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महाभारत पर हिंदी कविता - विवशता | Mahabharata Hindi Poem by Harsh Nath Jha

महाभारत पर हिंदी कविता - विवशता

महाभारत पर हिंदी कविता - विवशता | Harsh Nath Jha

महाभारत पर हिंदी कविता

महाभारत पर कविता

Mahabharata Poems In Hindi

Mahabharata Par Hindi Kavita


पूरे जगत का दिनकर है जो

उस दिन तो रोया होगा

जिस दिन वीर कर्ण को

पिता ने जब खोया होगा |


महाभारत पर हिंदी कविता - विवशता | Harsh Nath Jha

महाभारत पर हिंदी कविता - विवशता

हर किरण अश्रु-सा शीतल होगा

सातों अश्व सकुचाएँ होंगे

मौन रहकर भी स्वयं रवि

मन में अवश्य चिल्लाये होंगे |


कहा गया हर बार कुलहीन

ज्वाला तो धधक उठी होगी न ?

हर शाप जो पुत्र को सहना पड़ा

क्रोधाग्नि भड़क उठी होगी न ?


चण्डांशु ने सोचा होगा

हयों को पल भर मोड़ दूँ मैं

इस वीभत्स कर्त्तव्य को

पुत्रवश ही छोड़ दूँ मैं |


अर्जुन के गांडीव को

अपनी शक्ति से तोड़ दूँ मैं

चाहा होगा हर जीव को

मरते हुए ही छोड़ दूँ मैं |


महाभारत पर हिंदी कविता - विवशता | Harsh Nath Jha

महाभारत पर हिंदी कविता - विवशता

जानते हुए सब मौन रहे

कितने वीर, महान हो तुम

देवों के तुम शिरोमणि

कितने बड़े विद्वान् हो तुम |


पाण्डु पुत्र की लाज बचाने

कुछ पल अधिक जले थे तुम

बात आई जब निज-पुत्र पर

क्यों न जल्दी ढले थे तुम ?



शिष्य को अरि-रथ पर देखा

उसी पल उसको टोक देते

प्राणदान-सा दान माँगा जब

उस पाखंड को रोक देते |


वक्ष फाड़ जब दान दिया था,

एक अश्रु तो आया होगा

उस पिता ने तब ख़ुद को

निहत्था जब पाया होगा |


महाभारत पर हिंदी कविता - विवशता | Harsh Nath Jha

महाभारत पर हिंदी कविता - विवशता

बदले में कुछ दिव्यास्त्र तुम

सुत को तो दे ही सकते थे

महाकाल से उसके प्राणों की

भीख तो ले ही सकते थे |


हर अपमान देख कर्ण का

रक्त तो अवश्य खौला होगा

मन में दिनकर ने कुरुक्षेत्र को

शस्त्रों से तौला होगा |


रोता-बिलखता एक पिता

कुछ ज़रूर बोला होगा

मन में दिनकर ने कुरुक्षेत्र को

लाशों से तौला होगा |



महाभारत पर हिंदी कविता - विवशता | Harsh Nath Jha


महाभारत पर हिंदी कविता - विवशता

जिन क्षण धर गिरा कर्ण का

ख़ुद को धिक्कारा होगा न

निज-कष्ट ने कर्तव्यों को

उस क्षण ललकारा होगा न


शस्त्रों को उठाया होगा

रक्त तो तब खौला था न

कुरुक्षेत्र के उस प्रांगण को

लाशों से तौला था न |


महापुरुष, बलिदानी था वो

उसका हर प्रण धरा में लीन था

कैसा तेजस्वी सूर्यांश था

कि सूर्य भी तब तेज-क्षीण था

महाभारत पर हिंदी कविता - विवशता | Harsh Nath Jha

महाभारत पर हिंदी कविता - विवशता

इतना बड़ा दानी था वो

कि देवेश स्वयं तब दीन था

 कैसा तेजस्वी सूर्यांश था

कि सूर्य भी तब तेज-क्षीण था |

-

हर्ष नाथ झा


महाभारत पर हिंदी कविता

महाभारत पर कविता

Mahabharata Poems In Hindi

Mahabharata Par Hindi Kavita



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