सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

New !!

मेरे अनकहे अल्फ़ाज़: एक अधूरे प्यार की दिल छूने वाली शायरी | Mere Ankahe Alfaaz - Abhishek Mishra

नौजवाँ लोग पजामे को बुरा कहते हैं – तंज़िया उर्दू शायरी, समाज और सियासत पर व्यंग्य

नौजवाँ लोग पजामे को बुरा कहते हैं – तंज़िया उर्दू शायरी, समाज और सियासत पर व्यंग्य

नौजवाँ लोग पजामे को बुरा कहते हैं -  Naujawaan Log Paijaame Ko Bura Kehte Hain


पैंट फट जाए तो क़िस्मत का लिखा कहते हैं

अपने अशआ'र में जुमअ को जुमा कहते हैं

नौजवाँ लोग पजामे को बुरा कहते हैं – तंज़िया उर्दू शायरी, समाज और सियासत पर व्यंग्य

ऐसे उस्ताद को फ़ख़रुश्शुअरा कहते हैं

नज़्म को गिफ़्ट रुबाई को अता कहते हैं


शेर वो ख़ुद नहीं कहते हैं चचा कहते हैं

आई-एम-एफ़ को समझते हैं मईशत का इलाज


लोग अल-कुहल को खाँसी की दवा कहते हैं

ये तो चलती नहीं पी-एम की इजाज़त के बग़ैर


इस को ऐवान-ए-सदारत की हवा कहते हैं

जाने कब इस में हमें आग लगानी पड़ जाए


हम सियासत के जनाज़े को चिता कहते हैं

जब से बच्चों को पसंद आई हैं हिन्दी फिल्में


मुझ को अब्बा नहीं कहते वो पिता कहते हैं

मेरी बारी पे हुकूमत ही बदल जाती है


अब वज़ारत को ग़ुबारे की हवा कहते हैं

लोड-शेडिंग की शिकायत पे दोलत्ती मारे


लोग बिजली के मिनिस्टर को गधा कहते हैं

भूक तख़्लीक़ का टैलेंट बढ़ा देती है


पेट ख़ाली हो तो हम शेर नया कहते हैं

-

खालिद इरफ़ान


इस शायरी की ख़ास बातें

समाज पर तंज़ – पहली पंक्तियों में नौजवानों के कपड़ों और रवैये को लेकर शायर ने दिलचस्प अंदाज़ में बात कही है।

सियासत की हक़ीक़त – बिजली मंत्री, वज़ारत और पीएम पर शेर पढ़कर शायर ने शासन की कमज़ोरियों को मज़ाक़िया लेकिन कड़वे अंदाज़ में दिखाया है।

तहज़ीब में बदलाव – "अब्बा" से "पिता" का बदलना सिर्फ़ एक शब्द नहीं, बल्कि पीढ़ियों के बीच की दूरी और बदलती संस्कृति की निशानी है।

भूख और तख़्लीक़ – आख़िरी शेर में भूख और क्रिएटिविटी का रिश्ता दिखाकर शायर ने ग़रीबी और कला की गहराई को छू लिया है।

क्यों है यह शायरी आज भी प्रासंगिक?

आज का समाज भी इन्हीं समस्याओं से जूझ रहा है –

नौजवानों का बदलता फैशन और सोच।

सियासी वादे और उनका खोखलापन।

परंपराओं से दूरी और आधुनिकता की ओर झुकाव।

आम आदमी की तकलीफ़ें और उनका व्यंग्यपूर्ण बयान।

यही वजह है कि यह शायरी न सिर्फ़ पढ़ने में दिलचस्प है, बल्कि सोचने पर भी मजबूर कर देती है।

sad urdu poems and ghazals

ज़ुल्फ़ें सफ़ेद हो गईं उन्नीस साल में - Zulfein Safed Hogyi Unnees Saal Mein

Famous Poems

सादगी तो हमारी जरा देखिये | Saadgi To Hamari Zara Dekhiye Lyrics | Nusrat Fateh Ali Khan Sahab

Saadgi To Hamari Zara Dekhiye Lyrics सादगी तो हमारी जरा देखिये   सादगी तो हमारी जरा देखिये,  एतबार आपके वादे पे कर लिया | मस्ती में इक हसीं को ख़ुदा कह गए हैं हम,  जो कुछ भी कह गए वज़ा कह गए हैं हम  || बारस्तगी तो देखो हमारे खुलूश कि,  किस सादगी से तुमको ख़ुदा कह गए हैं हम || किस शौक किस तमन्ना किस दर्ज़ा सादगी से,  हम करते हैं आपकी शिकायत आपही से || तेरे अताब के रूदाद हो गए हैं हम,  बड़े खलूस से बर्बाद हो गए हैं हम ||

महाभारत पर रोंगटे खड़े कर देने वाली हिंदी कविता - Mahabharata Poem On Arjuna

|| महाभारत पर रोंगटे खड़े कर देने वाली कविता || || Mahabharata Poem On Arjuna ||   तलवार, धनुष और पैदल सैनिक कुरुक्षेत्र में खड़े हुए, रक्त पिपासु महारथी इक दूजे सम्मुख अड़े हुए | कई लाख सेना के सम्मुख पांडव पाँच बिचारे थे, एक तरफ थे योद्धा सब, एक तरफ समय के मारे थे | महा-समर की प्रतिक्षा में सारे ताक रहे थे जी, और पार्थ के रथ को केशव स्वयं हाँक रहे थे जी ||    रणभूमि के सभी नजारे देखन में कुछ खास लगे, माधव ने अर्जुन को देखा, अर्जुन उन्हें  उदास लगे | कुरुक्षेत्र का महासमर एक पल में तभी सजा डाला, पांचजन्य  उठा कृष्ण ने मुख से लगा बजा डाला | हुआ शंखनाद जैसे ही सब का गर्जन शुरु हुआ, रक्त बिखरना हुआ शुरु और सबका मर्दन शुरु हुआ | कहा कृष्ण ने उठ पार्थ और एक आँख को मीच जड़ा, गाण्डिव पर रख बाणों को प्रत्यंचा को खींच जड़ा | आज दिखा दे रणभूमि में योद्धा की तासीर यहाँ, इस धरती पर कोई नहीं, अर्जुन के जैसा वीर यहाँ ||    सुनी बात माधव की तो अर्जुन का चेहरा उतर गया, ...

सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है - Sach Hai Vipatti Jab Aati Hai

  सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है रामधारी सिंह "दिनकर" हिंदी कविता दिनकर की हिंदी कविता Sach Hai Vipatti Jab Aati Hai सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है, शूरमा नहीं विचलित होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते, विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं। मुख से न कभी उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं, जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग-निरत नित रहते हैं, शूलों का मूल नसाने को, बढ़ खुद विपत्ति पर छाने को। है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके वीर नर के मग में ? खम ठोंक ठेलता है जब नर , पर्वत के जाते पाँव उखड़। मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है । Sach Hai Vipatti Jab Aati Hai गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर, मेंहदी में जैसे लाली हो, वर्तिका-बीच उजियाली हो। बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है। पीसा जाता जब इक्षु-दण्ड , झरती रस की धारा अखण्ड , मेंहदी जब सहती है प्रहार, बनती ललनाओं का सिंगार। जब फूल पिरोये जाते हैं, हम उनको गले लगाते हैं। वसुधा का नेता कौन हुआ? भूखण्ड-विजेता कौन हुआ ? अतुलित यश क्रेता कौन हुआ? नव-धर्म प्...

Kahani Karn Ki Poem Lyrics By Abhi Munde (Psycho Shayar) | कहानी कर्ण की - Karna Par Hindi Kavita

Kahani Karn Ki Poem Lyrics By Psycho Shayar   कहानी कर्ण की - Karna Par Hindi Kavita पांडवों  को तुम रखो, मैं  कौरवों की भी ड़ से , तिलक-शिकस्त के बीच में जो टूटे ना वो रीड़ मैं | सूरज का अंश हो के फिर भी हूँ अछूत मैं , आर्यवर्त को जीत ले ऐसा हूँ सूत पूत मैं |   कुंती पुत्र हूँ, मगर न हूँ उसी को प्रिय मैं, इंद्र मांगे भीख जिससे ऐसा हूँ क्षत्रिय मैं ||   कुंती पुत्र हूँ, मगर न हूँ उसी को प्रिय मैं, इंद्र मांगे भीख जिससे ऐसा हूँ क्षत्रिय मैं ||   आओ मैं बताऊँ महाभारत के सारे पात्र ये, भोले की सारी लीला थी किशन के हाथ सूत्र थे | बलशाली बताया जिसे सारे राजपुत्र थे, काबिल दिखाया बस लोगों को ऊँची गोत्र के ||   सोने को पिघलाकर डाला शोन तेरे कंठ में , नीची जाती हो के किया वेद का पठंतु ने | यही था गुनाह तेरा, तू सारथी का अंश था, तो क्यों छिपे मेरे पीछे, मैं भी उसी का वंश था ?   यही था गुनाह तेरा, तू सारथी का अंश था, तो क्यों छिपे मेरे पीछे, मैं भी उसी का वंश था ? ऊँच-नीच की ये जड़ वो अहंकारी द्रोण था, वीरों की उसकी सूची में, अर्...

Dar Pe Sudama Garib Aa Gaya Hai Lyrics | दर पे सुदामा गरीब आ गया है

Dar Pe Sudama Garib Aa Gaya Hai Lyrics दर पे सुदामा गरीब आ गया है  लिरिक्स देखो देखो ये गरीबी, ये गरीबी का हाल । कृष्ण के दर पे, विश्वास लेके आया हूँ ।। मेरे बचपन का यार है, मेरा श्याम । यही सोच कर मैं, आस कर के आया हूँ ।। अरे द्वारपालों, कन्हैया से कह दो । अरे द्वारपालों, कन्हैया से कह दो ।। के दर पे सुदामा, गरीब आ गया है । के दर पे सुदामा, गरीब आ गया है ।। भटकते भटकते, ना जाने कहां से । भटकते भटकते, ना जाने कहां से ।। तुम्हारे महल के, करीब आ गया है । तुम्हारे महल के, करीब आ गया है ।। ना सर पे है पगड़ी, ना तन पे हैं जामा । बता दो कन्हैया को, नाम है सुदामा ।। Dar Pe Sudama Garib Aa Gaya Hai Lyrics दर पे सुदामा गरीब आ गया है  लिरिक्स बता दो कन्हैया को, नाम है सुदामा । बता दो कन्हैया को, नाम है सुदामा ।। ना सर पे है पगड़ी, ना तन पे हैं जामा । बता दो कन्हैया को, नाम है सुदामा ।। हो..ना सर पे है पगड़ी, ना तन पे हैं जामा । बता दो कन्हैया को, नाम है सुदामा ।। बता दो कन्हैया को । नाम है सुदामा ।। इक बार मोहन, से जाकर के कह दो । तुम इक बार मोहन, से जाकर के कह दो ।। के मिलने सखा, बदनसीब आ...