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फरीदाबाद में 1 नवंबर को भव्य साहित्य सम्मेलन: 'कविताओं के रंग, युवाओं के संग' में जुटेंगे दिग्गज

भीष्म पितामह पर डॉ प्रवीण शुक्ल की रोंगटें खड़े करे वाली कविता | Mahabharata Poems

|| भीष्म प्रतिज्ञा ||

| Mahabharata Poems |

| Mahabharata Par Hindi Kavita |

| भीष्म प्रतिज्ञा | | Mahabharata Poems | | Mahabharata Par Hindi Kavita |

इस गद्दी के चक्कर ने भारत की हालत गारत की,
और इसी चक्कर में दुर्गति होती भारत की ।
ऊंच नीच और भेदभाव भी इसी कथा के हिस्से हैं ,
वैरभाव सहयोग त्याग के इसमें अनगिन किससे है ||
 
| भीष्म प्रतिज्ञा | | Mahabharata Poems | | Mahabharata Par Hindi Kavita |

इन किस्सों के कारण ही तो कुरुक्षेत्र में युद्ध हुआ,
पूरा भारत महायुद्ध से पल भर में आबंध हुआ ।
दोनों पक्षों की रक्षा को तत्पर सभी परिचित थे,
और परिचित गण भी तो रखते अपने अपने हित थे ||

श्रीकृष्ण ने महा समर में काम किए थे मिले जुले,
दुर्योधन को सेना दे दी और अर्जुन को स्वयं मिले ।
चतुरंगिणी सेना को पाकर दुर्योधन मन में खुश था,
पर अर्जुन के मन में भी तो कहीं नहीं किंचित दुख था ||
| भीष्म प्रतिज्ञा | | Mahabharata Poems | | Mahabharata Par Hindi Kavita |
 
कहां कृष्ण ने महासमर में ना अस्त्रों को धरूँगा,
मात्र सारथी बनकर अर्जुन को रणक्षेत्र उतारूंगा ।
अर्जुन को नादान समझ दुर्योधन मन में फूल गया,
 माधव की मायावी माया को बिल्कुल ही भूल गया ||
 
| भीष्म प्रतिज्ञा | | Mahabharata Poems | | Mahabharata Par Hindi Kavita |


पितामह ने भी कृष्णा की प्रतिज्ञा के वचन सुने,
वचनों को सुन मन ही मन जाने क्या क्या भाव बुने ।
वह पितामह जो तन मन से कौरव सेना को अर्पित थे,
वह पितामह जो राजा की गद्दी को सदा समर्पित थे ।
वह पितामह जो दुर्योधन की सेना के सेनापति थे,
वह पितामह जिनके सब शब्द स्वयं काल की गति थे ||
 

वह पितामह जिनके अस्त्रो-शस्त्रों पर लक्ष्य सुरंकित थे ,
वह पितामह जिनकी शक्ति से सभी देवता शंकित थे ।
वह पितामह जिनके शस्त्रों से अंबर तक फट जाता था ,
वह पितामह जिनके तीरों से गंगाजल रुक जाता था ||
वह पितामह जिनके तीरों से गंगाजल रुक जाता था ||
 
 
| भीष्म प्रतिज्ञा | | Mahabharata Poems | | Mahabharata Par Hindi Kavita |

जब सुने उन्होंने वचन कृष्ण के मन ही मन मुस्काए,
यह सोच चलो मौका आया माधव को झुठलाया जाए |
पितामह के यह विचार सुन सहमी सहमी प्रज्ञा थी,
एक और कृष्ण प्रतिज्ञा दूजी और भीष्म प्रतिज्ञा थी ||
 
 
दादा की बातों को सुन अर्जुन मन ही मन विचलित था,
 क्योंकि उनकी सभी शक्तियों से वह पूरा परिचित था
वह जान चुका था पितामह ने जैसे जो भी ठान लिया,
क्रूर काल ने भी उनकी इच्छा को वैसे मान लिया ||

प्रतिज्ञा पूरी करने को वह कुछ भी कर डालेंगे ,
कुरुक्षेत्र की इस भूमि को लाशों से भर डालेंगे
मुझ बालक को भी लगता है अब उन से लड़ना होगा,
 संभव है कि मृत्यु के चरणों में भी चढ़ना होगा ||

विचलित अर्जुन के मस्तक पर उभर उठी चिंता रेखा,
 श्रीकृष्ण ने व्याकुल आकुल अर्जुन के मुख को देखा ।
बोल उठे हे पार्थ युद्ध से आज अगर डर जाओगे,
तो संभव है कि जीने से पहले तुम मर जाओगे  ||
 
| भीष्म प्रतिज्ञा | | Mahabharata Poems | | Mahabharata Par Hindi Kavita |
 
जीने मरने को लेकर यो चिंता और सिहरना क्या ?
जब तक तेरे रथ पर मैं हूं तुझको जग से डरना क्या ?
 माधव की बातों से अर्जुन में शक्ति संचार हुआ,
कांधे पर गांडीव सजा वह लड़ने को तैयार हुआ ||

| भीष्म प्रतिज्ञा | | Mahabharata Poems | | Mahabharata Par Hindi Kavita |


महासमर में वीरों ने प्राणों की आहुति दी,
पितामह ने अर्जुन को देखा रथ की धीमी गति की ।
रथ को रोका और रोकते ही पहले यह काम किया,
माधव को देखा मुस्काए और झुक कर उन्हें प्रणाम किया ||

अर्जुन को आशीष दिए,
 छलकी आंखों को मीच लिया |
और अगले ही क्षण,
 दोनीर से भी बाणों को खींच लिया ||

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चढ़ा धनुष पर बाण उन्होंने खींचा जब प्रत्यंचा को, 
बिजली कड़की सैनिक बोले डरकर के भागो-भागो |
शस्त्रों की वर्षा से अंबर आतुरता फट जाने को, 
रत्नाकर मैं उठी हिलेरी नील गगन छू जाने को ||
शैल शिखर तक ध्वनि तरंगों से टकराकर गिरते थे
लगता था कि कुरुक्षेत्र में काले बादल घिरते थे |
पितामह के बाड़ों से पूरा भूमंडल डोल उठा,
हर एक वीर ही महा समर में हर हर बम-बम बोल उठा ||
 
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तलवारों के टकराने से ध्वनि गूंजती थी टन-टन ।
बाढ़ हवा के सीने पर दस्तक देते थे सनन-सनन।
सनन-सनन से और भयानक हो उठती थी मंद पवन ।
कवच और कुंडल वीरों के बज उठते खनन-खनन।
मस्तक पर अंकुश टकराने से करते थे गर्जन।
घायल असुरों की चीखें भी गूंज रही थी हिंनन-हिंनन।
भाले चलते ऐसे जैसे बिजली चलती कड़क-कड़क ।
काट रहे थे वीर समर में सर को जैसे भड़क-भड़क ||
 

घनन-घनन घनघोर घटा गिरती जाती थी छन-छन में,
बाण, कमान, कृपाण, गदा से रक्त बहा था कण-कण में |
 उद्दंड चंदनी चंडी मां के चरणों में नरमुंड चढ़े,
बजा रहे थे घनन-घनन यमराज नगाड़े खड़े-खड़े ||
 
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इस भीषण रण से ज्वाला की बढ़ती जाती थी भड़कन,
पितामह के लोहित लोचन देख बड़ी दिल की धड़कन |
 महासमर में दादा ने काटे थे अनगिन मस्तक धड़,
यह देख कर धरती रोई बादल बोले गड्ड-गड्ड ||

चीखें गूंज उठी धरती पर चीख चीख में क्रंदन था,
लगता था उस रोज़ धरा पर मृत्यु का अभिनंदन था।

चीखें गूंज उठी धरती पर चीख चीख में क्रंदन था,
लगता था उस रोज़ धरा पर मृत्यु का अभिनंदन था ||

| भीष्म प्रतिज्ञा | | Mahabharata Poems | | Mahabharata Par Hindi Kavita |


महासमर में महारथी गण जब-जब कटकट गिरते थे, 
ऐसा लगता था प्रलयंकर वहां तांडव करते थे
रक्त पिपासु काली मैया खप्पर भरती जाती थी,
पितामह से पूरी पांडव सेना डरती जाती थी ||
 

उनके आगे जो भी आया वध उसका तत्काल हुआ, 
उसी वीर की श्रोणित धारा से तल भू का लाल हुआ
इतना रक्त पिया धरती ने और नहीं पी पाती थी,
बहे लहू की धारा अब नदिया बन बहती जाती थी ||
 

बर्बादी को देख पार्थ ने जब गांडीव उठाया तो,
उसके द्वारा उसने अपना पहला बाण चलाया तो । 
पितामह के बाणों से टकरा कर के वह टूट गया,
अगले ही क्षण गांडीव मुष्टिका से अर्जुन की छूट गया ||

पितामह को यू मनमानी ना करने दूंगा,
चाहे जो भी हो अर्जुन को ऐसे ना मरने दूंगा  |
यह कहकर माधव ने रथ के पहिए को उठा लिया,
उसे सुदर्शन चक्र बनाकर पितामह की ओर किया ||
 
| भीष्म प्रतिज्ञा | | Mahabharata Poems | | Mahabharata Par Hindi Kavita |


माधव की यह मुद्रा मानो महाकाल से मिलती थी
उनकी इस मुद्रा से जैसे पूरी पृथ्वी हिलती थी
माधव को देखा धनुष रखा और दादा मन में फूल गए, 
हाथ जोड़कर बोले माधव क्या प्रतिज्ञा भूल गए ?
माधव को देखा धनुष रखा और दादा मन में फूल गए, 
हाथ जोड़कर बोले माधव क्या प्रतिज्ञा भूल गए ?
 
 
पूरी सेना बोल उठी, बोलो हो करके निर्भय,
एक बार सब मिलकर बोलो, बोलो पितामह की जय |
पूरी सेना बोल उठी, बोलो हो करके निर्भय,
एक बार सब मिलकर बोलो, बोलो पितामह की जय || 


पितामह की शक्ति की वैसे बड़ी महत्ता थी,
पर माधव की शक्ति में तीनों लोको की सत्ता थी
वह माधव जिनके पैदा होने पर माया छा जाती हो,
सभी सैनिकों को पहरे पर ही निद्रा आ जाती हो ||

ताले बेड़ी और द्वार भी खुद ही खुद खुल जाते हो,
सभी देवता गण जिन के चरणों पर पुष्प चढ़ाते हो । 
जिनके चरणों के वंदन को यमुना जल आता हो,
शेषनाग जिन की रक्षा हित अपना फल फैलाता हो ||
दुष्ट कंस की काया का जो पल में ही मर्दन कर दें,
नाग कालिया के मस्तक पर ठुमक-ठुमक नर्तन कर दें ।
 
| भीष्म प्रतिज्ञा | | Mahabharata Poems | | Mahabharata Par Hindi Kavita |

जिनका चक्र सुदर्शन रवि की गाथा को खुद कहता हो,

 तीनों लोगों का बुद्धि और बल जिनके अंदर रहता हो ||
 

सरस सलिल सुंदर सरिताओं संग समन्वित सागर हो ।
अगम अगोचर आदि अखंडित और अनश्वर आखर हो ||

जिस परमपिता परमेश्वर की शक्ति का कोई अंत नहीं,
जिनके आगे प्रश्न कभी भी कोई राह ज्वलंत नहीं ।
उस परमपिता परमेश्वर को पितामह ने कैसे डरा
दिया ?
यह बात असंभव है पर भक्ति ने भगवान को हरा दिया ||
उस परमपिता परमेश्वर को पितामह ने कैसे डरा
दिया ?
यह बात असंभव है पर भक्ति ने भगवान को हरा दिया ||
 
 
पितामह की अपने जीवन से हो चली विरक्ति थी,
पर परमपिता परमेश्वर में उनकी अटूट आसक्ति थी। कृष्ण चक्र लिए इसीलिए करने उन पर प्रहार गए,
करने भीष्म प्रतिज्ञा पूरी जानबूझकर हार गए ||
 
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