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Ranchandi Ki Atript Pyaas - रणचंडी की अतृप्त प्यास | परिचय - रग-रग हिन्दु मेरा परिचय

Ranchandi Ki Atript Pyaas - रणचंडी की अतृप्त प्यास

हिंदु तन मन, हिन्दु जीवन, रग-रग हिन्दु मेरा परिचय

Atal Bihari Vajpayee Hindi Poems

हिंदु तन मन, हिन्दु जीवन, रग-रग हिन्दु मेरा परिचय॥

मैं शंकर का वह क्रोधानल कर सकता जगती क्षार क्षार।
डमरू की वह प्रलयध्वनि हूं जिसमे नचता भीषण संहार।
रणचंडी की अतृप्त प्यास, मैं दुर्गा का उन्मत्त हास।
मैं यम की प्रलयंकर पुकार, जलते मरघट का धुँआधार।
फिर अंतरतम की ज्वाला से, जगती मे आग लगा दूं मैं।
यदि धधक उठे जल, थल, अंबर, जड़, चेतन तो कैसा विस्मय?

परिचय-अटल बिहारी वाजपेयी की हिंदी कवितायेँ
हिन्दु तन मन, हिन्दु जीवन, रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥

मैं आदि पुरुष, निर्भयता का वरदान लिये आया भू पर।
पय पीकर सब मरते आए, मैं अमर हुआ लो विष पीकर।
अधरों की प्यास बुझाई है, पी कर मैने वह आग प्रखर।
हो जाती दुनिया भस्मसात, जिसको पल भर में ही छूकर।
भय से व्याकुल फिर दुनिया ने प्रारंभ किया मेरा पूजन।
मैं नर, नारायण, नीलकण्ठ बन गया न इसमे कुछ संशय।
हिन्दु तन मन, हिन्दु जीवन, रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥

मैं अखिल विश्व का गुरु महान, देता विद्या का अमर दान।

मैने दिखलाया मुक्तिमार्ग, मैने सिखलाया ब्रह्म ज्ञान।
मेरे वेदों का ज्ञान अमर, मेरे वेदों की ज्योति प्रखर।
मानव के मन का अंधकार, क्या कभी सामने सका ठहर?
मेरा स्वर नभ में घहर घहर, सागर के जल में छहर छहर।
इस कोने से उस कोने तक, कर सकता जगती सौरभमय।
हिन्दु तन मन, हिन्दु जीवन, रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥

परिचय-अटल बिहारी वाजपेयी की हिंदी कवितायेँ

मैं तेजपुन्ज तमलीन जगत में फैलाया मैने प्रकाश।
जगती का रच करके विनाश, कब चाहा है निज का विकास?
शरणागत की रक्षा की है, मैने अपना जीवन देकर।
विश्वास नही यदि आता तो साक्षी है इतिहास अमर।
यदि आज देहली के खण्डहर, सदियों की निद्रा से जगकर।
गुंजार उठे ऊंचे स्वर से ‘हिन्दु की जय’ तो क्या विस्मय?
हिन्दु तन मन, हिन्दु जीवन, रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥

दुनिया के वीराने पथ पर जब जब नर ने खाई ठोकर।
दो आँसू शेष बचा पाया जब जब मानव सब कुछ खोकर।
मैं आया तभी द्रवित होकर, मैं आया ज्ञान दीप लेकर।
भूला भटका मानव पथ पर चल निकला सोते से जगकर।
पथ के आवर्तों से थक कर, जो बैठ गया आधे पथ पर।
उस नर को राह दिखाना ही मेरा सदैव का दृढनिश्चय।
हिन्दु तन मन, हिन्दु जीवन, रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥

परिचय-अटल बिहारी वाजपेयी की हिंदी कवितायेँ

मैने छाती का लहु पिला पाले विदेश के क्षुधित लाल।
मुझको मानव में भेद नही, मेरा अन्तःस्थल वर विशाल।
जग के ठुकराए लोगों को, लो मेरे घर का खुला द्वार।
अपना सब कुछ हूं लुटा चुका, फिर भी अक्षय है धनागार।
मेरा हीरा पाकर ज्योतित परकीयों का वह राज मुकुट।
यदि इन चरणों पर झुक जाए कल वह किरिट तो क्या विस्मय?
हिन्दु तन मन, हिन्दु जीवन, रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥

मैं वीरपुत्र मेरी जननी के जगती में जौहर अपार।
अकबर के पुत्रों से पूछो, क्या याद उन्हें मीनाबजार?
क्या याद उन्हें चित्तौड़ दुर्ग में जलने वाली आग प्रखर?
जब हाय सहस्त्रों माताएं, तिल तिल कर जल कर हो गई अमर।
वह बुझने वाली आग नहीं रग रग में उसे समाए हूं।
यदि कभी अचानक फूट पडे विप्लव लेकर तो क्या विस्मय?
हिन्दु तन मन, हिन्दु जीवन, रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥

परिचय-अटल बिहारी वाजपेयी की हिंदी कवितायेँ

होकर स्वतन्त्र मैने कब चाहा है कर लूं जग को गुलाम?
मैने तो सदा सिखाया है करना अपने मन को गुलाम।
गोपाल राम के नामों पर कब मैने अत्याचार किए?
कब दुनिया को हिन्दु करने घर घर में नरसंहार किए?
कोई बतलाए काबुल में जाकर कितनी मस्जिद तोडी?
भूभाग नही, शत शत मानव के हृदय जीतने का निश्चय।
हिन्दु तन मन, हिन्दु जीवन, रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥

मैं एक बिन्दु, परिपूर्ण सिन्धु है यह मेरा हिन्दु समाज।
मेरा इसका संबन्ध अमर, मैं व्यक्ति और यह है समाज।
इससे मैने पाया तन मन, इससे मैने पाया जीवन।
मेरा तो बस कर्तव्य यही, कर दूं सब कुछ इसके अर्पण।
मैं तो समाज की थाती हूं, मै तो समाज का हूं सेवक।
मैं तो समष्टि के लिए व्यष्टि का कर सकता बलिदान अभय।
हिन्दु तन मन, हिन्दु जीवन, रग रग हिन्दु मेरा परिचय॥

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अटल बिहारी वाजपेयी

परिचय-अटल बिहारी वाजपेयी की हिंदी कवितायेँ
Ranchandi Ki Atript Pyaas - रणचंडी की अतृप्त प्यास

अटल बिहारी वाजपेयी की हिंदी कवितायेँ



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