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तुम्हारी याद के दीपक भी अब जलाना क्या - Tumhari Yaad Ke Deepak Ab Jalana Kya | Azhar Iqbal Ghazal

तुम्हारी याद के दीपक भी अब जलाना क्या -  Tumhari Yaad Ke Deepak Ab Jalana Kya

Azhar Iqbal Ghazal


तुम्हारी याद के दीपक भी अब जलाना क्या

जुदा हुए हैं तो अहद-ए-वफ़ा निभाना क्या

तुम्हारी याद के दीपक भी अब जलाना क्या -  Tumhari Yaad Ke Deepak Ab Jalana Kya  Azhar Iqbal Ghazal

बसीत होने लगी शहर-ए-जाँ पे तारीकी

खुला हुआ है कहीं पर शराब-ख़ाना क्या


खड़े हुए हो मियाँ गुम्बदों के साए में

सदाएँ दे के यहाँ पर फ़रेब खाना क्या


हर एक सम्त यहाँ वहशतों का मस्कन है

जुनूँ के वास्ते सहरा ओ आशियाना क्या


वो चाँद और किसी आसमाँ पे रौशन है

सियाह रात है उस की गली में जाना क्या 

-

अज़हर इक़बाल

ग़ज़लें


तुम्हारी याद के दीपक भी अब जलाना क्या -  Tumhari Yaad Ke Deepak Ab Jalana Kya

Azhar Iqbal Ghazal


tumhārī yaad ke dīpak bhī ab jalānā kyā

judā hue haiñ to ahd-e-vafā nibhānā kyā


basīt hone lagī shahr-e-jāñ pe tārīkī

khulā huā hai kahīñ par sharāb-ḳhāna kyā


khaḌe hue ho miyāñ gumbadoñ ke saa.e meñ

sadā.eñ de ke yahāñ par fareb khānā kyā


har ek samt yahāñ vahshatoñ kā maskan hai

junūñ ke vāste sahrā o āshiyāna kyā

तुम्हारी याद के दीपक भी अब जलाना क्या -  Tumhari Yaad Ke Deepak Ab Jalana Kya  Azhar Iqbal Ghazal

vo chāñd aur kisī āsmāñ pe raushan hai

siyāh raat hai us kī galī meñ jaanā kyā



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