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रश्मिरथी सर्ग 1 (Rashmirathi Sarg 1): सम्पूर्ण कविता, सारांश और भावार्थ | दिनकर की कालजयी रचना

रश्मिरथी सर्ग 1 (Rashmirathi Sarg 1): सम्पूर्ण कविता, सारांश और भावार्थ | दिनकर की कालजयी रचना

रश्मिरथी सर्ग 1 (Rashmirathi Sarg 1): सम्पूर्ण कविता, सारांश और भावार्थ | दिनकर की कालजयी रचना

रश्मिरथी सर्ग 1: एक परिचय

क्या होता है जब प्रतिभा को जाति के तराजू पर तौला जाता है? जब योग्यता, कुल और गोत्र के आडंबर के नीचे दबकर दम तोड़ने लगती है?

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' का कालजयी खंडकाव्य 'रश्मिरथी' (1952) इन्हीं प्रश्नों का एक ओजस्वी और ज्वलंत उत्तर है। 'रश्मिरथी', जिसका अर्थ है 'सूर्य की किरणों का रथी', महाभारत के सबसे प्रतापी और सबसे उपेक्षित योद्धा 'कर्ण' के जीवन पर आधारित है।

Karna, the main character of Rashmirathi Sarg 1, stands in a field at sunset with his bow, ready to challenge the world.

Rashmirathi Sarg 1 (रश्मिरथी प्रथम सर्ग) इस महाकाव्य की नींव है। यह सर्ग केवल कर्ण के जन्म और यौवन की कथा नहीं है, बल्कि यह उस सामाजिक विद्रूपता और पाखंड पर पहला प्रहार है, जिसने कर्ण को 'सूतपुत्र' कहकर उसके तेज को ढकने का प्रयास किया। यह सर्ग कर्ण के शौर्य, उसके अपमान और उसके आत्म-निर्माण की गाथा है। Check This Out - हाथ जोड़कर बोले माधव क्या प्रतिज्ञा भूल गए... (भीष्म)

रश्मिरथी प्रथम सर्ग: सम्पूर्ण कविता (Rashmirathi Sarg 1 Full Poem)

कर्ण का जन्म, बचपन, और जवानी

‘जय हो’ जग में जले जहाँ भी, नमन पुनीत अनल को,

जिस नर में भी बसे, हमारा नमन तेज को, बल को।

किसी वृन्त पर खिले विपिन में, पर, नमस्य है फूल,

सुधी खोजते नहीं, गुणों का आदि, शक्ति का मूल।


ऊँच-नीच का भेद न माने, वही श्रेष्ठ ज्ञानी है,

दया-धर्म जिसमें हो, सबसे वही पूज्य प्राणी है।

क्षत्रिय वही, भरी हो जिसमें निर्भयता की आग,

सबसे श्रेष्ठ वही ब्राह्मण है, हो जिसमें तप-त्याग।


तेजस्वी सम्मान खोजते नहीं गोत्र बतला के,

पाते हैं जग में प्रशस्ति अपना करतब दिखला के।

हीन मूल की ओर देख जग गलत कहे या ठीक,

वीर खींच कर ही रहते हैं इतिहासों में लीक।


जिसके पिता सूर्य थे, माता कुन्ती सती कुमारी,

उसका पलना हुआ धार पर बहती हुई पिटारी।

सूत-वंश में पला, चखा भी नहीं जननि का क्षीर,

निकला कर्ण सभी युवकों में तब भी अद्‌भुत वीर।


तन से समरशूर, मन से भावुक, स्वभाव से दानी,

जाति-गोत्र का नहीं, शील का, पौरुष का अभिमानी।

ज्ञान-ध्यान, शस्त्रास्त्र, शास्त्र का कर सम्यक् अभ्यास,

अपने गुण का किया कर्ण ने आप स्वयं सुविकास।


अलग नगर के कोलाहल से, अलग पुरी-पुरजन से,

कठिन साधना में उद्योगी लगा हुआ तन-मन से।

निज समाधि में निरत, सदा निज कर्मठता में चूर,

वन्यकुसुम-सा खिला कर्ण, जग की आँखों से दूर।


नहीं फूलते कुसुम मात्र राजाओं के उपवन में,

अमित बार खिलते वे पुर से दूर कुञ्ज-कानन में।

समझे कौन रहस्य? प्रकृति का बड़ा अनोखा हाल,

गुदड़ी में रखती चुन-चुन कर बड़े कीमती लाल।


जलद-पटल में छिपा, किन्तु रवि कब तक रह सकता है?

युग की अवहेलना शूरमा कब तक सह सकता है?

पाकर समय एक दिन आखिर उठी जवानी जाग,

फूट पड़ी सबके समक्ष पौरुष की पहली आग।


रंगभूमि में अर्जुन से टकराव

रंग-भूमि में अर्जुन था जब समाँ अनोखा बाँधे,

बढ़ा भीड़-भीतर से सहसा कर्ण शरासन साधे।

कहता हुआ: “तालियों से क्या रहा गर्व में फूल?

अर्जुन! तेरा सुयश अभी क्षण में होता है धूल।


तूने जो-जो किया, उसे मैं भी दिखला सकता हूँ,

चाहे तो कुछ नयी कलाएँ भी सिखला सकता हूँ।

आँख खोल कर देख, कर्ण के हाथों का व्यापार,

फूले सस्ता सुयश प्राप्त कर, उस नर को धिक्कार।”


इस प्रकार कह लगा दिखाने कर्ण कलाएँ रण की,

सभा स्तब्ध रह गयी, गयी रह आँख टँगी जन-जन की।

मन्त्र-मुग्ध-सा मौन चतुर्दिक् जन का पारावार,

गूँज रही थी मात्र कर्ण की धन्वा की टंकार।


फिरा कर्ण, त्यों ‘साधु-साधु’ कह उठे सकल नर-नारी,

राजवंश के नेताओं पर पड़ी विपद् अति भारी।

द्रोण, भीष्म, अर्जुन, सब फीके, सब हो रहे उदास,

एक सुयोधन बढ़ा, बोलते हुए: “वीर! शाबाश!”


कर्ण की जाति पर प्रश्न और उसका उत्तर

द्वन्द्व-युद्ध के लिए पार्थ को फिर उसने ललकारा,

अर्जुन को चुप ही रहने का गुरु ने किया इशारा।

कृपाचार्य ने कहा: “सुनो हे वीर युवक अनजान।

भरत-वंश-अवतंस पाण्डु की अर्जुन है संतान।”


“क्षत्रिय है, यह राजपुत्र है, यों ही नहीं लड़ेगा,

जिस-तिस से हाथापाई में कैसे कूद पड़ेगा?

अर्जुन से लड़ना हो तो मत गहो सभा में मौन,

नाम-धाम कुछ कहो, बताओ कि तुम जाति हो कौन?”


‘जाति! हाय री जाति!’ कर्ण का हृदय क्षोभ से डोला,

कुपित सूर्य की ओर देख वह वीर क्रोध से बोला:

“जाति-जाति रटते, जिनकी पूँजी केवल पाखण्ड,

मैं क्या जानूँ जाति? जाति हैं ये मेरे भुजदंड।


ऊपर सिर पर कनक-छत्र, भीतर काले-के-काले,

शरमाते हैं नहीं जगत् में जाति पूछनेवाले।

सूतपुत्र हूँ मैं, लेकिन थे पिता पार्थ के कौन?

साहस हो तो कहो, ग्लानि से रह जाओ मत मौन।


मस्तक ऊँचा किये, जाति का नाम लिये चलते हो,

पर, अधर्ममय शोषण के बल से सुख में पलते हो।

अधम जातियों से थर-थर काँपते तुम्हारे प्राण,

छल से माँग लिया करते हो अंगूठे का दान।


पूछो मेरी जाति, शक्ति हो तो, मेरे भुजबल से

रवि-समान दीपित ललाट से और कवच-कुण्डल से।

पढ़ो उसे जो झलक रहा है मुझमें तेज-प़काश,

मेरे रोम-रोम में अंकित है मेरा इतिहास।


अर्जुन बड़ा वीर क्षत्रिय है, तो आगे वह आवे,

क्षत्रियत्व का तेज जरा मुझको भी तो दिखलावे।

अभी छीन इस राजपुत्र के कर से तीर-कमान,

अपनी महाजाति की दूँगा मैं तुमको पहचान।”

A dynamic shot of an archer in intense battle, drawing a bow with arrows flying around.

कृपाचार्य ने कहा: “वृथा तुम क्रुद्ध हुए जाते हो,

साधारण-सी बात, उसे भी समझ नहीं पाते हो।

राजपुत्र से लड़े बिना होता हो अगर अकाज,

अर्जित करना तुम्हें चाहिये पहले कोई राज।”


दुर्योधन का समर्थन, कर्ण को अंगदेश, और उनकी मैत्री

कर्ण हतप्रभ हुआ तनिक, मन-ही-मन कुछ भरमाया,

सह न सका अन्याय, सुयोधन बढ़कर आगे आया।

बोला: “बड़ा पाप है करना, इस प्रकार, अपमान,

उस नर का जो दीप रहा हो सचमुच, सूर्य समान।


मूल जानना बड़ा कठिन है नदियों का, वीरों का,

धनुष छोड़ कर और गोत्र क्या होता रणधीरों का?

पाते हैं सम्मान तपोबल से भूतल पर शूर,

‘जाति-जाति’ का शोर मचाते केवल कायर क्रूर।


किसने देखा नहीं, कर्ण जब निकल भीड़ से आया,

अनायास आतंक एक सम्पूर्ण सभा पर छाया।

कर्ण भले ही सूतपुत्र हो, अथवा श्वपच, चमार,

मलिन, मगर, इसके आगे हैं सारे राजकुमार।


करना क्या अपमान ठीक है इस अनमोल रतन का,

मानवता की इस विभूति का, धरती के इस धन का।

बिना राज्य यदि नहीं वीरता का इसको अधिकार,

तो मेरी यह खुली घोषणा सुने सकल संसार।


अंगदेश का मुकुट कर्ण के मस्तक पर धरता हूँ,

एक राज्य इस महावीर के हित अर्पित करता हूँ।”

रखा कर्ण के सिर पर उसने अपना मुकुट उतार,

गूँजा रंगभूमि में दुर्योधन का जय-जयकार।


कर्ण चकित रह गया सुयोधन की इस परम कृपा से,

फूट पड़ा मारे कृतज्ञता के भर उसे भुजा से।

दुर्योधन ने हृदय लगा कर कहा: “बन्धु! हो शान्त,

मेरे इस क्षुद्रोपहार से क्यों होता उद्‌भ्रान्त?


किया कौन-सा त्याग अनोखा, दिया राज यदि तुझको!

अरे, धन्य हो जायँ प्राण, तू ग्रहण करे यदि मुझको।”

कर्ण और गल गया: “हाय, मुझ पर भी इतना स्नेह!

वीर बन्धु! हम हुए आज से एक प्राण, दो देह।


भरी सभा के बीच आज तूने जो मान दिया है,

पहले-पहल मुझे जीवन में जो उत्थान दिया है।

उऋण भला होऊँगा उससे चुका कौन-सा दाम?

कृपा करें दिनमान कि आऊँ तेरे कोई काम।”


जनता का समर्थन और भीम का ताना

घेर खड़े हो गये कर्ण को मुदित, मुग्ध पुरवासी,

होते ही हैं लोग शूरता-पूजन के अभिलाषी।

चाहे जो भी कहे द्वेष, ईर्ष्या, मिथ्या अभिमान,

जनता निज आराध्य वीर को, पर लेती पहचान।


लगे लोग पूजने कर्ण को कुंकुम और कमल से,

रंग-भूमि भर गयी चतुर्दिक् पुलकाकुल कलकल से।

विनयपूर्ण प्रतिवन्दन में ज्यों झुका कर्ण सविशेष,

जनता विकल पुकार उठी: “जय महाराज अंगेश।


‘महाराज अंगेश!’ तीर-सा लगा हृदय में जा के,

विफल क्रोध में कहा भीम ने और नहीं कुछ पा के:

“हय की झाड़े पूँछ, आज तक रहा यही तो काज,

सूत-पुत्र किस तरह चला पायेगा कोई राज?”


दुर्योधन ने कहा: “भीम! झूठे बकबक करते हो,

कहलाते धर्मज्ञ, द्वेष का विष मन में धरते हो।

बड़े वंश से क्या होता है, खोटे हों यदि काम?

नर का गुण उज्जवल चरित्र है, नहीं वंश-धन-धान।


सचमुच ही तो कहा कर्ण ने, तुम्हीं कौन हो, बोलो,

जन्मे थे किस तरह? ज्ञात हो, तो रहस्य यह खोलो?

अपना अवगुण नहीं देखता, अजब जगत् का हाल,

निज आँखों से नहीं सुझता, सच है अपना भाल।”


कृपाचार्य आ पड़े बीच में, बोले: “छिः! यह क्या है?

तुम लोगों में बची नाम को भी क्या नहीं हया है?

चलो, चलें घर को, देखो; होने को आयी शाम,

थके हुए होगे तुम सब, चाहिए तुम्हें आराम।”

Close-up of an intense archer in the rain, aiming a golden bow during a battle.

गुरु द्रोण की चिंता और कुन्ती की पीड़ा

रंग-भूमि से चले सभी पुरवासी मोद मनाते,

कोई कर्ण, पार्थ का कोई-गुण आपस में गाते।

सबसे अलग चले अर्जुन को लिए हुए गुरु द्रोण,

कहते हुए: “पार्थ! पहुँचा यह राहु नया फिर कौन?


जन्मे नहीं जगत् में अर्जुन! कोई प्रतिबल तेरा,

टँगा रहा है एक इसी पर ध्यान आज तक मेरा।

एकलव्य से लिया अँगूठा, कढ़ी न मुख से आह,

रखना चाहता हूँ निष्कंटक बेटा! तेरी राह।


मगर, आज जो कुछ देखा, उससे धीरज हिलता है,

मुझे कर्ण में चरम वीरता का लक्षण मिलता है।

बढ़ता गया अगर निष्कंटक यह उद्‌भट भट बाल,

अर्जुन! तेरे लिये कभी यह हो सकता है काल!


सोच रहा हूँ क्या उपाय, मैं इसके साथ करूँगा,

इस प्रचंडतम धूमकेतु का कैसे तेज हरूँगा?

शिष्य बनाऊँगा न कर्ण को, यह निश्चित है बात;

रखना ध्यान विकट प्रतिभट का, पर तू भी हे तात!”


रंग-भूमि से लिये कर्ण को, कौरव शंख बजाते,

चले झूमते हुए खुशी में गाते, मौज मनाते।

कञ्चन के युग शैल-शिखर-सम सुगठित, सुघर सुवर्ण,

गलबाँही दे चले परस्पर दुर्योधन औ’ कर्ण।


बड़ी तृप्ति के साथ सूर्य शीतल अस्ताचल पर से,

चूम रहे थे अंग पुत्र का स्निग्ध-सुकोमल कर से।

आज न था प्रिय उन्हें दिवस का समय सिद्ध अवसान,

विरम गया क्षण एक क्षितिज पर गति को छोड़ विमान।


और हाय, रनिवास चला वापस जब राजभवन को,

सबके पीछे चली एक विकला मसोसती मन को।

उजड़ गये हों स्वप्न कि जैसे हार गयी हो दाँव,

नहीं उठाये भी उठ पाते थे कुन्ती के पाँव।

रश्मिरथी सर्ग 1 का सारांश (Rashmirathi Sarg 1 Summary in Hindi)

प्रथम सर्ग की कहानी कर्ण के परिचय और उसके सार्वजनिक उदय के साथ शुरू होती है।

1. कर्ण का जन्म और पालन-पोषण

दिनकर जी सर्ग की शुरुआत कर्ण के मूल की महिमा से करते हैं। वह कर्ण को 'पुनीत अनल' (पवित्र अग्नि) और 'तेज' का प्रतीक बताते हैं। वह स्पष्ट करते हैं कि गुणी और वीर व्यक्ति अपने गोत्र या कुल से नहीं, बल्कि अपने 'करतब' (कार्यों) से दुनिया में प्रशस्ति पाते हैं।

  • 'तेजस्वी सम्मान खोजते नहीं गोत्र बतला के,'

  • 'पाते हैं जग में प्रशस्ति अपना करतब दिखला के।'

कवि बताते हैं कि जिसके पिता स्वयं सूर्य थे और माता सती कुंती (कुमारी अवस्था में), उस बालक का पालना एक बहती हुई पिटारी बनी। उसे 'सूत-वंश' (Suta-Vansh) में एक सारथी, अधिरथ, ने पाला। अपनी माँ का दूध पिए बिना भी वह बालक अपने पौरुष और शील के बल पर एक अद्भुत वीर बनकर उभरा।

2. रंगभूमि में आगमन और अर्जुन को चुनौती

सर्ग का मुख्य घटनाक्रम रंगभूमि में घटित होता है, जहाँ गुरु द्रोण के शिष्य, विशेषकर अर्जुन, अपने शस्त्र-कौशल का प्रदर्शन कर रहे होते हैं। अर्जुन की धनुर्विद्या देखकर जब सारी सभा "साधु-साधु" कह उठती है और अर्जुन गर्व से फूल रहे होते हैं, तभी कर्ण रंगभूमि में प्रवेश करता है।

वह अर्जुन को ललकारता है:

  • "तालियों से क्या रहा गर्व में फूल?"

  • "अर्जुन! तेरा सुयश अभी क्षण में होता है धूल।"

कर्ण, अर्जुन द्वारा दिखाए गए सभी करतबों को दोहराता है और कुछ नई कलाएँ भी दिखाता है, जिसे देखकर सभा स्तब्ध रह जाती है। केवल दुर्योधन प्रसन्न होकर "वीर! शाबाश!" कह उठता है।

3. 'जाति' पर प्रश्न और कर्ण का ओजस्वी उत्तर

जब कर्ण द्वंद्व-युद्ध के लिए अर्जुन को ललकारता है, तो कृपाचार्य बीच में आ जाते हैं। वे कर्ण से उसका 'नाम-धाम' और 'जाति' पूछते हैं, क्योंकि एक 'राजपुत्र' (अर्जुन) किसी 'जिस-तिस' (निम्न कुलीन) से नहीं लड़ सकता।

Close-up portrait of Bhishma Pitamah, the supreme warrior from Mahabharata, with white beard, crown, and holding a spear.

यह सुनकर कर्ण का हृदय क्षोभ से भर उठता है। वह सूर्य की ओर देखकर अपना प्रसिद्ध और ओजस्वी उत्तर देता है:

  • "जाति-जाति रटते, जिनकी पूँजी केवल पाखण्ड,"

  • "मैं क्या जानूँ जाति? जाति हैं ये मेरे भुजदंड।"

वह सभा को चुनौती देता है कि उसकी जाति उसके भुजबल, उसके रवि-समान ललाट और उसके कवच-कुंडल से पूछें। वह कहता है कि वह 'सूतपुत्र' है, लेकिन पार्थ (अर्जुन) के पिता कौन थे, यह साहस हो तो कोई बताए (पांडु या...)

4. दुर्योधन का हस्तक्षेप और 'अंगराज' कर्ण

कृपाचार्य कहते हैं कि यदि राजपुत्र से लड़ना है, तो पहले कोई 'राज' (राज्य) अर्जित करो। कर्ण यह सुनकर हतप्रभ और अपमानित महसूस करता है।

तभी, इस अन्याय को न सहते हुए, सुयोधन (दुर्योधन) आगे आता है। वह कर्ण के पक्ष में बोलता है और 'जाति-जाति' का शोर मचाने वालों को 'कायर क्रूर' कहता है। वह घोषणा करता है कि वीरता किसी गोत्र की मोहताज नहीं है।

  • "मूल जानना बड़ा कठिन है नदियों का, वीरों का,"

  • "धनुष छोड़ कर और गोत्र क्या होता रणधीरों का?"

उसी क्षण, दुर्योधन अपना मुकुट उतारकर कर्ण को 'अंगदेश' (Angadesh) का राजा घोषित कर उसका राज्याभिषेक कर देता है।

5. मित्रता का आरम्भ और कुंती की पीड़ा

दुर्योधन की इस परम कृपा से कर्ण अभिभूत हो जाता है और उसे गले लगा लेता है। वह कहता है कि वह इस मान का ऋणी रहेगा और प्राण देकर भी इस मित्रता को निभाएगा।

  • "वीर बन्धु! हम हुए आज से एक प्राण, दो देह।"

सभा में कर्ण की जय-जयकार होने लगती है। लेकिन जब राजभवन वापस लौटते समय, सबसे पीछे एक विकल स्त्री (कुंती) मन मसोस कर चल रही थी, जिसे अपने खोए हुए पुत्र की पहचान मिल गई थी।

रश्मिरथी सर्ग 1 का भावार्थ और विश्लेषण (Rashmirathi Sarg 1 Poem Meaning)

प्रथम सर्ग केवल एक कहानी नहीं, बल्कि राष्ट्रकवि दिनकर का सामाजिक दर्शन है। इसका भावार्थ (Rashmirathi Bhavarth) कई स्तरों पर समझा जा सकता है।

'तेजस्वी सम्मान खोजते नहीं गोत्र बतला के'

यह पंक्ति Rashmirathi Sarg 1 का मूलमंत्र है। दिनकर जी भारत की स्वतंत्रता के बाद (1952) एक नए राष्ट्र का स्वप्न देख रहे थे। यह वह राष्ट्र था जो जन्म-आधारित वर्ण व्यवस्था और जातिवाद को तोड़कर योग्यता-आधारित (Merit-based) समाज की स्थापना करे।

  • विश्लेषण: कवि कहते हैं कि असली ज्ञानी, पूज्य, क्षत्रिय या ब्राह्मण वह है जिसमें 'निर्भयता', 'तप-त्याग' और 'दया-धर्म' हो, न कि वह जो केवल उच्च कुल में जन्मा हो। कर्ण इसी योग्यता का प्रतीक है, जिसे समाज 'हीन मूल' (नीची जड़) का कहकर ठुकराता है, लेकिन वह 'इतिहासों में लीक' (इतिहास में अपना रास्ता) खुद खींचकर बनाता है।

'जाति! हाय री जाति!': सामाजिक पाखंड पर प्रहार

जब कृपाचार्य कर्ण से उसकी जाति पूछते हैं, तो यह कर्ण का नहीं, बल्कि उसकी प्रतिभा का अपमान है। कर्ण का क्रोध केवल व्यक्तिगत अपमान का क्रोध नहीं है, यह सदियों से शोषित और उपेक्षित वर्ग का सम्मिलित क्रोध है।

  • विश्लेषण: दिनकर जी कर्ण के माध्यम से पूछते हैं:

    1. "ऊपर सिर पर कनक-छत्र, भीतर काले-के-काले": वह समाज के उन ठेकेदारों पर व्यंग्य करते हैं जो बाहर से ऊँचे दिखते हैं पर भीतर से पाखंडी हैं।

    2. "छल से माँग लिया करते हो अंगूठे का दान": यह सीधा-सीधा द्रोणाचार्य पर कटाक्ष है, जिन्होंने एकलव्य से उसका अंगूठा माँगकर एक प्रतिभा का हनन किया था। दिनकर स्पष्ट करते हैं कि यह 'अधर्ममय शोषण' है।

    3. "पूछो मेरी जाति... मेरे भुजबल से": कर्ण अपनी पहचान अपने जन्म से नहीं, अपने कर्म और अपनी शक्ति से स्थापित करता है। यह व्यक्तिवाद और पौरुष की स्थापना है।

दुर्योधन और कर्ण की मित्रता: एक मनोवैज्ञानिक विश्लेषण

दुर्योधन का कर्ण को 'अंगराज' बनाना केवल एक राजनीतिक चाल नहीं थी। दिनकर इसे एक मनोवैज्ञानिक स्तर पर भी दिखाते हैं। दुर्योधन स्वयं को समाज द्वारा उपेक्षित (पांडवों की तुलना में) महसूस करता था। जब वह कर्ण को, जो उससे भी अधिक प्रताड़ित था, अपमानित होते देखता है, तो वह उससे सहानुभूति रखता है।

  • विश्लेषण: यह दो उपेक्षितों का मिलन था। दुर्योधन ने कर्ण में वह 'तेज' देखा, जो पांडवों, विशेषकर अर्जुन, को परास्त कर सकता था। वहीं, कर्ण को दुर्योधन में वह 'सम्मान' और 'स्वीकृति' मिली, जो उसे पूरी सभा, उसके गुरुओं और यहाँ तक कि उसकी अपनी माँ (कुंती) से भी नहीं मिली थी। यह सम्मान ही कर्ण को दुर्योधन के प्रति आजीवन निष्ठावान बना देता है।

Karna, the archer, standing in a field at sunset, aiming his bow with a glowing chest emblem.

कुंती की पीड़ा: एक मौन पश्चाताप

सर्ग के अंत में कुंती की विकलता (Karna Kunti Poem का बीज) बहुत मार्मिक है। वह उस सभा में अकेली थी जो जानती थी कि 'सूतपुत्र' कहा जाने वाला वह वीर वास्तव में उसका अपना 'ज्येष्ठ पुत्र' है। वह देख रही थी कि उसका एक पुत्र (अर्जुन) दूसरे पुत्र (कर्ण) को अपमानित कर रहा है, और वह कुछ नहीं कर सकती। यह उसके अतीत के 'पाप' या 'भूल' का वर्तमान में मिला दंड था।

रश्मिरथी प्रथम सर्ग की साहित्यिक विशेषताएँ

  • रस: यह सर्ग 'वीर रस' से ओत-प्रोत है। कर्ण के संवादों में 'रौद्र रस' की झलक भी मिलती है।

  • भाषा: दिनकर जी ने शुद्ध, परिष्कृत और प्रवाहपूर्ण 'खड़ी बोली' हिंदी का प्रयोग किया है। भाषा ओजस्वी और तत्सम शब्दों से युक्त है, जो खंडकाव्य की गरिमा के अनुरूप है।

  • शैली: प्रबंधात्मक शैली में रचित यह काव्य, संवादों और वर्णनात्मकता का सुंदर संतुलन है।

  • अलंकार: 'जाति-जाति' में पुनरुक्ति प्रकाश, 'रवि-समान दीपित ललाट' में उपमा, और पूरे काव्य में रूपक और मानवीकरण का सुंदर प्रयोग हुआ है।

विद्यार्थियों और UPSC उम्मीदवारों के लिए विशेष

जो छात्र UPSC या अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं, उनके लिए Rashmirathi Sarg 1 का अध्ययन कई दृष्टिकोणों से महत्वपूर्ण है:

  1. सामाजिक न्याय (Social Justice): यह सर्ग भारत में जाति-आधारित भेदभाव और आरक्षण की बहस के ऐतिहासिक और पौराणिक संदर्भ को समझने में मदद करता है।

  2. नैतिकता (Ethics - GS Paper 4): यह 'जन्म बनाम कर्म' (Birth vs. Actions) की बहस को उठाता है। क्या व्यक्ति का मूल्य उसके कुल से है या उसके गुणों से? कर्ण का चरित्र 'नैतिक द्वंद्व' (Ethical Dilemma) का प्रतीक है।

  3. निबंध (Essay Paper): "तेजस्वी सम्मान खोजते नहीं गोत्र बतला के" या "मूल जानना बड़ा कठिन है नदियों का, वीरों का" जैसी पंक्तियाँ योग्यता, सामाजिक पाखंड या नेतृत्व जैसे विषयों पर निबंध के लिए उत्कृष्ट उद्धरण (Quotes) हैं।


रश्मिरथी सर्ग 1 से संबंधित अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

प्रश्न 1: रश्मिरथी सर्ग 1 का मुख्य संदेश क्या है? उत्तर: रश्मिरथी सर्ग 1 का मुख्य संदेश है कि व्यक्ति की पहचान और उसका सम्मान उसके जन्म या कुल से नहीं, बल्कि उसके पौरुष, गुण और कर्मों से होना चाहिए। यह योग्यता को जातिवाद पर वरीयता देने का प्रबल आह्वान है।

प्रश्न 2: रश्मिरथी में 'रश्मि' और 'रथी' का क्या अर्थ है? उत्तर: 'रश्मि' का अर्थ है 'सूर्य की किरण' और 'रथी' का अर्थ है 'रथ पर सवार योद्धा'। 'रश्मिरथी' का शाब्दिक अर्थ है "सूर्य की किरणों का रथी"। यह उपाधि कर्ण को दी गई है, क्योंकि वह सूर्य पुत्र थे और उनका तेज भी सूर्य के समान ही था।

प्रश्न 3: कर्ण को अंगराज किसने और क्यों बनाया? उत्तर: कर्ण को 'अंगराज' दुर्योधन ने बनाया था। जब कृपाचार्य ने कर्ण को उसकी 'जाति' (सूतपुत्र) के कारण अर्जुन से लड़ने के अयोग्य घोषित कर दिया, तब दुर्योधन ने कर्ण की प्रतिभा का सम्मान करते हुए और उसे अर्जुन के समकक्ष खड़ा करने के लिए, भरी सभा में उसका राज्याभिषेक कर उसे अंगदेश का राजा बना दिया।

निष्कर्ष

रश्मिरथी प्रथम सर्ग (Rashmirathi Sarg 1) केवल एक कविता का हिस्सा नहीं है, यह भारतीय समाज के लिए एक दर्पण है। यह एक क्रांति का शंखनाद है जो सदियों से प्रतिभा का सम्मान करने की माँग कर रहा है। दिनकर जी ने कर्ण के माध्यम से हर उस उपेक्षित व्यक्ति को वाणी दी है, जो केवल अपने 'गोत्र' के कारण पीछे धकेल दिया गया।

यह सर्ग हमें सिखाता है कि असली 'तेज' और 'बल' किसी के देने से नहीं मिलता, वह व्यक्ति के भीतर होता है; समाज का काम उसे पहचानना है, ठुकराना नहीं।

A depiction of Rashmirathi Sarg 1, showing Karna with his bow in the rangbhoomi challenging Arjun, while Duryodhana supports him and Kunti watches.

महाभारत कविता संग्रह (Mahabharat Poetry)

https://www.ignou.ac.in (IGNOU की ई-ज्ञानकोश वेबसाइट पर हिंदी साहित्य के अध्ययन सामग्री के लिए)

https://www.india.gov.in/my-india/arts-culture/indian-literature (भारतीय साहित्य पर आधिकारिक जानकारी के लिए)

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Charkha Lyrics in English: Original, Hinglish, Hindi & Meaning Explained Discover the Soulful Charkha Lyrics in English If you've been searching for Charkha lyrics in English that capture the depth of Punjabi folk emotion, look no further. In this blog, we take you on a journey through the original lyrics, their Hinglish transliteration, Hindi translation, and poetic English translation. We also dive into the symbolism and meaning behind this heart-touching song. Whether you're a lover of Punjabi folk, a poetry enthusiast, or simply curious about the emotions behind the spinning wheel, this complete guide to the "Charkha" song will deepen your understanding. Original Punjabi Lyrics of Charkha Ve mahiya tere vekhan nu, Chuk charkha gali de vich panwa, Ve loka paane main kat di, Tang teriya yaad de panwa. Charkhe di oo kar de ole, Yaad teri da tumba bole. Ve nimma nimma geet ched ke, Tang kath di hullare panwa. Vasan ni de rahe saure peke, Mainu tere pain pulekhe. ...

Aadmi Chutiya Hai Song Lyrics - फूलों की लाशों में ताजगी चाहता है, आदमी चूतिया है | Rahgir Song Lyrics

Aadmi Chutiya Hai Song Lyrics फूलों की लाशों में ताजगी चाहता है, आदमी चूतिया है फूलों की लाशों में ताजगी चाहता है फूलों की लाशों में ताजगी ताजगी चाहता है आदमी चूतिया है, कुछ भी चाहता है फूलों की लाशों में ज़िंदा है तो आसमान में उड़ने की ज़िद है ज़िंदा है तो आसमान में उड़ने की ज़िद है मर जाए तो मर जाए तो सड़ने को ज़मीं चाहता है आदमी चूतिया है काट के सारे झाड़-वाड़, मकाँ मकाँ बना लिया खेत में सीमेंट बिछा कर ज़मीं सजा दी, मार के कीड़े रेत में काट के सारे झाड़-वाड़, मकाँ बना लिया खेत में सीमेंट बिछा कर ज़मीं सजा दी, मार के कीड़े रेत में लगा के परदे चारों ओर क़ैद है चार दीवारी में मिट्टी को छूने नहीं देता, मस्त है किसी खुमारी में मस्त है किसी खुमारी में और वो ही बंदा अपने घर के आगे आगे नदी चाहता है आदमी चूतिया है टाँग के बस्ता, उठा के तंबू जाए दूर पहाड़ों में वहाँ भी डीजे, दारू, मस्ती, चाहे शहर उजाड़ों में टाँग के बस्ता, उठा के तंबू जाए दूर पहाड़ों में वहाँ भी डीजे, दारू, मस्ती, चाहे शहर उजाड़ों में फ़िर शहर बुलाए उसको तो जाता है छोड़ तबाही पीछे कुदरत को कर दाग़दार सा, छोड़ के अपनी स्याही पीछे छोड़ के अपनी स्याही ...

सादगी तो हमारी ज़रा देखिए | Saadgi To Hamari Zara Dekhiye Lyrics (Nusrat Fateh Ali Khan)

सादगी तो हमारी ज़रा देखिए | Saadgi To Hamari Zara Dekhiye Lyrics (Nusrat Fateh Ali Khan)   यहाँ Saadgi To Hamari Zara Dekhiye (सादगी तो हमारी जरा देखिये) के पूरे लिरिक्स दिए गए हैं। यह उस्ताद नुसरत फतह अली खान साहब द्वारा अमर की गई एक कालजयी क़व्वाली है। यह ग़ज़ल अपने गहरे, दिल को छू लेने वाले अर्थ और प्यार की सादगी भरी अभिव्यक्ति के लिए जानी जाती है। कई प्रशंसक इस क़व्वाली को इसकी प्रसिद्ध पंक्तियों से भी खोजते हैं। इस पोस्ट में "लोग डरते हैं कातिल की परछाई से" और "अपना अंजाम सब हमको मालूम था" जैसी मशहूर पंक्तियों के पूरे और सही बोल शामिल हैं। सादगी तो हमारी के संपूर्ण लिरिक्स नीचे हिंदी और रोमन अंग्रेजी में पढ़ें। सादगी तो हमारी जरा देखिये,  एतबार आपके वादे पे कर लिया | मस्ती में इक हसीं को ख़ुदा कह गए हैं हम,  जो कुछ भी कह गए वज़ा कह गए हैं हम  || बारस्तगी तो देखो हमारे खुलूश कि,  किस सादगी से तुमको ख़ुदा कह गए हैं हम || किस शौक किस तमन्ना किस दर्ज़ा सादगी से,  हम करते हैं आपकी शिकायत आपही से || तेरे अताब के रूदाद हो गए हैं हम,  बड़े खलूस...

महाभारत पर रोंगटे खड़े कर देने वाली हिंदी कविता - Mahabharata Poem On Arjuna

|| महाभारत पर रोंगटे खड़े कर देने वाली कविता || || Mahabharata Poem On Arjuna ||   तलवार, धनुष और पैदल सैनिक कुरुक्षेत्र में खड़े हुए, रक्त पिपासु महारथी इक दूजे सम्मुख अड़े हुए | कई लाख सेना के सम्मुख पांडव पाँच बिचारे थे, एक तरफ थे योद्धा सब, एक तरफ समय के मारे थे | महा-समर की प्रतिक्षा में सारे ताक रहे थे जी, और पार्थ के रथ को केशव स्वयं हाँक रहे थे जी ||    रणभूमि के सभी नजारे देखन में कुछ खास लगे, माधव ने अर्जुन को देखा, अर्जुन उन्हें  उदास लगे | कुरुक्षेत्र का महासमर एक पल में तभी सजा डाला, पांचजन्य  उठा कृष्ण ने मुख से लगा बजा डाला | हुआ शंखनाद जैसे ही सब का गर्जन शुरु हुआ, रक्त बिखरना हुआ शुरु और सबका मर्दन शुरु हुआ | कहा कृष्ण ने उठ पार्थ और एक आँख को मीच जड़ा, गाण्डिव पर रख बाणों को प्रत्यंचा को खींच जड़ा | आज दिखा दे रणभूमि में योद्धा की तासीर यहाँ, इस धरती पर कोई नहीं, अर्जुन के जैसा वीर यहाँ ||    सुनी बात माधव की तो अर्जुन का चेहरा उतर गया, ...

Kahani Karn Ki Poem Lyrics By Abhi Munde (Psycho Shayar) | कहानी कर्ण की - Karna Par Hindi Kavita

Kahani Karn Ki Poem Lyrics By Psycho Shayar   कहानी कर्ण की - Karna Par Hindi Kavita पांडवों  को तुम रखो, मैं  कौरवों की भी ड़ से , तिलक-शिकस्त के बीच में जो टूटे ना वो रीड़ मैं | सूरज का अंश हो के फिर भी हूँ अछूत मैं , आर्यवर्त को जीत ले ऐसा हूँ सूत पूत मैं |   कुंती पुत्र हूँ, मगर न हूँ उसी को प्रिय मैं, इंद्र मांगे भीख जिससे ऐसा हूँ क्षत्रिय मैं ||   कुंती पुत्र हूँ, मगर न हूँ उसी को प्रिय मैं, इंद्र मांगे भीख जिससे ऐसा हूँ क्षत्रिय मैं ||   आओ मैं बताऊँ महाभारत के सारे पात्र ये, भोले की सारी लीला थी किशन के हाथ सूत्र थे | बलशाली बताया जिसे सारे राजपुत्र थे, काबिल दिखाया बस लोगों को ऊँची गोत्र के ||   सोने को पिघलाकर डाला शोन तेरे कंठ में , नीची जाती हो के किया वेद का पठंतु ने | यही था गुनाह तेरा, तू सारथी का अंश था, तो क्यों छिपे मेरे पीछे, मैं भी उसी का वंश था ?   यही था गुनाह तेरा, तू सारथी का अंश था, तो क्यों छिपे मेरे पीछे, मैं भी उसी का वंश था ? ऊँच-नीच की ये जड़ वो अहंकारी द्रोण था, वीरों की उसकी सूची में, अर्...
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