हाथ जोड़कर बोले माधव क्या प्रतिज्ञा भूल गए...| Bhism Pitamah Par Hindi Kavita | Iss Gaddi Ke Chakkar Me
हाथ जोड़कर बोले माधव — भीष्म पितामह पर हिंदी कविता
कवि: डॉ. प्रवीण शुक्ल | विषय: महाभारत (भीष्म प्रतिज्ञा)
डॉ. प्रवीण शुक्ल (Dr. Praveen Shukla) की यह प्रसिद्ध कविता, "हाथ जोड़कर बोले माधव," महाभारत के एक मार्मिक प्रसंग को दर्शाती है। यह कविता भीष्म पितामह की प्रतिज्ञा और कुरुक्षेत्र में श्री कृष्ण के साथ उनके संवाद पर केंद्रित है। "इस गद्दी के चक्कर में" नाम से भी जानी जाने वाली इस रचना का पूरा पाठ और संदर्भ नीचे पढ़ें।
कविता का पूरा पाठ (Full Poem Lyrics)
इस गद्दी के चक्कर ने भारत की हालत गारत की,
और इसी चक्कर में दुर्गति होती मेरे भारत की ।
ऊंच-नीच और भेदभाव भी इसी कथा के हिस्से हैं ,
वैरभाव सहयोग त्याग के इसमें अनगिन किस्से है ||
इन किस्सों के कारण ही तो कुरुक्षेत्र में युद्ध हुआ,
पूरा भारत महायुद्ध से पल भर में आबद्ध हुआ ।
दोनों पक्षों की रक्षा को तत्पर सभी परिचित थे,
और परिचित गण भी तो रखते अपने-अपने हित थे ||
श्रीकृष्ण ने महा समर में काम किए थे मिले जुले,
दुर्योधन को सेना दे दी और अर्जुन को स्वयं मिले ।
चतुरंगिणी सेना को पाकर दुर्योधन मन में खुश था,
पर अर्जुन के मन में भी तो कहीं नहीं किंचित दुख था ||
कहा कृष्ण ने महा-समर में ना अस्त्रों को धारूँगा,
मात्र सारथी बनकर अर्जुन को रणक्षेत्र उतारूंगा ।
अर्जुन को नादान समझ दुर्योधन मन में फूल गया,
माधव की मायावी माया को बिल्कुल ही भूल गया ||
पितामह ने भी कृष्णा की प्रतिज्ञा के वचन सुने,
वचनों को सुन मन ही मन जाने क्या-क्या भाव बुने ।
वह पितामह जो तन मन से कौरव सेना को अर्पित थे,
वह पितामह जो राजा की गद्दी को सदा समर्पित थे ।
वह पितामह जो दुर्योधन की सेना के सेनापति थे,
वह पितामह जिनके सारे शब्द स्वयं काल की गति थे ||
वह पितामह जिनके अस्त्रो-शस्त्रों पर लक्ष्य सुअङ्कित थे ,
वह पितामह जिनकी शक्ति से सभी देवता शंकित थे ।
वह पितामह जिनके शस्त्रों से अंबर तक फट जाता था ,
वह पितामह जिनके तीरों से गंगाजल हट जाता था ||
जब सुने उन्होंने वचन कृष्ण के मन ही मन मुस्काए,
यह सोच चलो मौका आया माधव को झुठलाया जाए |
पितामह के यह विचार सुन सहमी-सहमी प्रज्ञा थी,
एक और कृष्ण प्रतिज्ञा दूजी और भीष्म प्रतिज्ञा थी ||
दादा की बातों को सुन अर्जुन मन ही मन विचलित था,
क्योंकि उनकी सभी शक्तियों से वह पूरा परिचित था ।
वह जान चुका था पितामह ने जैसे जो भी ठान लिया,
क्रूर काल ने भी उनकी इच्छा को वैसे मान लिया ||
प्रतिज्ञा पूरी करने को वह कुछ भी कर डालेंगे ,
कुरुक्षेत्र की इस भूमि को लाशों से भर डालेंगे ।
मुझ बालक को भी लगता है अब उन से लड़ना होगा,
संभव है कि मृत्यु के चरणों में भी चढ़ना होगा ||
विचलित अर्जुन के मस्तक पर उभर उठी चिंता रेखा,
श्रीकृष्ण ने व्याकुल-आकुल अर्जुन के मुख को देखा ।
बोल उठे हे पार्थ युद्ध से आज अगर डर जाओगे,
तो संभव है कि जीने से पहले तुम मर जाओगे ||
जीने मरने को लेकर यों चिंता और सिहरना क्या ?
जब तक तेरे रथ पर मैं हूं तुझको जग से डरना क्या ?
माधव की बातों से अर्जुन में शक्ति संचार हुआ,
कांधे पर गांडीव सजा वह लड़ने को तैयार हुआ ||
महा-समर में वीरों ने प्राणों की आहुति दी,
पितामह ने अर्जुन को देखा रथ की धीमी गति की ।
रथ को रोका और रोकते ही पहले यह काम किया,
माधव को देखा मुस्काए और झुक कर उन्हें प्रणाम किया ||
अर्जुन को आशीष दिए,
छलकी आंखों को मीच लिया |
और अगले ही क्षण,
दोनीर से भी बाणों को खींच लिया ||
चढ़ा धनुष पर बाण उन्होंने खींचा जब प्रत्यंचा को,
बिजली कड़की सैनिक बोले डरकर के भागो-भागो |
शस्त्रों की वर्षा से अंबर आतुरता फट जाने को,
रत्नाकर मैं उठी हिलेरी नील गगन छू जाने को ||
शैल शिखर तक ध्वनि तरंगों से टकराकर गिरते थे,
लगता था कि कुरुक्षेत्र में काले बादल घिरते थे |
पितामह के बाड़ों से पूरा भूमंडल डोल उठा,
हर एक वीर ही महा समर में हर हर बम-बम बोल उठा ||
तलवारों के टकराने से ध्वनि गूंजती थी टन-टन ।
बाढ़ हवा के सीने पर दस्तक देते थे सनन-सनन।
सनन-सनन से और भयानक हो उठती थी मंद पवन ।
कवच और कुंडल वीरों के बज उठते खनन-खनन।
मस्तक पर अंकुश टकराने से करते थे गर्जन।
घायल अश्वों की चीखें भी गूंज रही थी हिंनन-हिंनन।
भाले चलते ऐसे जैसे बिजली चलती कड़क-कड़क ।
काट रहे थे वीर समर में सर को जैसे भड़क-भड़क ||
घनन-घनन घनघोर घटा गिरती जाती थी छन-छन में,
बाण, कमान, कृपाण, गदा से रक्त बहा था कण-कण में |
उद्दंड चंदनी चंडी मां के चरणों में नरमुंड चढ़े,
बजा रहे थे घनन-घनन यमराज नगाड़े खड़े-खड़े ||
इस भीषण रण से ज्वाला की बढ़ती जाती थी भड़कन,
पितामह के लोहित लोचन देख बड़ी दिल की धड़कन |
महा-समर में दादा ने काटे थे अनगिन मस्तक धड़,
यह देख कर धरती रोई बादल रोये गड्ड-गड्ड ||
चीखें गूंज उठी धरती पर चीख-चीख में क्रंदन था,
लगता था उस रोज़ धरा पर मृत्यु का अभिनंदन था।
महा-समर में महारथी गण जब-जब कट-कट गिरते थे,
ऐसा लगता था प्रलयंकर वहां तांडव करते थे ।
रक्त-पिपासु काली मैया खप्पर भरती जाती थी,
पितामह से पूरी पांडव सेना डरती जाती थी ||
उनके आगे जो भी आया वध उसका तत्काल हुआ,
उसी वीर की श्रोणित धारा से तल भू का लाल हुआ।
इतना रक्त पिया धरती ने और नहीं पी पाती थी,
बहे लहू की धारा अब नदिया बन बहती जाती थी ||
बर्बादी को देख पार्थ ने जब गांडीव उठाया तो,
उसके द्वारा उसने अपना पहला बाण चलाया तो ।
पितामह के बाणों से टकराकर के वह टूट गया,
अगले ही क्षण गांडीव मुष्टिका से अर्जुन की छूट गया ||
पितामह को यूँ मनमानी ना करने दूंगा,
चाहे जो भी हो अर्जुन को ऐसे ना मरने दूंगा |
यह कहकर माधव ने रथ के पहिए को उठा लिया,
उसे सुदर्शन चक्र बनाकर पितामह की ओर किया ||
माधव की यह मुद्रा मानो महाकाल से मिलती थी,
उनकी इस मुद्रा से जैसे पूरी पृथ्वी हिलती थी ।
माधव को देखा धनुष रखा और दादा मन में फूल गए,
हाथ जोड़कर बोले माधव क्या प्रतिज्ञा भूल गए ?
पूरी सेना बोल उठी, बोलो हो करके निर्भय,
एक बार सब मिलकर बोलो, बोलो पितामह की जय ||
पितामह की शक्ति की वैसे बड़ी महत्ता थी,
पर माधव की शक्ति में तीनों लोकों की सत्ता थी ।
वह माधव जिनके पैदा होने पर माया छा जाती हो,
सभी सैनिकों को पहरे पर ही निद्रा आ जाती हो ||
ताले बेड़ी और द्वार भी खुद ही खुद खुल जाते हो,
सभी देवता गण जिन के चरणों पर पुष्प चढ़ाते हो ।
जिनके चरणों के वंदन को यमुना जल आता हो,
शेषनाग जिन की रक्षा हित अपना फल फैलाता हो ||
दुष्ट कंस की काया का जो पल में ही मर्दन कर दें,
नाग कालिया के मस्तक पर ठुमक-ठुमक नर्तन कर दें ।
जिनका चक्र सुदर्शन रवि की गाथा को खुद कहता हो,
तीनों लोगों का बुद्धि और बल जिनके अंदर रहता हो ||
सरस सलिल सुंदर सरिताओं संग समन्वित सागर हो ।
अगम अगोचर आदि अखंडित और अनश्वर आखर हो ||
जिस परम-पिता परमेश्वर की शक्ति का कोई अंत नहीं,
जिनके आगे प्रश्न कभी भी कोई राह ज्वलंत नहीं ।
उस परम-पिता को पितामह ने कैसे डरा दिया ?
यह बात असंभव है पर भक्ति ने भगवान को हरा दिया ||
पितामह की अपने जीवन से हो चली विरक्ति थी,
पर परम-पिता परमेश्वर में उनकी अटूट आसक्ति थी।
कृष्ण चक्र लें इसीलिए करने उन पर प्रहार गए,
करने भीष्म प्रतिज्ञा पूरी जान-बूझकर हार गए ||
|| डॉ प्रवीण शुक्ल ||
कविता का संदर्भ और व्याख्या (Poem Context)
यह कविता महाभारत युद्ध के उस प्रसंग पर आधारित है जहाँ भीष्म पितामह पांडव सेना का भयंकर संहार कर रहे थे। श्री कृष्ण, जिन्होंने शस्त्र न उठाने की प्रतिज्ञा ली थी, अपने भक्त अर्जुन को बचाने के लिए क्रोध में रथ का पहिया लेकर भीष्म की ओर दौड़ पड़ते हैं।
भीष्म पितामह ने भी प्रतिज्ञा की थी कि वे कृष्ण को शस्त्र उठाने पर विवश कर देंगे। जब कृष्ण अपनी प्रतिज्ञा तोड़कर शस्त्र उठाते हैं, तो भीष्म अपनी प्रतिज्ञा पूरी होने पर प्रसन्न होते हैं और उन्हें प्रणाम करते हैं। यह प्रसंग "भक्ति ने भगवान को हरा दिया" का अद्भुत उदाहरण है।
महाभारत का संदर्भ (Mahabharata Context)
इस कविता के प्रसंग को बेहतर ढंग से समझने के लिए, आप इन आधिकारिक स्रोतों पर महाभारत के बारे में अधिक पढ़ सकते हैं:
कवि के बारे में: डॉ. प्रवीण शुक्ल (About the Poet)
डॉ. प्रवीण शुक्ल हिंदी हास्य-व्यंग्य और वीर रस के एक प्रख्यात कवि हैं। उनकी यह रचना "इस गद्दी के चक्कर में" वीर रस और महाभारत के पात्रों के मनोभावों का अद्भुत चित्रण करती है। उनकी ओजस्वी वाणी ने इस कविता को घर-घर में लोकप्रिय बना दिया है।
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