Bhaagya - भाग्य
भाग्य पर हिंदी निबंध
Essay On Serendipity
भाग्य एक ऐसा शब्द है जिसके पीछे हम अपनी सारी कमियों को छिपाने का प्रयास करते हैं । मनुष्य की यह प्रवृत्ति होती है कि वह जिस कार्य में सफल नहीं होता है या जिन महत्वाकांक्षाओं को वह पूरा नहीं कर पाता है उसके लिए वह भाग्य को दोषी ठहरा था है। अक्सर हमने लोगों को यह कहते हुए सुना है "हमारा तो भाग्य ही खराब है या हमारे भाग्य में यही लिखा था" । परंतु वास्तव में यह बात सत्य नहीं है भाग्य के ऊपर कर्म होता है हम अपने पुरुषार्थ या कर्म से अपने भाग्य को बदल सकते हैं क्योंकि यदि इंसान किसी वस्तु अथवा स्थान की चाहत कर ले और उसे पाने के लिए सच्ची लगन से मेहनत करता रहे तो वह उसे अवश्य ही प्राप्त कर सकता है। द्वारिका प्रसाद महेश्वरी जी ने सच ही कहा है "मन के हारे हार , मन के जीते जीत "।
यदि हमारे अंदर जीतने की लगन होगी तो हम उसके लिए हर संभव प्रयास करेंगे परंतु यदि हम सिर्फ भाग्य के भरोसे अकर्मण्य होकर बैठे रहेंगे तो हम कुछ भी हासिल नहीं कर सकते।
मैं इस कहानी के माध्यम से इसका चित्रण करना चाहूंगी।
एक बार की बात है एक छोटे से शहर में दो दोस्त रहते थे हेमंत और रवि दोनों बहुत ही मेहनती और अच्छे मित्र थे दोनों का सपना था कि दोनों बड़े होकर बड़े व्यापारी बने । हेमंत की आवाज बहुत सुरीली थी वह बहुत ही मधुर गाना गाता था । परंतु वह गायकी सिर्फ अपने शौक के लिए करता था । धीरे-धीरे समय बीता दोनों दोस्त बड़े हो गए और उन्होंने कपड़े का व्यापार शुरु किया | दोनों इतने मेहनती थे कि जल्दी उन्हें सफलता प्राप्त हुई और बड़े बड़े व्यापारियों से उनकी जान पहचान हो गई ।
एक दिन दुर्भाग्य से उनके गोदाम में आग लग जाने के कारण उनका पूरा व्यापार नष्ट हो गया और वे पूरी तरह से बर्बाद हो गए । उनकी सारी जमा-पूंजी भी खत्म हो गई और वह बुरी तरह से कर्ज में आ गया । इतने बड़े हादसे के बाद अपने आप को संभालना बड़ा कठिन होता है । परंतु दोनों ने हार नहीं मानी और जैसे-तैसे मेहनत करके दोनों ने अपने सपने को पूरा करने का संकल्प लिया । खूब मेहनत करके दोबारा से नया व्यापार शुरू किया । इस बार उनके पास समस्या यह थी कि उन्होंने पूरा व्यापार बैंक से लोन लेकर शुरू किया था ।
इस बार फिर उनके साथ बुरा हुआ और वह बैंक से लोन की रकम को ना भर पाए और उनका व्यापार बैंक द्वारा सील कर दिया गया । इस बार उन्हें जो नुकसान हुआ उसके पश्चात तो हेमंत और रवि की स्थिति बड़ी बुरी हो गई। उनके लिए अपने परिवार का पालन-पोषण करना भी कठिन हो गया था । हेमंत बहुत ही हिम्मती और खुद पर भरोसा रखने वाला व्यक्ति था । जबकि रवि कमजोर हृदय वाला और हार मानने वाली प्रवृत्ति का था। हेमंत ने ठान लिया " मैं कुछ भी करके फिर से अपना व्यापार खड़ा करूंगा " जब कि रवि ने दूसरी जगह पर नौकरी करके अपने परिवार का पालन पोषण किया।
हेमंत दिन में गायकी करता था और रात में नए व्यापार का साधन एकत्र करने की कोशिश में नए नए लोगों से मिलता जुलता था । 1 दिन उसको सड़क पर गाता देख कर एक मशहूर गायक को उसकी आवाज बड़ी मधुर और दिल को छू गई। उन्होंने उसे अपने ऑफिस बुलाया और उसे गाने के नए-नए कॉन्ट्रैक्ट दिलाया जिससे उसे बहुत लोग जानने और उसकी गायिका को पसंद करने लगे। इस प्रकार उसे अपने व्यापार को शुरू करने में बहुत सहायता मिली और जल्द ही उसने धन एकत्रित कर लिया और एक नया व्यापार शुरु किया। इस बार उसे वह पाए में बहुत सफलता मिली और वह एक बड़ा व्यापारी बन गया ।
इस कहानी के माध्यम से हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि चुकी हेमंत ने हार नहीं मानी और मेहनत करता रहा । इसलिए अंततः वह अपने सपने को पूरा कर पाया लेकिन रवि ने भाग्य को दोषी ठहरा कर अपने कर्म पर भरोसा नहीं किया और हार मान ली । इसीलिए अंततः वह अपने सपने को पूरा ना कर पाया ।
अंत में मैं श्री शिवमंगल सिंह जी की कविता ' चलना हमारे काम है ' से कुछ पंक्तियां प्रस्तुत करना चाहूंगी जो इस प्रकार हैं-
" किसको नहीं बहना पड़ा,
सुख-दुख हमारी ही तरह,
किसको नहीं सहना पड़ा ।
फिर व्यर्थ क्यों कहता फिर मुझ पर विधाता वाम है ।"
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अनुष्का कसौधन