सुना था कि बेहद सुनहरी है दिल्ली - Suna Tha Ki Behad Sunheri Hai Dilli
कोई ला के दे दे मुझे लाल मेरा
सुना था कि बेहद सुनहरी है दिल्ली,
समंदर-सी ख़ामोश, गहरी है दिल्ली।
मगर एक माँ की सदा सुन न पाए,
तो लगता है — गूंगी है, बहरी है दिल्ली।

वो आँखों में अश्कों का दरिया समेटे,
वो उम्मीद का इक नज़रिया समेटे।
यहाँ कह रही है, वहाँ कह रही है,
तड़प कर के ये एक माँ कह रही है —
"कोई पूछता ही नहीं हाल मेरा...!
कोई ला के दे दे मुझे लाल मेरा!"
उसे ले के वापस चली जाऊँगी मैं,
पलट कर कभी फिर नहीं आऊँगी मैं।
बुढ़ापे का मेरे सहारा वही है,
वो बिछड़ा तो ज़िंदा ही मर जाऊँगी मैं।
वो छह दिन से है लापता, ले के आए —
कोई जा के उसका पता ले के आए।
वही है मेरी ज़िंदगी की कमाई,
वही तो है सदियों का आमाल मेरा।
कोई ला के दे दे मुझे लाल मेरा!
ये चैनल के एंकर कहाँ मर गए हैं?
ये गाँधी के बंदर कहाँ मर गए हैं?
मेरी चीख़ और मेरी फ़रियाद कहना,
ये मोदी से इक माँ की रूदाद कहना।
कहीं झूठ की शख्सियत बह न जाए,
ये नफ़रत की दीवार ढह न जाए।
है इक माँ के अश्कों का सैलाब साहब —
कहीं आपकी सल्तनत बह न जाए।
उजड़ सा गया है गुलिस्तां वतन का,
नहीं तो था भारत से खुशहाल मेरा।
कोई ला के दे दे मुझे लाल मेरा।
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मोहम्मद इमरान "प्रतापगढ़ी"