क्यों वचन भीष्म ने न तोड़े ?
|| महाभारत पर हिंदी कविता ||
|| भीष्म पितामह पर हिंदी कविता ||
जब कथा करवटें लेती हो,
संदेश युद्ध का देती हो,
अंधियारी जब भीतर की,
हर उजियारा हर लेती हो |
क्यों अपने व्रत से ना डोले |
परिवार ने तोड़ी सीमाएं,
क्यों वचन भीष्म ने न तोड़े ||
धर्म की रक्षा करने वाला,
अधर्म देख क्या सकता था ?
अजर सिंह के सम्मुख कोई,
इस तरह गरज क्या सकता था ?
पर जैसे दशरथ वचनों ने,
राम का रथ वन को मोड़े |
वैसे ही गंगा पुत्र भीष्म,
अपने पंजों के नख मोड़े ||
जीवन का एक यही व्रत था |
सत्य असत्य विदित था पर,
सत्य विरुद्ध खड़ा रथ था ||
मृत्यु जिसे वैकल्पिक थी,
जिसको चाहे मारे छोड़े |
लेकिन सत्य और व्रत हित,
वो ख़ुद जीवन का रथ तोड़े ||
दुःख तो होगा उनको भी,
क्यों ऐसी कठिन प्रतिज्ञा ली |
पर स्वयं नाथ जब उतरे थे,
कुछ बड़े न्याय की रचना थी ||
मानव तप से मुख क्यों मोड़े |
शायद सोच के ऐसा भी,
वचन भीष्म ने ना तोड़े ।।