हुई न ख़त्म तेरी रहगुज़ार क्या करते - Hui Na Khatm Teri Rahguzaar Kya Karte
Azhar Iqbal Ghazal
हुई न ख़त्म तेरी रहगुज़ार क्या करते
तेरे हिसार से ख़ुद को फ़रार क्या करते
सफ़ीना ग़र्क़ ही करना पड़ा हमें आख़िर
तिरे बग़ैर समुंदर को पार क्या करते
बस एक सुकूत ही जिस का जवाब होना था
वही सवाल मियाँ बार बार क्या करते
फिर इस के बाद मनाया न जश्न ख़ुश्बू का
लहू में डूबी थी फ़स्ल-ए-बहार क्या करते
नज़र की ज़द में नए फूल आ गए 'अज़हर'
गई रुतों का भला इंतिज़ार क्या करते
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अज़हर इक़बाल