मैं रथ का टूटा हुआ पहिया हूं - धर्मवीर भारती | Mahabharata Poems In Hindi | Mai Rath Ka Toota Hua Pahiya Hun
मैं रथ का टूटा हुआ पहिया हूं
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मैं रथ का टूटा हुआ पहिया हूं
लेकिन मुझे फेंको मत!
क्या जाने कब
इस दुरूह चक्रव्यूह में
अक्षौहिणी सेनाओं को चुनौती देता हुआ
कोई दुस्साहसी अभिमन्यु आकर घिर जाय!
अपने पक्ष को असत्य जानते हुए भी
बड़े-बड़े महारथी
अकेली निहत्थी आवाज़ को
अपने ब्रह्मास्त्रों से कुचल देना चाहें
तब मैं
रथ का टूटा हुआ पहिया
उसके हाथों में
ब्रह्मास्त्रों से लोहा ले सकता हूं!
लेकिन मुझे फेंको मत
इतिहासों की सामूहिक गति
सहसा झूठी पड़ जाने पर
क्या जाने
सच्चाई टूटे हुए पहियों का आश्रय ले !
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