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ठोकर (Thokar Poem): जब डर लगे तो अक्षय चौहान 'आशु' की यह कविता पढ़ें | Hindi Motivational Poem

ठोकर (Thokar Poem): जब डर लगे तो अक्षय चौहान 'आशु' की यह कविता पढ़ें | Hindi Motivational Poem 

ठोकर: जब चलने से ज़्यादा गिरने का डर सताए

क्या आपके कदम भी कभी किसी अनजाने डर ने रोक लिए हैं? क्या कोई पुराना घाव या एक बुरा अनुभव आपको नई शुरुआत करने से रोकता है? जीवन के सफर में हम सब कभी न कभी उस मोड़ पर खड़े होते हैं, जहाँ चलने की हिम्मत तो होती है, लेकिन 'ठोकर' लग जाने का डर हमें आगे नहीं बढ़ने देता।

अगर आप भी इसी कशमकश से गुज़र रहे हैं, तो रेवाड़ी के युवा कवि अक्षय चौहान 'आशु' की यह कविता "ठोकर" आपके लिए ही है। यह कविता सिर्फ शब्द नहीं, बल्कि एक दोस्त की तरह है जो आपको याद दिलाती है कि ठोकरें हमें रोकने के लिए नहीं, बल्कि हमें और मज़बूती से चलना सिखाने के लिए आती हैं।

ठोकर कविता - जीवन के डर पर एक प्रेरणादायक हिंदी कविता

आइए, इन पंक्तियों में छिपे हौसले को महसूस करते हैं।

ठोकर - अक्षय चौहान 'आशु'

क्या हुआ,

चलने से घबरा रहे हो?

अच्छा, नहीं.

ठोकर खाने से!

या कुछ पुराने घाव से?


अच्छा,

मगर चलना कहां से शुरू किया?

ओह, ठोकरों से सीखा!


मगर क्या?

क्या वो थम जाने को कह गईं,

या आराम करने को,

या वापस चले जाने को?

ओ.


मगर वापस भी चल के ही जाना होगा,

पर तुम्हें कहां चलने से डर लगता है,

तुम तो ठोकर से डरते हो ना,

तो एक काम करो,

देखो ज़रा आस पास.

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एक और मुसाफिर तुमसा मिले,

और थामे उसका हाथ,

क्यों ना आगे चलो तुम साथ.


अच्छा,

डरते हो.

मुसाफिर से? नहीं?

अच्छा, हाथ थामने से,

नहीं,

तो बीच राह छूट जाने से?

हां.


मगर, क्या हर मौसम एक सा होता है?

क्या भंवरे फूलों के सूख जाने पर मर जाते हैं?

क्या नदियां सूख जाने पर पानी से नाराज़ हो जाती हैं?

नहीं?


मगर इंतज़ार तो बड़ा करते हैं,

भंवरों को फूलों के आने का पता है,

पतझड़ को वसंत के आने का,

और नदियों को बारिश का!


फिर तुम क्यों डरते हो?

किसी का साथ मांगने से.

पल दो पल या जीवन-भर हाथ थामने से?

क्यों डरते हो तुम ठोकर खाने से?


कविता का भाव और गहरा अर्थ

यह कविता जीवन के सबसे आम लेकिन सबसे गहरे डर को छूती है - असफलता का डर। कवि बहुत ही सरल भाषा में हमें समझाते हैं:

  • डर की असली वजह: हमारी असली समस्या चलना नहीं, बल्कि ठोकर लगने की आशंका है। हम मंज़िल तक तो पहुंचना चाहते हैं, पर रास्ते में गिरने से डरते हैं।

  • अनुभव ही शिक्षक है: कवि याद दिलाते हैं कि हमारा पहला कदम भी ठोकरों का ही नतीजा था। हम गिरकर ही चलना सीखते हैं, तो फिर आज उसी ठोकर से इतना क्यों घबराते हैं?

  • साथ का महत्व: जब अकेले हिम्मत टूट जाए, तो किसी हमसफर का हाथ थाम लेना कमज़ोरी नहीं, बल्कि समझदारी है। किसी का साथ उस मुश्किल रास्ते को आसान बना सकता है।

  • प्रकृति से सीख: कविता का सबसे खूबसूरत हिस्सा वह है जहाँ कवि प्रकृति का उदाहरण देते हैं। भँवरे फूलों का, पतझड़ वसंत का और नदियाँ बारिश का इंतज़ार करती हैं। वे उम्मीद नहीं छोड़तीं। इसी तरह, हमें भी किसी के बिछड़ जाने के डर से किसी का हाथ थामने से नहीं डरना चाहिए।

यह कविता हमें सिखाती है कि डरना स्वाभाविक है, लेकिन डर के कारण रुक जाना जीवन का अपमान है।

कवि परिचय अक्षय चौहान 'आशु'

कवि परिचय: अक्षय चौहान 'आशु'

नाम: अक्षय चौहान : लेखक नाम: आशु : इंस्टाग्राम: @akshay_.1919

मेरा नाम अक्षय चौहान है। मैं रेवाड़ी क्षेत्र के एक छोटे से गांव का रहने वाला हूँ। कॉलेज के प्रथम वर्ष में आने के बाद, घर से निकल बाहर आ कर जब समाज, देश - दुनिया और खुद की असलियत को भांपा, तब मन में कई चीजों को लेकर नए विचार आने लगे जिन्हें मैंने कविता के माध्यम से शब्दों में पिरोया और व्यक्त किया। मैं राजनीतिक, सामाजिक तथा प्रेम के विषयों पर कई कविताएं कर चुका हूँ। हिंदी भाषा की रचनाओं को मैं अपने विचार व्यक्त करने के लिए सबसे सटीक समझता हूँ। आशा है आगे भी इन रचनाओं के माध्यम से, कविताओं के माध्यम से मैं अपने विचार और अपने भाव सब तक पहुंचा पाऊंगा।


आपको यह कविता कैसी लगी? 

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