पद्मिनी गोरा बादल
नरेंद्र मिश्र (Narendra Mishra)
रानी पद्मिनी और गोरा, बादल पर नरेंद्र मिश्र की रुला देने वाली कविता
पद्मिनी गोरा बादल नरेंद्र मिश्रा की हिंदी में एक अद्भुत कविता है। यह राजपूत योद्धा गोरा और बादल की बहादुरी का वर्णन करता है जिन्होंने चित्तौड़ दयालु रतन सिंह को बचाया, जिन्हें अलाउद्दीन खिलजी ने पकड़ लिया था।
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रानी पद्मिनी और गोरा, बादल पर नरेंद्र मिश्र की रुला देने वाली कविता | Gora Badal Poem |
दोहराता हूँ सुनो रक्त से लिखी हुई क़ुरबानी,
जिसके कारण मिट्टी भी चन्दन है राजस्थानी |
रावल रत्न सिंह को छल से कैद किया खिलजी ने,
काल गई मित्रों से मिलकर दाग किया खिलजी ने |
खिलजी का चित्तोड़ दुर्ग में एक संदेशा आया,
जिसको सुनकर शक्ति शौर्य पर फिर अँधियारा छाया ||
दस दिन के भीतर, न पद्मिनी का डोला यदि आया,
यदि ना रूप की रानी को तुमने दिल्ली पहुँचाया |
तो फिर राणा रत्न सिंह का शीश कटा पाओगे,
शाही शर्त ना मानी तो पीछे पछताओगे ||
दारुन संवाद लहर सा दौड़ गया रण भर में,
यह बिजली की तरक छितर से फैल गया अम्बर में |
महारानी हिल गयीं शक्ति का सिंघासन डोला था,
था सतीत्व मजबूर जुल्म विजयी स्वर में बोला था ||
रुष्ट हुए बैठे थे सेनापति गोरा रणधीर,
जिनसे रण में भय कहती थी खिलजी की शमशीर |
अन्य अनेको मेवाड़ी योद्धा रण छोड़ गए थे,
रत्न सिंह के संध नीद से नाता तोड़ गए थे ||
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पर रानी ने प्रथम वीर गोरा को खोज निकाला,
वन-वन भटक रहा था मन में तिरस्कार की ज्वाला |
गोरा से पद्मिनी ने खिलजी का पैगाम सुनाया,
मगर वीरता का अपमानित ज्वार नही मिट पाया ||
बोला ," मैं तो बोहोत तुक्ष हूँ राजनीति क्या जानूँ ?
निर्वासित हूँ राज मुकुट की हठ कैसे पहचानूँ |"
बोली पद्मिनी," समय नहीं है वीर क्रोध करने का,
अगर धरा की आन मिट गयी घाव नहीं भरने का ||
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जीतेजी रजपूती कुल को दाग लगा जाओगे |
राणा ने को कहा किया वो माफ़ करो सेनानी,"
यह कह कर गोरा के क़दमों पर झुकी पद्मिनी रानी ||
" हैं ! हैं ! "
यह क्या करती हो गोरा पीछे हट बोला,
और राजपूती गरिमा का फिर धधक उठा था शोला |
महारानी हो तुम सिसोदिया कुल की जगदम्बा हो,
प्राण प्रतिष्ठा एक लिंग की ज्योति अग्निगंधा हो ||
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महाकाल से भी राणा का मस्तक नहीं कटेगा |
तुम निश्चिन्त रहो महलों में देखो समर भवानी,
और खिलजी देखेगा केसरिया तलवारों का पानी ||"
राणा के शकुशल आने तक गोरा नहीं मरेगा,
एक पहर तक सर काटने पर धड़ युद्ध करेगा |
एक लिंग की शपथ महाराणा वापस आएंगे,
महाप्रलय के घोर प्रबन्जन भी न रोक पाएंगे ||
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शब्द-शब्द मेवाड़ी सेनापति का था तूफानी,
शंकर के डमरू में जैसे जागी वीर भवानी |
जिसके कारण मिट्टी भी चन्दन है राजस्थानी,
दोहराता हूँ सुनो रक्त से लिखी हुई क़ुरबानी||
खिलजी मचला था पानी में आग लगा देने को,
पर पानी प्यास बैठा था ज्वाला पी लेने को |
गोरा का आदेश हुआ सज गए सात सौ डोले,
और बाँकुरे बदल से गोरा सेनापति बोले ||
अन्य सात सौ सखियाँ भी वो साथ लिए आती है |
स्वयं पद्मिनी ने बादल का कुमकुम तिलक किया था,
दिल पर पत्थर रख कर भीगी आँखों से विदा किया था ||
और सात सौ सैनिक जो यम से भी भीड़ सकते थे,
हर सैनिक सेनापति था लाखो से लड़ सकते थे |
एक-एक कर बैठ गए सज गयी डोलियां पल में,
मर मिटने की होड़ लग गयी थी मेवाड़ी दल में ||
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बज कूच शंख सैनिकों ने जयकार लगाई,
हर-हर महादेव की ध्वनि से दशो दिशा लहराई ||
गोरा बादल के अंतस में जगी जोत की रेखा,
मातृ भूमि चित्तोड़ दुर्ग को फिर जी भरकर देखा |
कर अंतिम प्रणाम चढ़े घोड़ो पर सुभग अभिमानी,
देशभक्ति की निकल पड़े लिखने वो अमर कहानी ||
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जिसके कारण मिट्टी भी चन्दन है राजस्थानी,
दोहराता हूँ सुनो रक्त से लिखी हुई क़ुरबानी |
जा पहुंचे डोलियां एक दिन खिलजी के सरहद में,
उधर दूत भी जा पहुंच खिलजी के रंग महल में ||
बोला शहंशाह पद्मिनी मल्लिका बनने आयी है,
रानी अपने साथ हुस्न की कलियाँ भी लायी है |
एक मगर फ़रियाद उसकी फकत पूरी करवा दो,
राणा रत्न सिंह से एक बार मिलवा दो ||
खिलजी उछल पड़ा कह फ़ौरन यह हुक्म दिया था,
बड़े शौख से मिलने का शाही फरमान दिया था |
वह शाही फरमान दूत ने गोरा तक पहुँचाया,
गोरा झूम उठे छन बादल को पास बुलाया ||
बोले,"बेटा वक़्त आ गया अब काट मरने का,
मातृ भूमि मेवाड़ धरा का दूध सफल करने का |
यह लोहार पद्मिनी भेष में बंदी गृह जायेगा,
केवल दस डोलियां लिए गोरा पीछे ढायेगा ||
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घोड़सवार उधर आगे की खी तैयार रहेंगे |
जैसे ही राणा आएं वो सब आंधी बन जाएँ,
और उन्हें चित्तोड़ दुर्ग पर वो शकुशल पहुंचाएं ||
अगर भेद खुल गया वीर तो पल की देर न करना,
और शाही सेना पहुंचे तो बढ़ कर रण करना |
राणा जीएं जिधर शत्रु को उधर न बढ़ने देना,
और एक यवन को भी उस पथ पावँ ना धरने देना ||
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तिल तिल कट मरना मेवाड़ी मान न जाने पाए |"
"ऐसा ही होगा काका राजपूती अमर रहेगी,
बादल की मिट्टी में भी गौरव की गंध रहेगी ||"
"तो फिर आ बेटा बादल साइन से तुझे लगा लू,
हो ना सके शायद अब मिलन अंतिम लाड लड़ा लू |"
यह कह बाँहों में भर कर बादल को गले लगाया,
धरती काँप गयी अम्बर का ||
रानी पद्मिनी और गोरा, बादल पर नरेंद्र मिश्र की रुला देने वाली कविता | Gora Badal Poem
पद्मिनी गोरा बादल नरेंद्र मिश्रा की हिंदी में एक अद्भुत कविता है। यह राजपूत योद्धा गोरा और बादल की बहादुरी का वर्णन करता है जिन्होंने चित्तौड़ दयालु रतन सिंह को बचाया, जिन्हें अलाउद्दीन खिलजी ने पकड़ लिया था।
अंतस मन भर आया,
सावधान कह पुनः पथ पर बढे गोरा सैनानी |
पूँछ लिया झट से बढ़कर के बूढी आँखों का पानी,
जिसके कारण मिट्टी भी चन्दन है राजस्थानी,
दोहराता हूँ सुनो रक्त से लिखी हुई क़ुरबानी ||
गोरा की चातुरी चली राणा के बंधन काटे,
छांट-छांट कर शाही पहरेदारो के सर काटे |
लिपट गए गोरा से राणा गलती पर पछताए,
सेना पति की नमक खलाली देख नयन भर आये ||
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खिलजी का सेनापति पहले से ही शंकित था |
वह मेवाड़ी चट्टानी वीरों से आतंकित था |
जब उसने लिया समझ पद्मिनी नहीँ आयी है,
मेवाड़ी सेना खिलजी की मौत साथ लायी है ||
पहले से तैयार सैन्य दल को उसने ललकारा,
निकल पड़ा तिधि दल का बजने लगा नगाड़ा |
दृष्टि फिरि गोरा की राणा को समझाया,
रण मतवाले को रोका जबरन चित्तोड़ पठाया ||
राणा चले तभी शाही सेना लहराकर आयी,
खिलजी की लाखो नंगी तलवारें पड़ी दिखाई |
खिलजी ललकारा दुश्मन को भाग न जाने देना,
"रत्न सिंह का शीश काट कर ही वीरों दम लेना ||"
"टूट पदों मेवाड़ी शेरों बादल सिंह ललकारा"
हर-हर महादेव का गरजा नभ भेदी जयकारा |
निकल डोलियों से मेवाड़ी बिजली लगी चमकने,
काली का खप्पर भरने तलवारें लगी खटकने ||
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रानी पद्मिनी और गोरा, बादल पर नरेंद्र मिश्र की रुला देने वाली कविता | Gora Badal Poem |
राणा के पथ पर शाही सेना तनिक बढ़ा था,
पर उसपर तो गोरा हिमगिरि-सा अड़ा खड़ा था |
कहा ज़फर से," एक कदम भी आगे बढ़ न सकोगे,
यदि आदेश न माना तो कुत्ते की मौत मरोगे ||
रत्न सिंह तो दूर ना उनकी छाया तुहे मिलेगी,
दिल्ली की भीषण सेना की होली अभी जलेगी |"
खिलजी की असंख्य सेना से गोरा घिरे हुए थे,
लेकिन मानो वे रण में मृत्युंजय बने हुए थे |
पुण्य प्रकाशित होता है जैसे अग्रित पापों से,
फूल खिला रहता असंख्य काटों के संतापों से ||
वो मेवाड़ी शेर अकेला लाखों से लड़ता था,
बढ़ा जिस तरफ वीर उधर ही विजय मंत्र बढ़ता था |
इस भीषण रण से दहली थी दिल्ली की दीवारें,
गोरा से टकरा कर टूटी खिलजी की तलवारें ||
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रानी पद्मिनी और गोरा, बादल पर नरेंद्र मिश्र की रुला देने वाली कविता | Gora Badal Poem |
मगर क़यामत देख अंत में छल से काम लिया था,
गोरा की जंघा पर अरि ने छिप कर वार किया था |
वहीँ गिरे वीर वर गोरा जफ़र सामने आया,
शीश उतार दिया धोखा देकर मन में हर्षाया ||
मगर वाह रे मेवाड़ी ! गोरा का धड़ भी दौड़ा,
किया जफ़र पर वार की जैसे सर पर गिरा हतोड़ा |
एक बार में ही शाही सेना पति चीर दिया था,
जफ़र मोहम्मद को केवल धड़ ने निर्जीव किया था ||
ज्यों ही जफ़र कटा शाही सेना का साहस लरज़ा,
काका का धड़ लख बादल सिंह महारुद्र सा गरजा |
"अरे कायरो नीच बाँगड़ों छल में रण करते हो,
किस बुते पर जवान मर्द बनने का दम भरते हो"
यह कह कर बादल उस छन बिजली बन करके टुटा था ||
मानो धरती पर अम्बर से अग्नि शिरा छुटा था,
ज्वाला मुखी फहत हो जैसे दरिया हो तूफानी |
सदियों दोहराएंगी बादल की रण रंग कहानी ||
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रानी पद्मिनी और गोरा, बादल पर नरेंद्र मिश्र की रुला देने वाली कविता | Gora Badal Poem |
कसकर बाँध लिया आँतों को केशरिया पगड़ी से |
रण चक डिगा न वो प्रलयंकर सम्मुख मृत्यु खड़ी से,
अब बादल तूफ़ान बन गया शक्ति बनी फौलादी,
मानो खप्पर लेकर रण में लड़ती हो आजादी ||
उधर वीर-वर गोरा का धड़ आर्दाल काट रहा था,
और इधर बादल लाशों से भू-दल पात रहा था |
आगे पीछे दाएं बाएं जैम कर लड़ी लड़ाई,
उस दिन समर भूमि में लाखों बादल पड़े दिखाई ||
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रानी पद्मिनी और गोरा, बादल पर नरेंद्र मिश्र की रुला देने वाली कविता | Gora Badal Poem |
मगर हुआ परिणाम वही की जो होना था,
उनको तो कण-कण अरियों के सोन तामे धोना था |
अपने सीमा में बादल शकुशल पहुच गए थे,
गारो बादल तिल-तिलकर रण में खेत गए थे ||
एक-एककर मिटे सभी मेवाड़ी वीर सिपाही,
रत्न सिंह पर लेकिन रंचक आँच न आने पायी |
गोरा बादल के शव पर भारत माता रोई थी,
उसने अपनी दो प्यारी ज्वलंत मनियां खोयी थी ||
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रानी पद्मिनी और गोरा, बादल पर नरेंद्र मिश्र की रुला देने वाली कविता | Gora Badal Poem |
धन्य धरा मेवाड़ धन्य गोरा बादल अभिमानी,
जिनके बल से रहा पद्मिनी का सतीत्व अभिमानी |
जिसके कारन मिट्टी भी चन्दन है राजस्थानी,
दोहराता हूँ सुनो रक्त से लिखी हुई क़ुरबानी ||
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रानी पद्मिनी और गोरा, बादल पर नरेंद्र मिश्र की रुला देने वाली कविता
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Pandit Narendra Mishra Ji |