उर्दू शायरी की दुनिया में जब भी मोहब्बत के सलीके और दर्द की गहराई की बात होती है, तो खुमार बाराबंकवी (Khumar Barabankavi) का नाम बड़े अदब से लिया जाता है। उनकी शायरी में क्लासिकल अंदाज़ के साथ-साथ जज़्बात की जो रवानी है, वह पाठकों को सीधे तौर पर प्रभावित करती है।
|
| "मुझ को शिकस्त-ए-दिल का मज़ा याद आ गया" - ग़ज़ल के दर्द का कलात्मक चित्रण। |
जिस तरह अहमद फ़राज़ की 'सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं' अपनी सादगी के लिए जानी जाती है, उसी तरह आज साहित्यशाला पर हम खुमार साहब की एक बेहद मक़बूल ग़ज़ल, "मुझ को शिकस्त-ए-दिल का मज़ा याद आ गया" पेश कर रहे हैं। यह सिर्फ़ शब्दों का जमावड़ा नहीं, बल्कि टूटे हुए दिल की एक ऐसी दास्तां है जिसे हर उस शख़्स ने महसूस किया है जिसने कभी शिद्दत से मोहब्बत की है।
मुझ को शिकस्त-ए-दिल का मज़ा याद आ गया - ग़ज़ल (Hindi Lyrics)
मुझ को शिकस्त-ए-दिल का मज़ा याद आ गया
तुम क्यूँ उदास हो गए क्या याद आ गया
कहने को ज़िंदगी थी बहुत मुख़्तसर मगर
कुछ यूँ बसर हुई कि ख़ुदा याद आ गया
वाइ'ज़ सलाम ले कि चला मय-कदे को मैं
फ़िरदौस-ए-गुमशुदा का पता याद आ गया
बरसे बग़ैर ही जो घटा घिर के खुल गई
इक बेवफ़ा का अहद-ए-वफ़ा याद आ गया
माँगेंगे अब दुआ कि उसे भूल जाएँ हम
लेकिन जो वो ब-वक़्त-ए-दुआ याद आ गया
हैरत है तुम को देख के मस्जिद में ऐ 'ख़ुमार'
क्या बात हो गई जो ख़ुदा याद आ गया
Mujh Ko Shikast-e-Dil Ka Maza (Hinglish Lyrics)
Mujh ko shikast-e-dil ka maza yaad aa gaya
Tum kyun udaas ho gaye, kya yaad aa gaya
Kehne ko zindagi thi bahut mukhtasar magar
Kuchh yun basar hui ki Khuda yaad aa gaya
Vaiz salaam le ke chala mai-kade ko main
Firdaus-e-gumshuda ka pata yaad aa gaya
Barse baghair hi jo ghata ghir ke khul gayi
Ik bewafa ka ahd-e-wafa yaad aa gaya
Maangenge ab dua ki use bhool jaayen hum
Lekin jo woh ba-waqt-e-dua yaad aa gaya
Hairat hai tum ko dekh ke masjid mein ai “Khumar”
Kya baat ho gayi jo Khuda yaad aa gaya
ग़ज़ल का भावार्थ और विश्लेषण
खुमार बाराबंकवी की इस ग़ज़ल का हर शेर अपने आप में एक मुकम्मल कहानी है। आइये, इसके गहरे अर्थों को समझते हैं।
1. दर्द और यादों का रिश्ता
"मुझ को शिकस्त-ए-दिल का मज़ा याद आ गया..."
मतला (पहला शेर) ही श्रोता को चौंका देता है। शायर कहता है कि दिल टूटने (शिकस्त-ए-दिल) का भी अपना एक अलग मज़ा या लुत्फ़ है। जब वह महबूब को उदास देखता है, तो उसे अपनी पुरानी टीस याद आ जाती है। यह दर्द वैसा ही है जैसा जौन एलिया की नज़्म 'हालत-ए-हाल' में देखने को मिलता है।
|
| "वाइ'ज़ सलाम ले कि चला मय-कदे को मैं..." - मयकदे और मस्जिद का विरोधाभास। |
2. दुआ और भूलने की कशमकश
इस ग़ज़ल का सबसे मशहूर शेर है:
माँगेंगे अब दुआ कि उसे भूल जाएँ हम
लेकिन जो वो ब-वक़्त-ए-दुआ याद आ गया
यहाँ एक विरोधाभास (Paradox) है। प्रेमी ईश्वर से प्रार्थना करना चाहता है कि वह अपने महबूब को भूल जाए, लेकिन उसे डर है कि दुआ मांगते वक़्त अगर महबूब याद आ गया, तो वह दुआ ही उसकी याद बन जाएगी। यह कशमकश क़तील शिफ़ाई की 'सादगी तो हमारी ज़रा देखिये' जैसी ही मासूमियत लिए हुए है।
3. वादों की बेवफाई
जब घटा बिना बरसे खुल जाती है, तो शायर को किसी बेवफा का किया हुआ वादा याद आता है। नए दौर के शायरों में तहज़ीब हाफ़ी ने 'अभी ये दौलत नई नई है' में जिस तरह के धोखे का ज़िक्र किया है, खुमार साहब उसे बादलों के रूपक (Metaphor) से समझाते हैं।
खुमार बाराबंकवी: एक परिचय
|
खुमार बाराबंकवी (1919–1999) का असली नाम मोहम्मद हैदर ख़ान था। वे बाराबंकी, उत्तर प्रदेश के रहने वाले थे। जिगर मुरादाबादी के समकालीन रहे खुमार की शायरी में वह पुराना 'रचाव' था जो अब कम ही देखने को मिलता है। उनकी आवाज़ और तरन्नुम मुशायरों में जान डाल देते थे।
साहित्यशाला पर अन्य बेहतरीन रचनाएँ पढ़ें:
वीडियो देखें: खुमार बाराबंकवी (मुशायरा)
खुमार साहब की आवाज़ में इस ग़ज़ल को सुनने का अनुभव ही कुछ और है:
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
'शिकस्त-ए-दिल' का क्या अर्थ है?
'शिकस्त-ए-दिल' का अर्थ है 'टूटा हुआ दिल' या 'हृदय की पराजय/हार'।
खुमार बाराबंकवी का असली नाम क्या था?
उनका असली नाम मोहम्मद हैदर ख़ान था, लेकिन शायरी की दुनिया में वे 'खुमार' तखल्लुस से मशहूर हुए।
इस ग़ज़ल का मुख्य भाव (Theme) क्या है?
यह ग़ज़ल विरह (Separation), पुरानी यादें, और प्रेम में मिली हार को स्वीकार करने के भाव पर केंद्रित है।
खुमार साहब की यह ग़ज़ल सिर्फ़ शब्दों का खेल नहीं, बल्कि एहसासों का एक सफ़र है। चाहे वह बादलों का घिर कर खुल जाना हो या दुआ के वक़्त महबूब का याद आना, हर बिम्ब (Imagery) दिल को छूता है। अगर आप और भी बेहतरीन ग़ज़लों का संग्रह पढ़ना चाहते हैं, तो Sahityashala Home पर ज़रूर जाएँ।