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कृष्ण की चेतावनी - KRISHNA KI CHETAWANI | रश्मिरथी - रामधारी सिंह " दिनकर " | Mahabharata Poems |


कृष्ण की चेतावनी - KRISHNA KI CHETAWANI

रश्मिरथी - रामधारी सिंह " दिनकर "

MAHABHARATA POEMS

MAHABHARATA POEMS IN HINDI

|| कृष्ण की चेतावनी || || रश्मिरथी - रामधारी सिंह " दिनकर " || | MAHABHARATA POEMS | | MAHABHARATA POEMS IN HINDI | | Mahabharat par hindi kavita |
Krishna Ki Chetawani - कृष्ण की चेतावनी

वर्षों तक वन में घूम-घूम,
बाधा-विघ्नों को चूम-चूम,
सह धूप-घाम, पानी-पत्थर,
पांडव आये कुछ और निखर
सौभाग्य न सब दिन सोता है,
देखें, आगे क्या होता है ||

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Krishna Ki Chetawani - कृष्ण की चेतावनी

मैत्री की राह बताने को,
सबको सुमार्ग पर लाने को,
दुर्योधन को समझाने को,
भीषण विध्वंस बचाने को,
भगवान हस्तिनापुर आये,
पांडव का संदेशा लाये ||

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Krishna Ki Chetawani - कृष्ण की चेतावनी

दो न्याय, अगर तो, आधा दो,
पर, इसमें भी यदि बाधा हो,
तो दे दो केवल पाँच ग्राम,
रखों अपनी धरती तमाम |
हम वहीं खुशी से खायेंगे,
परिजन पर असि न उठायेंगे !!

दुर्योधन वह भी दे ना सका,
आशीष समाज की ले न सका,
उलटे, हरि को बाँधने चला,
जो था असाध्य, साधने चला।
जब नाश मनुज पर छाता है,
पहले विवेक मर जाता है ||
 

जब नाश मनुज पर छाता है,

पहले विवेक मर जाता है ||

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Krishna Ki Chetawani - कृष्ण की चेतावनी

हरि ने भीषण हुंकार किया,
अपना स्वरूप-विस्तार किया,
डगमग-डगमग दिग्गज डोले,
भगवान कुपित होकर बोले-
"जंजीर बढ़ा कर साध मुझे,
हाँ, हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे |

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Krishna Ki Chetawani - कृष्ण की चेतावनी

यह देख, गगन मुझमें लय है,
यह देख, पवन मुझमें लय है,
मुझमें विलीन झंकार सकल,
मुझमें लय है संसार सकल।
अमरत्व फूलता है मुझमें,
संहार झूलता है मुझमें।

उदयाचल मेरा दीप्त भाल,
भूमंडल वक्षस्थल विशाल,
भुज परिधि-बन्ध को घेरे हैं,
मैनाक-मेरु पग मेरे हैं।
दिपते जो ग्रह नक्षत्र निकर,
सब हैं मेरे मुख के अन्दर।

दृग हों तो दृश्य अकाण्ड देख,
मुझमें सारा ब्रह्माण्ड देख,
चर-अचर जीव, जग, क्षर-अक्षर,
नश्वर मनुष्य सुरजाति अमर
शत कोटि सूर्य, शत कोटि चन्द्र,
शत कोटि सरित, सर, सिन्धु मन्द्र

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Krishna Ki Chetawani - कृष्ण की चेतावनी

शत कोटि विष्णु, ब्रह्मा, महेश,
शत कोटि विष्णु, जलपति, धनेश,
शत कोटि रुद्र, शत कोटि काल,
शत कोटि दण्डधर लोकपाल
जञ्जीर बढ़ाकर साध इन्हें,
हाँ-हाँ दुर्योधन ! बाँध इन्हें।

भूलोक, अतल, पाताल देख,
गत और अनागत काल देख,
यह देख जगत का आदि-सृजन,
यह देख, महाभारत का रण,
मृतकों से पटी हुई भू है,
पहचान, इसमें कहाँ तू है।

अम्बर में कुन्तल-जाल देख,
पद के नीचे पाताल देख,
मुट्ठी में तीनों काल देख,
मेरा स्वरूप विकराल देख।
सब जन्म मुझि से पाते हैं,
फिर लौट मुझि में आते हैं ||

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Krishna Ki Chetawani - कृष्ण की चेतावनी
जिह्वा से कढ़ती ज्वाल सघन,
साँसों में पाता जन्म पवन,
पड़ जाती मेरी दृष्टि जिधर,
हँसने लगती है सृष्टि उधर!
मैं जभी मूँदता हूँ लोचन,
छा जाता चारों ओर मरण ||

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Krishna Ki Chetawani - कृष्ण की चेतावनी

बाँधने मुझे तो आया है ?
जंजीर बड़ी क्या लाया है ?

यदि मुझे बाँधना चाहे मन,
पहले तो बाँध अनन्त गगन ।
सूने को साध न सकता है,
वह मुझे बाँध कब सकता है ?

हित-वचन नहीं तूने माना,
मैत्री का मूल्य न पहचाना,
तो ले, मैं भी अब जाता हूँ,
अन्तिम संकल्प सुनाता हूँ।
याचना नहीं, अब रण होगा,
जीवन-जय या कि मरण होगा।

टकरायेंगे नक्षत्र-निकर,
बरसेगी भू पर वह्नि प्रखर,
फण शेषनाग का डोलेगा,
विकराल काल मुँह खोलेगा।

दुर्योधन! रण ऐसा होगा।
फिर कभी नहीं जैसा होगा ||

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Krishna Ki Chetawani - कृष्ण की चेतावनी
भाई पर भाई टूटेंगे,
विष-बाण बूँद-से छूटेंगे,

वायस-श्रृगाल सुख लूटेंगे,
सौभाग्य मनुज के फूटेंगे।

आखिर तू भूशायी होगा,
हिंसा का परदायी होगा ||"


थी सभा सन्न, सब लोग डरे,
चुप थे या थे बेहोश पड़े ।
केवल दो नर ना अघाते थे,
धृतराष्ट्र-विदुर सुख पाते थे ।
कर जोड़ खड़े प्रमुदित, निर्भय,
दोनों पुकारते थे ‘जय-जय’ !!
 
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Krishna Ki Chetawani - कृष्ण की चेतावनी

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|| रश्मिरथी - रामधारी सिंह " दिनकर " ||

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 कृष्ण की चेतावनी | रश्मिरथी - रामधारी सिंह " दिनकर " | Mahabharata Poems |

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कृष्ण की चेतावनी - KRISHNA KI CHETAWANI
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