंदी कविता - विवशता
पूरे जगत का दिनकर है जो
उस दिन तो रोया होगा
जिस दिन वीर कर्ण को
पिता ने जब खोया होगा |
महाभारत पर हिंदी कविता - विवशता
हर किरण अश्रु-सा शीतल होगा
सातों अश्व सकुचाएँ होंगे
मौन रहकर भी स्वयं रवि
मन में अवश्य चिल्लाये होंगे |
कहा गया हर बार कुलहीन
ज्वाला तो धधक उठी होगी न ?
हर शाप जो पुत्र को सहना पड़ा
क्रोधाग्नि भड़क उठी होगी न ?
चण्डांशु ने सोचा होगा
हयों को पल भर मोड़ दूँ मैं
इस वीभत्स कर्त्तव्य को
पुत्रवश ही छोड़ दूँ मैं |
अर्जुन के गांडीव को
अपनी शक्ति से तोड़ दूँ मैं
चाहा होगा हर जीव को
मरते हुए ही छोड़ दूँ मैं |
महाभारत पर हिंदी कविता - विवशता
जानते हुए सब मौन रहे
कितने वीर, महान हो तुम
देवों के तुम शिरोमणि
कितने बड़े विद्वान् हो तुम |
पाण्डु पुत्र की लाज बचाने
कुछ पल अधिक जले थे तुम
बात आई जब निज-पुत्र पर
क्यों न जल्दी ढले थे तुम ?
शिष्य को अरि-रथ पर देखा
उसी पल उसको टोक देते
प्राणदान-सा दान माँगा जब
उस पाखंड को रोक देते |
वक्ष फाड़ जब दान दिया था,
एक अश्रु तो आया होगा
उस पिता ने तब ख़ुद को
निहत्था जब पाया होगा |
महाभारत पर हिंदी कविता - विवशता
बदले में कुछ दिव्यास्त्र तुम
सुत को तो दे ही सकते थे
महाकाल से उसके प्राणों की
भीख तो ले ही सकते थे |
हर अपमान देख कर्ण का
रक्त तो अवश्य खौला होगा
मन में दिनकर ने कुरुक्षेत्र को
शस्त्रों से तौला होगा |
रोता-बिलखता एक पिता
कुछ ज़रूर बोला होगा
मन में दिनकर ने कुरुक्षेत्र को
लाशों से तौला होगा |
महाभारत पर हिंदी कविता - विवशता
जिन क्षण धर गिरा कर्ण का
ख़ुद को धिक्कारा होगा न
निज-कष्ट ने कर्तव्यों को
उस क्षण ललकारा होगा न
शस्त्रों को उठाया होगा
रक्त तो तब खौला था न
कुरुक्षेत्र के उस प्रांगण को
लाशों से तौला था न |
महापुरुष, बलिदानी था वो
उसका हर प्रण धरा में लीन था
कैसा तेजस्वी सूर्यांश था
कि सूर्य भी तब तेज-क्षीण था
महाभारत पर हिंदी कविता - विवशता
इतना बड़ा दानी था वो
कि देवेश स्वयं तब दीन था
कैसा तेजस्वी सूर्यांश था
कि सूर्य भी तब तेज-क्षीण था |
-
हर्ष नाथ झा