संगीत की दुनिया में कुछ रचनाएँ ऐसी होती हैं जो मनोरंजन नहीं, बल्कि 'इबादत' बन जाती हैं। उस्ताद नुसरत फतेह अली खान की कव्वाली "सोचता हूँ वो कितने मासूम थे" एक ऐसी ही कालातीत रचना है।
यह सिर्फ़ एक शिकवा नहीं है, बल्कि शिकस्त-ए-दिल (Heartbreak) का एक महाकाव्य है। जहाँ 'मेरे रश्क-ए-क़मर' में इश्क़ का नशा है, वहीं 'सोचता हूँ' में उस नशे के उतरने के बाद की कड़वी सच्चाई है। आइये, इस मास्टरपीस के पूरे हिंदी और इंग्लिश लिरिक्स, इसका गहरा दार्शनिक अर्थ और इसके पीछे के संगीत विज्ञान को समझें।
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| उस्ताद नुसरत फतेह अली खान अपनी सबसे दर्दनाक कव्वाली 'सोचता हूँ' गाते हुए। |
यह कव्वाली मूल रूप से प्रसिद्ध शायर शकेब जलाली (Shakeb Jalali) की ग़ज़ल पर आधारित है। नुसरत फतेह अली खान साहब ने इसे अपनी परम्परागत 'तज़्मीन' (Tazmeen) [तज़्मीन का अर्थ: किसी शेर में नए मिसरे जोड़कर उसे विस्तार देना] और बंदिशों के साथ सजाकर एक अमर रचना बना दिया।
This article is an interpretative literary analysis intended for educational and cultural understanding.
जाने वाले हमारी महफ़िल से
चाँद तारों को साथ लेता जा
हम खिज़ाँ से निबाह कर लेंगे
तू बहारों को साथ लेता जा
अच्छी सूरत को सँवरने की ज़रूरत क्या है
सादगी में भी कयामत की अदा होती है
तुम जो आ जाते हो मस्जिद में अदा करने नमाज़
तुमको मालूम है कितनों की कज़ा होती है?
(कोरस/Chorus)
सोचता हूँ कि वो कितने मासूम थे
सोचता हूँ कि वो कितने मासूम थे
क्या से क्या हो गए देखते-देखते
मैंने पत्थर से जिनको बनाया सनम
वो खुदा हो गए देखते-देखते
हश्र है वहशत-ए-दिल की आवारगी
हमसे पूछो मोहब्बत की दीवानगी
जो पता पूछते थे किसी का कभी
लापता हो गए देखते-देखते
हमसे ये सोच कर कोई वादा करो
एक वादे पे उम्रें गुज़र जाएँगी
ये है दुनिया यहाँ कितने अहल-ए-वफ़ा
बेवफ़ा हो गए देखते-देखते
गैर की बात तस्लीम क्या कीजिये
अब तो खुद पर भी हमको भरोसा नहीं
अपना साया समझते थे जिनको कभी
वो जुदा हो गए देखते-देखते
Jane wale hamari mehfil se
Chand taaro ko sath leta ja
Hum khizaan se nibah kar lenge
Tu baharon ko sath leta ja
Achi soorat ko sawarne ki zaroorat kya hai
Saadgi mein bhi qayamat ki ada hoti hai
Tum jo aa jate ho masjid mein ada karne namaz
Tumko maloom hai kitno ki qaza hoti hai?
(Chorus)
Sochta hoon ke wo kitne masoom thay
Sochta hoon ke wo kitne masoom thay
Kya se kya ho gaye dekhte dekhte
Maine patthar se jinko banaya sanam
Wo Khuda ho gaye dekhte dekhte
Hashr hai wehshat-e-dil ki awargi
Humse pucho mohabbat ki deewangi
Jo pata puchte the kisi ka kabhi
La-pata ho gaye dekhte dekhte
Humse ye soch kar koi wada karo
Ek wade pe umrein guzar jayengi
Ye hai duniya yahan kitne ahl-e-wafa
Bewafa ho gaye dekhte dekhte
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| 'मैंने पत्थर से जिनको बनाया सनम, वो खुदा हो गए देखते-देखते' - A visual interpretation. |
Deep Meaning & Word Analysis (भावार्थ)
नुसरत साहब की गायकी में हर लफ्ज़ एक कहानी कहता है। जैसे चरखा (Charkha) में सूफी दर्शन है, वैसे ही यहाँ 'इंसानी फितरत' (Human Nature) का वर्णन है।
| Lyrics Phrase (शब्द) | Philosophical Meaning (गहरा अर्थ) |
|---|---|
| Hum khizaan se nibah kar lenge |
अर्थ: मैं पतझड़ (दुःख) के साथ जी लूँगा। दर्शन: यह प्रेम की पराकाष्ठा है। प्रेमी अपने लिए 'वीरानी' चुनता है ताकि महबूब के हिस्से में 'बहार' (खुशियाँ) आ सकें। यह त्याग वैसा ही है जैसा तनम फरसूदा में रसूल के प्रति समर्पण है। |
| Patthar se jinko banaya Sanam |
अर्थ: पत्थर को पूज-पूज कर भगवान बना दिया। दर्शन: यहाँ 'शिर्क' (Idolatry) का रूपक है। जब हम किसी इंसान को हद से ज्यादा प्यार देते हैं, तो हम उसे अहंकारी (Arrogant) बना देते हैं। वह पत्थर दिल इंसान अब खुद को 'खुदा' समझकर रहम करना छोड़ देता है। |
| Kitno ki Qaza hoti hai |
अर्थ: कितनों की मौत (Death) होती है। context: यह सादगी तो हमारी जैसी शिकायत है। तुम्हारी सादगी इतनी कातिलाना है कि इबादत (नमाज़) के वक्त भी लोग तुम्हें देखकर जान दे देते हैं। |
| Hashr hai Wehshat-e-Dil |
अर्थ: दिल का पागलपन (Wehshat) अब कयामत (Hashr) बन चुका है। Context: यह वह अवस्था है जहाँ प्रेमी को अपनी सुध-बुध नहीं रहती, जैसे तन्हाई में फरियाद करता हुआ इंसान। |
The Philosophy & Composition (संगीत और दर्शन)
1. इश्क़-ए-मजाज़ी से इश्क़-ए-हकीकी (The Transition of Love):
ऊपरी तौर पर यह एक प्रेमी की शिकायत लगती है, लेकिन सूफी मत में 'सनम' (Beloved) अक्सर ईश्वर का प्रतीक भी होता है। भक्त शिकायत करता है कि मैंने तुझे हर जगह ढूँढा, लेकिन तू 'लापता' हो गया। यह इंसान की उस भटकाव की स्थिति है जिसका ज़िक्र राहगीर के गीतों में भी मिलता है—आधुनिक मनुष्य का अस्तित्व संकट।
2. तज़्मीन की कला (The Art of Tazmeen):
नुसरत साहब इस कव्वाली में 'तज़्मीन' (Interpolation) का बेहतरीन इस्तेमाल करते हैं। मूल ग़ज़ल शकेब जलाली की है, लेकिन बीच-बीच में नुसरत साहब "अच्छी सूरत को सँवरने..." जैसे पारंपरिक शेर जोड़ते हैं। इसे संगीत में 'गिरह लगाना' कहते हैं। यह तकनीक श्रोता को एक ही भाव (Mood) में बाँधकर रखती है, चाहे शब्द बदल जाएँ।
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| इश्क़ की शुरुआत (रश्क-ए-क़मर) और उसका दर्दनाक अंत (सोचता हूँ)। |
3. शास्त्रीय संरचना (Classical Structure):
यह कव्वाली आमतौर पर राग काफी (Raag Kafi) या उसके मिश्रित प्रकारों में गाई जाती है, जो विरह और वैराग्य का राग है। ताल कहरवा (Keherwa - 8 beats) का प्रयोग इसे एक चलता-फिरता और लोकप्रिय अ अंदाज़ देता है, जिससे यह आम लोगों के दिलों में आसानी से उतर जाती है।
Watch Nusrat Fateh Ali Khan Live (Best 3 Versions)
इस कव्वाली को समझने के लिए इसे देखना और सुनना ज़रूरी है। यहाँ 3 सबसे बेहतरीन वर्ज़न हैं:
Frequently Asked Questions (FAQ)
Is 'Dekhte Dekhte' the same as 'Sochta Hoon'?
Yes. 'Dekhte Dekhte' (sung by Atif Aslam in Batti Gul Meter Chalu) is a Bollywood recreation using the hook line of Nusrat Fateh Ali Khan's original Qawwali 'Sochta Hoon'.
What is the meaning of 'Khizaan' and 'Qaza'?
Khizaan (खिज़ाँ) means Autumn (symbolizing decay/sadness). Qaza (कज़ा) means Death or Destiny (often implies missing a prayer or dying for love).
Who wrote the original lyrics?
The core ghazal was written by the tragic poet Shakeb Jalali. Nusrat Fateh Ali Khan added various traditional couplets (Sher) during his live performances.
निष्कर्ष
नुसरत साहब की 'सोचता हूँ' सिर्फ़ संगीत नहीं, एक रूहानी आइना है। यह हमें दिखाती है कि हम जिसे पूजते हैं, वही हमें कैसे तोड़ सकता है।
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👉 मस्त नज़रों से अल्लाह बचाए (Meaning)
👉 दर पे सुदामा गरीब आ गया है (Lyrics)
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