मैं कुरुक्षेत्र में उतरा था बस अर्जुन से टकराने को Lyrics (Main Kurukshetra Me Utra Tha) - वही कर्ण हूँ मैं सम्पूर्ण लिरिक्स
मैं कुरुक्षेत्र में उतरा था बस अर्जुन से टकराने को Lyrics (Main Kurukshetra Me Utra Tha) - वही कर्ण हूँ मैं सम्पूर्ण लिरिक्स
अगर आप Ravan के गाये उस प्रसिद्ध गीत को खोज रहे हैं जिसकी पंक्ति "मैं कुरुक्षेत्र में उतरा था बस अर्जुन से टकराने को" ने आपके दिल को छू लिया है, तो आप बिलकुल सही जगह पर आए हैं। यह पंक्ति 'वही कर्ण हूँ मैं' (Wahi Karn Hu Mai) नामक एक बेहद शक्तिशाली और भावपूर्ण गीत का हिस्सा है, जिसने सोशल मीडिया और संगीत प्रेमियों के बीच एक अलग ही जगह बना ली है।
इस लेख में, हम आपके लिए Main Kurukshetra Me Utra Tha Lyrics (वही कर्ण हूँ मैं) के सम्पूर्ण और सटीक हिन्दी लिरिक्स प्रस्तुत कर रहे हैं। यह गीत महाभारत के महान योद्धा कर्ण के दृष्टिकोण, उनकी व्यथा और उनके पराक्रम का वर्णन करता है।
Main Kurukshetra Me Utra Tha Lyrics (वही कर्ण हूँ मैं)
यह प्रसिद्ध पंक्ति "Main Kurukshetra Me Utra Tha" कलाकार Ravan द्वारा लिखे और गाए गए गीत "वही कर्ण हूँ मैं" (Wahi Karn Hu Mai) से है। यह गीत कर्ण के चरित्र, उनकी दुविधाओं, उनके अपमान और उनकी असीम वीरता को श्रद्धांजलि देता है। यह कर्ण के जीवन के उन अनछुए पहलुओं को सामने लाता है जो उन्हें महाभारत का सबसे दुखद और वीर नायक बनाते हैं।
मैं कुरुक्षेत्र में उतरा था बस अर्जुन से टकराने को: सम्पूर्ण लिरिक्स
वही कर्ण हूँ मैं…
वही कर्ण हूँ मैं…
(Ravan!)
वही कर्ण हूँ मैं जिसे दुनिया सूत-पुत्र कहती है
वो जिसपे हँसी थी द्रौपदी और आँखें सबकी हँसती हैं
वही कर्ण हूँ मैं
वही कर्ण हूँ मैं जिसे दुनिया सूत-पुत्र कहती है
वो जिसपे हँसी थी द्रौपदी और आँखें सबकी हँसती हैं
मैं सह के सारे अपमानों को
चुप-चाप सा सब सहता था
मैं जल के सारे ज्वाला में
नदियों सा फिर भी बहता था
वही कर्ण हूँ मैं
वही कर्ण हूँ मैं…
मैं पुत्र सूर्य का,
कुंती माँ ने भी मुझको त्याग दिया
गुरु परशुराम ने,
क्षत्रीय जान मुझको श्राप दिया
ना मिला मुझे वो सम्मान कभी,
मैं जिसका अधिकारी था
मैं अच्छा होकर भी बुरा बना,
सबने लांछन अत्याचारी का…
सबने लांछन अत्याचारी का…
वो कुंती…
वो कुंती माँ थी मेरी जिसने
मुझको ही मुझसे तोड़ा था
और वचन लिया था अर्जुन का
बाकी सब को मैंने छोड़ा था
ना देता दान मैं इन्द्र को
गर कृष्ण ने छल ना की होती
मैं जीत के सारे रणभूमि
ये दुनिया चरणों में दी होती
वो क्या है ना,
मैंने वचनों में बँध कर सब त्यागा
ना मान-सम्मान की फ़िक्र मुझे
ना रणभूमि से मैं भागा
ना डर है मुझको काल का
मैं मृत्यु से भी लड़ जाऊँगा
मैं वही कर्ण हूँ दुनिया वालों
जो रण में अमर कहलाऊँगा
जो रण में अमर कहलाऊँगा…
वही कर्ण हूँ मैं जिसे दुनिया सूत-पुत्र कहती है
वो जिसपे हँसी थी द्रौपदी और आँखें सबकी हँसती हैं
वही कर्ण हूँ मैं…
वही कर्ण हूँ मैं…
(संगीत)
मुझे लोभ नहीं था महलों का
ना स्वर्ण आभूषण भाते थे
मुझे लोभ नहीं था धरती का
ना राज-पाठ मिल पाते थे
मेरा एक ही सपना था
इस दुनिया में सम्मान मिले
मैं दानवीर हूँ, मुझको भी
इस दुनिया में पहचान मिले
मैं लड़ा था अपने मित्रों से
दुर्योधन का वो साथ दिया
मैं जानता था वो गलत है
फिर भी मैंने…
फिर भी मैंने उसको अपना मान लिया
वो छल से मारे ना जाते
गर पहिया फँसा ना होता मेरा
और डूब गया था सूरज भी
चारों ओर हुआ अँधेरा
मैं निहत्था था
और वार किया उन सबने मिल के
वो रोये थे
वो रोये थे उस रात को
जिनके सीने में दिल थे
मैं जला नहीं था रणभूमि में
मुझको तो अपनों ने जलाया था
वो कृष्ण नहीं थे,
वो कृष्ण नहीं थे अर्जुन के
गर मुझको नहीं हराया था
मैं डरा नहीं था मृत्यु से
बस अपनों से मैं हार गया
वही कर्ण हूँ मैं
जो अपनों के ही छल से मारा गया
जो अपनों के ही छल से मारा गया…
वही कर्ण हूँ मैं जिसे दुनिया सूत-पुत्र कहती है
वो जिसपे हँसी थी द्रौपदी और आँखें सबकी हँसती हैं
वही कर्ण हूँ मैं
वही कर्ण हूँ मैं
मुझे नहीं चाहिए थी दुनिया
ना लोभ-मोह का साया था
मैं तो बस…
मैं तो बस मान-सम्मान का भूखा
जो मिला नहीं वो पाया था
मुझे दुर्योधन ने
हाँ दुर्योधन ने मान दिया
वो सखा था मेरा
वो सखा था मेरा…
जिसने मुझको सम्मान दिया
मैं जानता था वो पापी है
अधर्मी है, अभिमानी है
पर सखा था मेरा
बस सखा था मेरा
जिसने मेरी…
जिसने मेरी हर बात ही मानी है
मैं जानता था वो हारेंगे
पांडव के संग थे कृष्ण लड़े
पर साथ दिया मैंने उसका
जो मेरे संग थे हर पल खड़े
मैं कुरुक्षेत्र में उतरा था बस अर्जुन से टकराने को
ना लोभ-मोह था सत्ता का
ना ज़िद थी कि जग पाने को
मैं तो बस…
मैं तो बस अपनी मित्रता का
वो फ़र्ज़ निभाने आया था
मैं सूर्य-पुत्र
मैं सूर्य-पुत्र वही कर्ण हूँ
जो रण में मारा…
जो रण में मारा…
जो रण में मारा…
जो रण में मारा गया था
वही कर्ण हूँ मैं जिसे दुनिया सूत-पुत्र कहती है
वो जिसपे हँसी थी द्रौपदी और आँखें सबकी हँसती हैं
वही कर्ण हूँ मैं…
वही कर्ण हूँ मैं…
Wahi Karn Hu Mai (Official Lyrical Video)
आप Ravan का यह बेहतरीन 'कर्ण गीत' (Karn geet) नीचे दिए गए आधिकारिक वीडियो में सुन सकते हैं।
इस पंक्ति का भाव और प्रसंग (Meaning of the Line)
यह पंक्ति "मैं कुरुक्षेत्र में उतरा था बस अर्जुन से टकराने को" कर्ण के चरित्र के सबसे महत्वपूर्ण पहलू को दर्शाती है। यह उनके जीवन के उद्देश्य और उनकी योद्धा के रूप में सर्वोच्च महत्वाकांक्षा को उजागर करती है।
इसका गहरा भाव यह है:
- योद्धा का धर्म: कर्ण के लिए, यह युद्ध सिंहासन या राज्य के लिए नहीं था। यह उनके लिए अपनी श्रेष्ठता साबित करने का एक मंच था।
- प्रतिद्वंद्विता: वे अर्जुन को अपना एकमात्र योग्य प्रतिद्वंद्वी मानते थे। जीवन भर उन्हें सूत-पुत्र कहकर सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर होने के सम्मान से वंचित रखा गया। कुरुक्षेत्र का युद्ध उनके लिए अर्जुन से टकराने और यह सिद्ध करने का अंतिम अवसर था कि वह दुनिया के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर हैं।
- लोभ से परे: यह पंक्ति स्पष्ट करती है कि कर्ण को सत्ता या "जग पाने" का कोई लोभ नहीं था। उनका एकमात्र ध्येय अपने प्रतिद्वंद्वी (अर्जुन) का सामना करना और अपने युद्ध कौशल का प्रदर्शन करना था।
- मित्र का ऋण: हालाँकि उनका मुख्य उद्देश्य अर्जुन से टकराना था, वह यह भी स्वीकार करते हैं कि वह दुर्योधन के प्रति अपनी मित्रता का "फ़र्ज़ निभाने" आए थे, जिसने उन्हें वह सम्मान दिया था जो दुनिया ने उन्हें कभी नहीं दिया।
संक्षेप में, यह पंक्ति एक सच्चे योद्धा की मानसिकता को दर्शाती है, जिसके लिए सम्मान और अपनी कला का प्रदर्शन, सांसारिक लाभ से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। यह भाव राष्ट्रकवि दिनकर जी की 'रश्मिरथी' में भी झलकता है।
(कर्ण के जीवन और द्वंद्व को गहराई से समझने के लिए, आप रामधारी सिंह 'दिनकर' कृत रश्मिरथी सर्ग 1 का सारांश भी पढ़ सकते हैं।)
कर्ण के चरित्र पर अन्य कविताएँ
यदि आप कर्ण के वीर, दानवीर और दुखद चरित्र से प्रभावित हैं, तो साहित्यशाला पर मौजूद ये कविताएँ आपको अवश्य पसंद आएँगी। ये रचनाएँ कर्ण के जीवन के विभिन्न पहलुओं को दर्शाती हैं:
महाभारत के अन्य पात्रों पर कविताएँ
कर्ण के अलावा, यदि आप महाभारत के अन्य महान पात्रों के दृष्टिकोण और वीरता पर रचनाएँ पढ़ना चाहते हैं, तो यह संग्रह आपके लिए है:
भीष्म पितामह पर डॉ प्रवीण शुक्ल की रोंगटें खड़े करने वाली कविता
अरे! खुद को ईश्वर कहते हो तो जल्दी अपना नाम बताओ (कृष्ण-अर्जुन संवाद)
FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
इस गीत (Karn Arjun song lyrics) और इसके प्रसंग से जुड़े कुछ सामान्य प्रश्न और उनके उत्तर यहाँ दिए गए हैं।
Q1: 'मैं कुरुक्षेत्र में उतरा था' यह लाइन किस गीत की है?
A: यह प्रसिद्ध और शक्तिशाली लाइन Ravan द्वारा गाए गए गीत "वही कर्ण हूँ मैं" (Wahi Karn Hu Mai Lyrics) की है।
Q2: 'वही कर्ण हूँ मैं' गीत किसने गाया है? (Who is the artist?)
A: इस प्रभावशाली गीत (Ravan song lyrics) को 'Ravan' (जिन्हें Ravan Records के नाम से भी जाना जाता है) ने लिखा, संगीतबद्ध और गाया है।
Q3: यह गीत (Wahi Karn Hu Mai) किस पर आधारित है?
A: यह गीत महाभारत के एक केंद्रीय पात्र 'कर्ण' (Karn) के जीवन पर आधारित है। यह उनके दृष्टिकोण से उनके जीवन में हुए अन्याय, उनके अपमान, उनकी मित्रता और उनकी वीरता की कहानी कहता है।
Q4: क्या यह एक रैप सॉन्ग (Rap Song) है?
A: हाँ, इसे एक 'स्टोरीटेलिंग रैप' (Storytelling Rap) या 'पोएटिक हिप-हॉप' (Poetic Hip-Hop) गीत माना जा सकता है, जो शक्तिशाली शब्दों और कविता के माध्यम से एक गहरी कहानी बयान करता है।
Q5: गीत में 'सूत-पुत्र' कहने का क्या अर्थ है?
A: 'सूत-पुत्र' का अर्थ है 'सारथी का बेटा'। कर्ण का पालन-पोषण एक सारथी अधिरथ और उनकी पत्नी राधा ने किया था। इसलिए, उन्हें अक्सर उनके जन्म के बजाय उनके पालन-पोषण के आधार पर 'सूत-पुत्र' कहकर संबोधित किया जाता था, जो उनके क्षत्रिय कौशल के बावजूद उन्हें सामाजिक अपमान और तिरस्कार का पात्र बनाता था।
Q6: कर्ण ने दुर्योधन का साथ क्यों दिया?
A: जैसा कि गीत में कहा गया है ("मुझे दुर्योधन ने मान दिया"), दुर्योधन ही एकमात्र ऐसा व्यक्ति था जिसने कर्ण को उनकी जाति की परवाह किए बिना उनकी प्रतिभा के लिए पहचाना और उन्हें अंग देश का राजा बनाकर सम्मान दिया। कर्ण इस उपकार और मित्रता के प्रति निष्ठावान थे और इसलिए उन्होंने अधर्म का पक्ष जानते हुए भी अपने मित्र दुर्योधन का साथ दिया।
Q7: क्या कर्ण को हराने के लिए कृष्ण ने छल किया था?
A: गीत में पंक्ति है ("गर कृष्ण ने छल ना की होती"), जो इस धारणा को दर्शाती है। महाभारत के अनुसार, कर्ण की मृत्यु के समय कई घटनाएँ एक साथ घटीं: परशुराम का श्राप (विद्या भूलना), धरती माता का श्राप (रथ का पहिया धँसना), और इंद्र द्वारा उनके कवच-कुंडल पहले ही दान में ले लेना। कृष्ण ने अर्जुन को निहत्थे कर्ण पर बाण चलाने का आदेश दिया, जिसे कई लोग 'छल' मानते हैं, जबकि अन्य इसे धर्म की स्थापना के लिए आवश्यक मानते हैं।
Q8: क्या 'वही कर्ण हूँ मैं' रश्मिरथी पर आधारित है?
A: यह गीत सीधे तौर पर 'रश्मिरथी' पर आधारित नहीं है, लेकिन यह रामधारी सिंह 'दिनकर' की 'रश्मिरथी' (जो कर्ण के जीवन पर एक महाकाव्य है) के समान ही भावनाओं और दृष्टिकोण को व्यक्त करता है। दोनों रचनाएँ कर्ण को एक वीर लेकिन दुखद नायक के रूप में चित्रित करती हैं। आप रश्मिरथी का सारांश यहाँ पढ़ सकते हैं।
Q9: मुझे ऐसी और कविताएँ कहाँ मिल सकती हैं?
A: आप साहित्यशाला पर हिन्दी और मैथिली कविताओं का विशाल संग्रह पढ़ सकते हैं। We also have a collection of the best Hindi and Maithili poetry on our English site for a wider audience.


