Gora Badal Kavita: मेवाड़ के शौर्य की अमर गाथा
पंडित नरेंद्र मिश्र की लेखनी से निकली यह कविता केवल शब्दों का संग्रह नहीं, बल्कि भारतीय देशभक्ति कविता (Patriotic Poems) का एक अनमोल रत्न है। जिस तरह महाभारत के युद्ध में वीरों ने धर्म की रक्षा की, और मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने सत्य का साथ दिया, उसी तरह गोरा और बादल ने मेवाड़ की आन बचाने के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए।
पद्मिनी गोरा बादल
(Lyrics by: Pandit Narendra Mishra)
काल गई मित्रों से मिलकर दाग किया खिलजी ने |
खिलजी का चित्तोड़ दुर्ग में एक संदेशा आया,
जिसको सुनकर शक्ति शौर्य पर फिर अँधियारा छाया ||
यदि ना रूप की रानी को तुमने दिल्ली पहुँचाया |
तो फिर राणा रत्न सिंह का शीश कटा पाओगे,
शाही शर्त ना मानी तो पीछे पछताओगे ||
यह बिजली की तरक छितर से फैल गया अम्बर में |
महारानी हिल गयीं शक्ति का सिंघासन डोला था,
था सतीत्व मजबूर जुल्म विजयी स्वर में बोला था ||
जिनसे रण में भय कहती थी खिलजी की शमशीर |
अन्य अनेको मेवाड़ी योद्धा रण छोड़ गए थे,
रत्न सिंह के संध नीद से नाता तोड़ गए थे ||
वन-वन भटक रहा था मन में तिरस्कार की ज्वाला |
गोरा से पद्मिनी ने खिलजी का पैगाम सुनाया,
मगर वीरता का अपमानित ज्वार नही मिट पाया ||
निर्वासित हूँ राज मुकुट की हठ कैसे पहचानूँ |"
बोली पद्मिनी," समय नहीं है वीर क्रोध करने का,
अगर धरा की आन मिट गयी घाव नहीं भरने का ||
जीतेजी रजपूती कुल को दाग लगा जाओगे |
"राणा ने जो कहा किया वो माफ़ करो सेनानी,"
यह कह कर गोरा के क़दमों पर झुकी पद्मिनी रानी ||
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| 'जिसके कारण मिट्टी भी चन्दन है राजस्थानी' - चित्तौड़ की महारानी पद्मिनी के जौहर का प्रतीकात्मक चित्रण। |
यह क्या करती हो गोरा पीछे हट बोला,
और राजपूती गरिमा का फिर धधक उठा था शोला |
महारानी हो तुम सिसोदिया कुल की जगदम्बा हो,
प्राण प्रतिष्ठा एक लिंग की ज्योति अग्निगंधा हो ||
महाकाल से भी राणा का मस्तक नहीं कटेगा |
तुम निश्चिन्त रहो महलों में देखो समर भवानी,
और खिलजी देखेगा केसरिया तलवारों का पानी ||"
एक पहर तक सर काटने पर धड़ युद्ध करेगा |
एक लिंग की शपथ महाराणा वापस आएंगे,
महाप्रलय के घोर प्रबन्जन भी न रोक पाएंगे ||
शंकर के डमरू में जैसे जागी वीर भवानी |
जिसके कारण मिट्टी भी चन्दन है राजस्थानी,
दोहराता हूँ सुनो रक्त से लिखी हुई क़ुरबानी||
पर पानी प्यास बैठा था ज्वाला पी लेने को |
गोरा का आदेश हुआ सज गए सात सौ डोले,
और बाँकुरे बदल से गोरा सेनापति बोले ||
अन्य सात सौ सखियाँ भी वो साथ लिए आती है |
स्वयं पद्मिनी ने बादल का कुमकुम तिलक किया था,
दिल पर पत्थर रख कर भीगी आँखों से विदा किया था ||
हर सैनिक सेनापति था लाखो से लड़ सकते थे |
एक-एक कर बैठ गए सज गयी डोलियां पल में,
मर मिटने की होड़ लग गयी थी मेवाड़ी दल में ||
पांचो ही शंकर के गण की तरह समर मतवाले |
बज कूच शंख सैनिकों ने जयकार लगाई,
हर-हर महादेव की ध्वनि से दशो दिशा लहराई ||
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| 'गोरा का धड़ भी दौड़ा' - शीश कटने के बाद भी दुश्मनों का संहार करते सेनापति गोरा। |
मातृ भूमि चित्तोड़ दुर्ग को फिर जी भरकर देखा |
कर अंतिम प्रणाम चढ़े घोड़ो पर सुभग अभिमानी,
देशभक्ति की निकल पड़े लिखने वो अमर कहानी ||
उधर दूत भी जा पहुंच खिलजी के रंग महल में ||
बोला शहंशाह पद्मिनी मल्लिका बनने आयी है,
रानी अपने साथ हुस्न की कलियाँ भी लायी है |
एक मगर फ़रियाद उसकी फकत पूरी करवा दो,
राणा रत्न सिंह से एक बार मिलवा दो ||
बड़े शौख से मिलने का शाही फरमान दिया था |
वह शाही फरमान दूत ने गोरा तक पहुँचाया,
गोरा झूम उठे छन बादल को पास बुलाया ||
मातृ भूमि मेवाड़ धरा का दूध सफल करने का |
यह लोहार पद्मिनी भेष में बंदी गृह जायेगा,
केवल दस डोलियां लिए गोरा पीछे ढायेगा ||
घोड़सवार उधर आगे की खी तैयार रहेंगे |
जैसे ही राणा आएं वो सब आंधी बन जाएँ,
और उन्हें चित्तोड़ दुर्ग पर वो शकुशल पहुंचाएं ||
और शाही सेना पहुंचे तो बढ़ कर रण करना |
राणा जीएं जिधर शत्रु को उधर न बढ़ने देना,
और एक यवन को भी उस पथ पावँ ना धरने देना ||"
तिल तिल कट मरना मेवाड़ी मान न जाने पाए |"
"ऐसा ही होगा काका राजपूती अमर रहेगी,
बादल की मिट्टी में भी गौरव की गंध रहेगी ||"
हो ना सके शायद अब मिलन अंतिम लाड लड़ा लू |"
यह कह बाँहों में भर कर बादल को गले लगाया,
धरती काँप गयी अम्बर का अंतस मन भर आया ||
पूँछ लिया झट से बढ़कर के बूढी आँखों का पानी,
जिसके कारण मिट्टी भी चन्दन है राजस्थानी,
दोहराता हूँ सुनो रक्त से लिखी हुई क़ुरबानी ||
छांट-छांट कर शाही पहरेदारो के सर काटे |
लिपट गए गोरा से राणा गलती पर पछताए,
सेना पति की नमक खलाली देख नयन भर आये ||
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| गोरा और बादल: काका-भतीजे की वो जोड़ी जिसने खिलजी के अहंकार को तोड़ दिया। |
वह मेवाड़ी चट्टानी वीरों से आतंकित था |
जब उसने लिया समझ पद्मिनी नहीँ आयी है,
मेवाड़ी सेना खिलजी की मौत साथ लायी है ||
निकल पड़ा तिधि दल का बजने लगा नगाड़ा |
दृष्टि फिरि गोरा की राणा को समझाया,
रण मतवाले को रोका जबरन चित्तोड़ पठाया ||
खिलजी की लाखो नंगी तलवारें पड़ी दिखाई |
खिलजी ललकारा दुश्मन को भाग न जाने देना,
"रत्न सिंह का शीश काट कर ही वीरों दम लेना ||"
हर-हर महादेव का गरजा नभ भेदी जयकारा |
निकल डोलियों से मेवाड़ी बिजली लगी चमकने,
काली का खप्पर भरने तलवारें लगी खटकने ||
पर उसपर तो गोरा हिमगिरि-सा अड़ा खड़ा था |
कहा ज़फर से," एक कदम भी आगे बढ़ न सकोगे,
यदि आदेश न माना तो कुत्ते की मौत मरोगे ||
दिल्ली की भीषण सेना की होली अभी जलेगी |"
यह कह के महाकाल बन गोरा रण में हुंकारा,
लगा काटने शीश बही समर में रक्त की धारा ||
लेकिन मानो वे रण में मृत्युंजय बने हुए थे |
पुण्य प्रकाशित होता है जैसे अग्रित पापों से,
फूल खिला रहता असंख्य काटों के संतापों से ||
बढ़ा जिस तरफ वीर उधर ही विजय मंत्र बढ़ता था |
इस भीषण रण से दहली थी दिल्ली की दीवारें,
गोरा से टकरा कर टूटी खिलजी की तलवारें ||
गोरा की जंघा पर अरि ने छिप कर वार किया था |
वहीँ गिरे वीर वर गोरा जफ़र सामने आया,
शीश उतार दिया धोखा देकर मन में हर्षाया ||
किया जफ़र पर वार की जैसे सर पर गिरा हतोड़ा |
एक बार में ही शाही सेना पति चीर दिया था,
जफ़र मोहम्मद को केवल धड़ ने निर्जीव किया था ||
काका का धड़ लख बादल सिंह महारुद्र सा गरजा |
"अरे कायरो नीच बाँगड़ों छल में रण करते हो,
किस बुते पर जवान मर्द बनने का दम भरते हो"
यह कह कर बादल उस छन बिजली बन करके टुटा था ||
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| : इस अमर गाथा के रचयिता और ओज के कवि, पद्म श्री पंडित नरेंद्र मिश्र जी। |
ज्वाला मुखी फहत हो जैसे दरिया हो तूफानी |
सदियों दोहराएंगी बादल की रण रंग कहानी ||
जख्मी बादल पर लाखों तलवारें खिंची खड़ी थी,
कसकर बाँध लिया आँतों को केशरिया पगड़ी से |
रण चक डिगा न वो प्रलयंकर सम्मुख मृत्यु खड़ी से,
अब बादल तूफ़ान बन गया शक्ति बनी फौलादी,
मानो खप्पर लेकर रण में लड़ती हो आजादी ||
और इधर बादल लाशों से भू-दल पात रहा था |
आगे पीछे दाएं बाएं जैम कर लड़ी लड़ाई,
उस दिन समर भूमि में लाखों बादल पड़े दिखाई ||
उनको तो कण-कण अरियों के सोन तामे धोना था |
अपने सीमा में बादल शकुशल पहुच गए थे,
गारो बादल तिल-तिलकर रण में खेत गए थे ||
रत्न सिंह पर लेकिन रंचक आँच न आने पायी |
उसने अपनी दो प्यारी ज्वलंत मनियां खोयी थी ||
जिनके बल से रहा पद्मिनी का सतीत्व अभिमानी |
दोहराता हूँ सुनो रक्त से लिखी हुई क़ुरबानी ||
यह कविता केवल शब्दों का संग्रह नहीं है, बल्कि उस बलिदान की गूंज है जिसने सदियों तक भारतवर्ष के स्वाभिमान को जीवित रखा। गोरा और बादल का बलिदान हमें याद दिलाता है कि मातृभूमि की रक्षा से बढ़कर कोई धर्म नहीं है।
गोरा और बादल कौन थे? (Who were Gora and Badal?)
गोरा और बादल (Gora Badal) मेवाड़ (चित्तौड़गढ़) के इतिहास के वो दो महान योद्धा थे जिन्होंने अपनी स्वामीभक्ति और पराक्रम से इतिहास बदल दिया।
- रिश्ता: गोरा, बादल के काका (चाचा) थे।
- इतिहास (1303 ई.): जब सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने छल-कपट से चित्तौड़ के राजा रतन सिंह को कैद कर लिया, तो उन्हें छुड़ाने का बीड़ा गोरा और बादल ने उठाया।
- रणनीति: उन्होंने 700 डोलियों की योजना बनाई, जिनमें रानी और उनकी दासियों की जगह सशस्त्र राजपूत सैनिक बैठे थे। इस योजना से उन्होंने न केवल खिलजी को चकमा दिया बल्कि राजा को भी सकुशल वापस ले आए।
- बलिदान: इस युद्ध में गोरा वीरगति को प्राप्त हुए और नन्हे बादल ने भी अद्भुत शौर्य दिखाते हुए अपने प्राण न्योछावर कर दिए।
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Frequently Asked Questions (FAQ)
Gora Badal Kavita के रचयिता कौन हैं?
इस प्रसिद्ध कविता के रचयिता पंडित नरेंद्र मिश्र (Pandit Narendra Mishra) हैं।
गोरा और बादल कौन थे?
गोरा और बादल मेवाड़ के राजपूत योद्धा थे। वे रिश्ते में काका-भतीजे थे जिन्होंने रावल रतन सिंह को खिलजी की कैद से छुड़ाया था।



