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गांव से ग्लोबल तक – स्वतंत्रता दिवस विशेष | ग्रामीण भारत से विश्व मंच तक की यात्रा - Gaon Se Global Tak

 गांव से ग्लोबल तक - Gaon Se Global Tak By Abhishek Mishra

भारत की आत्मा उसके गांवों में बसती है। खेत-खलिहान की खुशबू, मिट्टी की सौंधी महक, बैलगाड़ी की धीमी चाल और लोकगीतों की गूंज — ये सब मिलकर हमारे देश की सांस्कृतिक पहचान बनाते हैं। लेकिन यह पहचान केवल अतीत की बात नहीं, बल्कि आज भी हमें "गांव से ग्लोबल" की ओर बढ़ने की प्रेरणा देती है।
गांव से ग्लोबल तक – स्वतंत्रता दिवस विशेष | ग्रामीण भारत से विश्व मंच तक की यात्रा -  Gaon Se Global Tak
इस स्वतंत्रता दिवस पर, प्रस्तुत है अभिषेक मिश्रा की एक विशेष कविता, जो ग्रामीण भारत के संघर्ष, आज़ादी की लड़ाई और आधुनिक प्रगति की कहानी बयां करती है।


कविता: गांव से ग्लोबल तक

(स्वतंत्रता दिवस विशेष)

धान की खुशबू, मिट्टी की सौंधी,
पगडंडी का मीठा गान,
बरगद, पीपल, नीम की छाया,
झोंपड़ियों में सपनों का मान।

बैलगाड़ी की धीमी चाल में,
कच्चे आँगन का था सिंगार,
हाट-बाज़ार की चहल-पहल में,
गूँजते थे लोक-पुकार।

पर आई जब गुलामी की आँधी,
सूख गए खेतों के गुलाल,
माँ के आँचल में लहराते सपने,
टूट गए जैसे मिट्टी के लाल।

लाठी, गोली, कोड़े, जंजीरें,
रोटी आधी, भूख का गाँव,
फिर भी भारत–माँ के बेटों ने,
प्राण दिए, पर न झुकाया नाम।

चंपारण में उठी जो आंधी,
नमक सत्याग्रह ज्वाला बनी,
भगत, सुखदेव, आज़ाद की कुर्बानी,
जन-जन की मिसाल बनी।

सुभाष के नाद गगन में गूँजे,
"तुम मुझे ख़ून दो" का गीत,
वीर जवानों के रक्त से फिर,
लाल हुआ भारत का मीत।

15 अगस्त की भोर आई जब,
सूरज ने सोने रंग बिखेरा,
स्वतंत्र ध्वज नभ में लहराया,
पर सफ़र का था लंबा डेरा।
गांव से ग्लोबल तक – स्वतंत्रता दिवस विशेष | ग्रामीण भारत से विश्व मंच तक की यात्रा -  Gaon Se Global Tak


गरीबी, अशिक्षा, भूख, बीमारी,
अब भी थीं राह में काँटे,
पर गाँव के दृढ़ किसानों ने,
पसीने से सोना बिखराते।

हाथ में हल, आँखों में सपना,
गाँव ने मेहनत की मिसाल गढ़ी,
हरित–श्वेत क्रांति की बगिया से,
धरती की किस्मत बदल पड़ी।

शिक्षा की ज्योति जली जब,
ज्ञान की नदियाँ बह निकलीं,
तकनीक के पंख लगे तो,
भारत की ऊँचाइयाँ दिखीं।

आईटी, चंद्रयान, मंगल-यात्रा,
नभ के द्वार खुले यहाँ,
गाँव की मिट्टी का बेटा भी,
विश्व–विजेता बना जहाँ।

अब किसान का बेटा बनता,
वैज्ञानिक, डॉक्टर, इंजीनियर,
गाँव की बेटी खोल रही है,
विश्व मंच पर अपना दफ़्तर।

आज तिरंगे की छाँव तले,
हम खड़े हैं दृढ़ संकल्प लिए,
"गांव से ग्लोबल" की यात्रा में,
हर हिंदुस्तानी ने कदम दिए।

आओ इस आज़ादी पर्व पर,
प्रतिज्ञा हम सब फिर दोहराएँ,
गाँव की मिट्टी से जुड़े रहें हम,
पर दुनिया को भी अपनाएँ।

लेखक परिचय

अभिषेक मिश्रा, उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के चकिया गांव के युवा कवि और लेखक हैं। उनकी रचनाओं में मिट्टी की महक, जीवन की सच्चाइयां और देशभक्ति की भावना का अद्भुत मेल देखने को मिलता है।
📧 ईमेल: abhishekmishra3067@gmail.com

 


कविता का सार

यह कविता केवल अतीत की स्मृतियों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आज़ादी के बाद के भारत के बदलाव को भी दर्शाती है। जहां एक समय किसान और मजदूर अपने गांवों तक सीमित थे, आज वही लोग विज्ञान, तकनीक, शिक्षा और व्यापार में वैश्विक मंच तक पहुंच चुके हैं।


स्वतंत्रता दिवस पर "गांव से ग्लोबल" का संदेश

  • गांव की मिट्टी और जड़ों से जुड़े रहना – यह हमारी पहचान है।

  • नई तकनीक और शिक्षा अपनाना – ताकि गांव भी विकास में पीछे न रहे।

  • युवा शक्ति का योगदान – भारत के भविष्य को दिशा देने में युवाओं का अहम रोल है।

  • समानता और एकता – गांव और शहर, अमीर और गरीब का अंतर मिटाना ज़रूरी है।

"गांव से ग्लोबल" की यह यात्रा आज़ादी की नींव और आधुनिक विकास का संगम है। इस स्वतंत्रता दिवस पर, आइए संकल्प लें कि हम अपनी जड़ों को नहीं भूलेंगे और नए आयामों को छूने के लिए निरंतर प्रयास करते रहेंगे।

आज सिन्धु में ज्वार उठा है --> HERE
आए जिस-जिस की हिम्मत हो --> HERE
कदम मिलाकर चलना होगा --> HERE
 मस्तक नहीं झुकेगा --> HERE
 कण्ठ-कण्ठ में एक राग है --> HERE

सिंहासन खाली करो कि जनता आती है --> HERE

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