Mahabharata Hindi Poem: क्यों वचन भीष्म ने न तोड़े?
भीष्म पितामह की प्रतिज्ञा, धर्म और कर्तव्य पर आधारित यह भावपूर्ण कविता — महाभारत की मानवीय और नीतिगत गहराइयों को उजागर करती है।
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परिचय — भीष्म का वचन, धर्म और प्रतिज्ञा
महाभारत के सबसे जटिल और प्रेरक पात्रों में से एक भीष्म पितामह हैं। उनके व्रत, धर्म और प्रतिज्ञा ने न केवल उनके जीवन को परिभाषित किया बल्कि पूरे युद्ध और नीति के भाव को भी आकार दिया। इस कविता में हम पूछते हैं — क्यों वचन भीष्म ने न तोड़े? और किस कारण से उन्होंने अपने स्वार्थ से ऊपर धर्म और प्रतिज्ञा को रखा।
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इस कविता को पढ़ते समय ध्यान दें कि यह पाठक को प्रश्नोत्तरी शैली में भी सोचने का निमंत्रण देता है — न कि ऐतिहासिक निष्कर्ष का स्थानापन्न।
क्यों वचन भीष्म ने न तोड़े ?
जब कथा करवटें लेती हो,
संदेश युद्ध का देती हो,
अंधियारी जब भीतर की,
हर उजियारा हर लेती हो |
ऐसे में दीपक रखने वाले,
क्यों अपने व्रत से ना डोले |
परिवार ने तोड़ी सीमाएं,
क्यों वचन भीष्म ने न तोड़े ||
धर्म की रक्षा करने वाला,
अधर्म देख क्या सकता था ?
अजर सिंह के सम्मुख कोई,
इस तरह गरज क्या सकता था ?
पर जैसे दशरथवचनों ने,
राम का रथ वन को मोड़े |
वैसे ही गंगा पुत्र भीष्म,
अपने पंजों के नख मोड़े ||
मृत्यु जिसे वैकल्पिक थी,
जिसको चाहे मारे छोड़े |
लेकिन सत्य और व्रत हित,
वो ख़ुद जीवन का रथ तोड़े||
दुःख तो होगा उनको भी,
क्यों ऐसी कठिन प्रतिज्ञा ली |
पर स्वयं नाथ जब उतरे थे,
कुछ बड़े न्याय की रचना थी ||
जब नियति नियंता वहीं रहे,
मानव तप से मुख क्यों मोड़े |
शायद सोच के ऐसा भी,
वचन भीष्म ने ना तोड़े ।।
कितनी गाथाओं के प्रिय थे,
गंगा के नीर-सा बहते थे |
स्थान कहाँ ना था उनका,
वो कृष्ण हृदय में रहते थे ||
— कवि: संदीप द्विवेदी
