कोई मज़बूरी होगी ...
तू चला गया,
कोई मज़बूरी होगी?
क्या पता,
ख़ुदा की मंजूरी होगी?
कोई मज़बूरी होगी?
क्या पता,
ख़ुदा की मंजूरी होगी?
पर तुमसे ही हमने सीखा था,
चलते गिरना,गिरकर उठना।
हर काम मे जान लगाना,
और हार को हराना।।
तुमको हमने देखा था,
उठते हुए ज़मीन से।
आसमां को चूमते देखा,
देखा था करीब से।।
तू चला गया,
कोई मज़बूरी होगी?
क्या पता,
ख़ुदा की मंजूरी होगी?
न कोई रिश्ता अपना,
न तो मुझे जानता था।
न हम कभी मिले,
पर बड़ा भाई मानता था।।
क्यों तू टूट गया?
ये मेरी समझ में न आया,
तू के बार गिरकर खड़ा हुआ,
तुझको किसने इतना तरसाया?
तू चला गया,
कोई मज़बूरी होगी?
क्या पता,
ख़ुदा की मंजूरी होगी?