प्रस्तावना: जब शांतिदूत बने महाकाल
हिंदी साहित्य के गगन में दैदीप्यमान सूर्य, राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' की लेखनी से निसृत 'रश्मिरथी' केवल एक काव्य नहीं, बल्कि ओज और पौरुष का महासागर है। जिस प्रकार उन्होंने कर्ण की वेदना को स्वर दिया, उसी प्रकार 'कृष्ण की चेतावनी' (तृतीय सर्ग) में उन्होंने सत्ता के अहंकार और ईश्वरीय सत्य के टकराव को चित्रित किया है।
प्रसंग उस समय का है जब महाभारत के महाविनाश को टालने के लिए भगवान श्री कृष्ण 'शांतिदूत' बनकर हस्तिनापुर की राज्यसभा में प्रवेश करते हैं। वे मात्र पाँच गाँवों की भिक्षा मांगते हैं, किन्तु अहंकार में अंधे दुर्योधन ने न केवल प्रस्ताव ठुकराया, बल्कि कन्हैया को ही बंदी बनाने का दुस्साहस कर बैठा।
तब, सभा के बीच जो घटित हुआ, वह इतिहास बन गया। कृष्ण का 'विराट रूप' और उनकी भीषण गर्जना—"याचना नहीं, अब रण होगा"—आज भी पाठकों की धमनियों में रक्त का प्रवाह तेज कर देती है। आइये, साहित्यशाला पर इस कालजयी रचना का रसास्वादन करें।
कृष्ण की चेतावनी (लिरिक्स)
रश्मिरथी: तृतीय सर्ग - रामधारी सिंह 'दिनकर'
![]() |
| Ramdhari Singh Dinkar’s masterpiece begins: Maitri ki raah batane ko, sabko sumarg par lane ko. This forms the opening of the Krishna Ki Chetavani lyrics where Lord Krishna arrives in Hastinapur to prevent the bhishan vidhwans (terrible destruction) of the Mahabharata. |
वर्षों तक वन में घूम-घूम,
बाधा-विघ्नों को चूम-चूम,
सह धूप-घाम, पानी-पत्थर,
पांडव आये कुछ और निखर।
सौभाग्य न सब दिन सोता है,
देखें, आगे क्या होता है ||
मैत्री की राह बताने को,
सबको सुमार्ग पर लाने को,
दुर्योधन को समझाने को,
भीषण विध्वंस बचाने को,
भगवान हस्तिनापुर आये,
पांडव का संदेशा लाये ||
![]() |
| When Duryodhana tried to chain the Divine, Hari ne bhishan hunkar kiya. This iconic verse depicts the moment Lord Krishna expands his form (Swaroop vistar), a key moment in the Krishna Ki Chetavani poem. "Janjeer badha kar sadh mujhe, haan haan Duryodhana bandh mujhe." |
दो न्याय, अगर तो, आधा दो,
पर, इसमें भी यदि बाधा हो,
तो दे दो केवल पाँच ग्राम,
रखों अपनी धरती तमाम |
हम वहीं खुशी से खायेंगे,
परिजन पर असि न उठायेंगे !!
दुर्योधन वह भी दे ना सका,
आशीष समाज की ले न सका,
उलटे, हरि को बाँधने चला,
जो था असाध्य, साधने चला।
जब नाश मनुज पर छाता है,
पहले विवेक मर जाता है ||
![]() |
| Krishna reveals the Vishwaroop: "Mujhme sara brahmand dekh." This section of the Krishna Chetawani lyrics describes seeing the suns, moons, and the entire universe within Him. A powerful visual representation of Krishna ki chetavni latest interpretation. |
हरि ने भीषण हुंकार किया,
अपना स्वरूप-विस्तार किया,
डगमग-डगमग दिग्गज डोले,
भगवान कुपित होकर बोले-
"जंजीर बढ़ा कर साध मुझे,
हाँ, हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे |
![]() |
| The poem takes a terrifying turn as Krishna displays his destructive power: "Jihva se kadhti jwal saghan." This verse from Rashmirathi Krishna Ki Chetavani shows the ultimate form of Time (Kaal) and the inescapable nature of destiny. |
यह देख, गगन मुझमें लय है,
यह देख, पवन मुझमें लय है,
मुझमें विलीन झंकार सकल,
मुझमें लय है संसार सकल।
अमरत्व फूलता है मुझमें,
संहार झूलता है मुझमें।
उदयाचल मेरा दीप्त भाल,
भूमंडल वक्षस्थल विशाल,
भुज परिधि-बन्ध को घेरे हैं,
मैनाक-मेरु पग मेरे हैं।
दिपते जो ग्रह नक्षत्र निकर,
सब हैं मेरे मुख के अन्दर।
दृग हों तो दृश्य अकाण्ड देख,
मुझमें सारा ब्रह्माण्ड देख,
चर-अचर जीव, जग, क्षर-अक्षर,
नश्वर मनुष्य सुरजाति अमर ।
शत कोटि सूर्य, शत कोटि चन्द्र,
शत कोटि सरित, सर, सिन्धु मन्द्र।
![]() |
| The final antim chetavni (last warning) to Duryodhana: "Ran aisa hoga, phir kabhi nahi jaisa hoga." This chilling conclusion to the Krishna Ki Chetavani full poem foreshadows the fall of the Kauravas and the great war of Kurukshetra. |
शत कोटि विष्णु, ब्रह्मा, महेश,
शत कोटि विष्णु, जलपति, धनेश,
शत कोटि रुद्र, शत कोटि काल,
शत कोटि दण्डधर लोकपाल।
जंजीर बढ़ाकर साध इन्हें,
हाँ-हाँ दुर्योधन ! बाँध इन्हें।
भूलोक, अतल, पाताल देख,
गत और अनागत काल देख,
यह देख जगत का आदि-सृजन,
यह देख, महाभारत का रण,
मृतकों से पटी हुई भू है,
पहचान, इसमें कहाँ तू है।
अम्बर में कुन्तल-जाल देख,
पद के नीचे पाताल देख,
मुट्ठी में तीनों काल देख,
मेरा स्वरूप विकराल देख।
सब जन्म मुझि से पाते हैं,
फिर लौट मुझि में आते हैं ||
![]() |
| Krishna Ki Chetavani Lyrics – Meaning, PDF |
जिह्वा से कढ़ती ज्वाल सघन,
साँसों में पाता जन्म पवन,
पड़ जाती मेरी दृष्टि जिधर,
हँसने लगती है सृष्टि उधर!
मैं जभी मूँदता हूँ लोचन,
छा जाता चारों ओर मरण ||
बाँधने मुझे तो आया है ?
जंजीर बड़ी क्या लाया है ?
यदि मुझे बाँधना चाहे मन,
पहले तो बाँध अनन्त गगन ।
सूने को साध न सकता है,
वह मुझे बाँध कब सकता है ?
हित-वचन नहीं तूने माना,
मैत्री का मूल्य न पहचाना,
तो ले, मैं भी अब जाता हूँ,
अन्तिम संकल्प सुनाता हूँ।
याचना नहीं, अब रण होगा,
जीवन-जय या कि मरण होगा।
टकरायेंगे नक्षत्र-निकर,
बरसेगी भू पर वह्नि प्रखर,
फण शेषनाग का डोलेगा,
विकराल काल मुँह खोलेगा।
दुर्योधन! रण ऐसा होगा।
फिर कभी नहीं जैसा होगा ||
![]() |
| Krishna Ki Chetavani Lyrics (Rashmirathi) – Meaning, PDF & Antim Chetavni |
भाई पर भाई टूटेंगे,
विष-बाण बूँद-से छूटेंगे,
वायस-श्रृगाल सुख लूटेंगे,
सौभाग्य मनुज के फूटेंगे।
आखिर तू भूशायी होगा,
हिंसा का परदायी होगा ||"
थी सभा सन्न, सब लोग डरे,
चुप थे या थे बेहोश पड़े ।
केवल दो नर ना अघाते थे,
धृतराष्ट्र-विदुर सुख पाते थे ।
कर जोड़ खड़े प्रमुदित, निर्भय,
दोनों पुकारते थे ‘जय-जय’ !!
भावार्थ एवं विश्लेषण (Summary)
'कृष्ण की चेतावनी' महाभारत काव्य के सबसे सशक्त प्रसंगों में से एक है। यह कविता 'मैत्री' (शांति) और 'रण' (युद्ध) के बीच की अंतिम रेखा को खींचती है।
- 🔥 विनाश का उद्घोष: जब श्री कृष्ण कहते हैं, "याचना नहीं, अब रण होगा", तो यह केवल एक चेतावनी नहीं, बल्कि अधर्म के अंत की घोषणा है। यहाँ सत्य और विपत्ति का शाश्वत नियम प्रकट होता है कि जब मनुष्य विवेक खो देता है, तो काल उसका ग्रास बन जाता है।
- 🌌 विराट रूप का दर्शन: कविता में वर्णित विराट रूप—जिसमें ग्रह, नक्षत्र और भविष्य के मृतक (कौरव) भी कृष्ण के भीतर दिखते हैं—यह सिद्ध करता है कि भीष्म और द्रोण जैसे योद्धा भी नियति के आगे विवश थे।
यदि आप हिंदी साहित्य की अन्य अमूल्य रचनाएँ पढ़ना चाहते हैं, तो मैथिली कविताएं या आशुतोष राणा की कविताएं भी पढ़ सकते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
❓ कृष्ण की चेतावनी कविता किसने लिखी है?
यह कविता राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' द्वारा रचित महाकाव्य 'रश्मिरथी' (तृतीय सर्ग) का अंश है।
❓ 'याचना नहीं अब रण होगा' का अर्थ क्या है?
इसका अर्थ है कि प्रार्थना और शांति के सभी प्रयास समाप्त हो चुके हैं। अब केवल युद्ध ही न्याय का निर्णय करेगा।
❓ कृष्ण ने दुर्योधन को क्या चेतावनी दी?
कृष्ण ने दुर्योधन को अपना विराट रूप दिखाकर चेतावनी दी कि पांडवों से युद्ध करना स्वयं 'काल' (मृत्यु) को निमंत्रण देने जैसा है।
📥 PDF डाउनलोड करें (निःशुल्क)
क्या आप 'कृष्ण की चेतावनी' कविता को ऑफलाइन पढ़ना या याद करना चाहते हैं?
यहाँ क्लिक करें (Download PDF) »🎥 देखें: साहित्यशाला टीम द्वारा कविता पाठ
सेठ एम.आर. जयपुरिया स्कूल में प्रस्तुति
अन्य कविताएं पढ़ें: अरे कान खोलकर सुनो पार्थ | अरे द्वारपालों कन्हैया से कह दो
हमारे अन्य ब्लॉग: साहित्यशाला फाइनेंस | English Blog






