डिजिटल युग के गुरु - Digital Yug Ke Guru लेखक: अभिषेक मिश्रा गाँव की चौपालों में, पीपल की छाँव तले, मास्टर जी ज्ञान की बूँदें, बच्चों पर बरसाते। टाट-पट्टी पर बैठकर, शब्दों की नदियाँ बहतीं, गुरु के चरणों में ही, शिक्षा की दुनिया खिलती। काली तख्ती, खड़िया से, अंक और अक्षर जगते, मास्टर जी की डाँट में भी, स्नेह और संस्कार बसते। गुरुकुल की परंपरा, गाँव-गली में खिलती, नैतिकता और धर्म से, जीवन की राहें मिलती। धीरे-धीरे शहर बढ़े, स्कूलों की रौनक आई, चॉक और डस्टर संग, नयी किताबें घर-घर छाई। गुरु की छवि बनी रही, अनुशासन की डोर से, पढ़ाई के संग जुड़ गई, विज्ञान की भोर से। कंप्यूटर ने दस्तक दी, शिक्षा का रूप बदला, ब्लैकबोर्ड की जगह अब, स्क्रीन ने स्थान संभाला। कक्षा में बैठा छात्र अब, माउस से उत्तर देता हैं, गुरु की वाणी पहुँच गई, तकनीक के हर फलक पर। डिजिटल बोर्ड चमक उठा, प्रोजेक्टर ने रंग दिखाए, एनिमेशन के दृश्य से, कठिन विषय भी समझ में आए। गाँव के मास्टर जी की, वही परंपरा आगे बढ़ी, ज्ञान का दीप जलता रहे, हर युग में राह दिखाए। ऑनलाइन क्लास ने रच दी, शिक्षा की नई कहानी, घर बैठे-बैठे बच्...
|| महाभारत पर रोंगटे खड़े कर देने वाली कविता || || Mahabharata Poem On Arjuna || तलवार, धनुष और पैदल सैनिक कुरुक्षेत्र में खड़े हुए, रक्त पिपासु महारथी इक दूजे सम्मुख अड़े हुए | कई लाख सेना के सम्मुख पांडव पाँच बिचारे थे, एक तरफ थे योद्धा सब, एक तरफ समय के मारे थे | महा-समर की प्रतिक्षा में सारे ताक रहे थे जी, और पार्थ के रथ को केशव स्वयं हाँक रहे थे जी || रणभूमि के सभी नजारे देखन में कुछ खास लगे, माधव ने अर्जुन को देखा, अर्जुन उन्हें उदास लगे | कुरुक्षेत्र का महासमर एक पल में तभी सजा डाला, पांचजन्य उठा कृष्ण ने मुख से लगा बजा डाला | हुआ शंखनाद जैसे ही सब का गर्जन शुरु हुआ, रक्त बिखरना हुआ शुरु और सबका मर्दन शुरु हुआ | कहा कृष्ण ने उठ पार्थ और एक आँख को मीच जड़ा, गाण्डिव पर रख बाणों को प्रत्यंचा को खींच जड़ा | आज दिखा दे रणभूमि में योद्धा की तासीर यहाँ, इस धरती पर कोई नहीं, अर्जुन के जैसा वीर यहाँ || सुनी बात माधव की तो अर्जुन का चेहरा उतर गया, ...