Nature Poems in Hindi: प्रकृति के अद्भुत रूप
प्रकृति (Nature) ईश्वर की सबसे सुंदर रचना है। चाहे वह सुमित्रानंदन पंत (Sumitranandan Pant) की कोमल कविताएँ हों या मेघ आए बड़े बन-ठन के, प्रकृति हर जगह मौजूद है।
आज हम आपके लिए लाए हैं Short & Heart Touching Poems on Nature जो कक्षा 4 से 10 (Class 6) के छात्रों, पर्यावरण प्रेमियों और साहित्य अनुरागियों के लिए बेहतरीन हैं। इन कविताओं में आपको धरती माँ की पुकार, पेड़ों का दर्द और बसंत का उल्लास मिलेगा।
1. प्रकृति का सानिध्य
(Short Poem of Nature in Hindi)
कष्ट, तप ओ भाग्य भी हो दास जिसका |
जिस धरा के अंश थे अद्भुत प्रतापी,
तेज जिनके विश्व भर में था ||
- Rakesh K Jha
2. संभल जाओ ऐ दुनिया वालो
(Poem about Nature Conservation)
वसुंधरा पे करो घातक प्रहार नही !
रब करता आगाह हर पल
प्रकृति पर करो घोर अत्यचार नही !!
स्थल रमणीय सघन रहा नही !
खोद रहा खुद इंसान कब्र अपनी
जैसे जीवन की अब परवाह नही !!
वन्यजीवो को मिला मुकाम नही !
मिटा रहा खुद जीवन के अवयव
धरा पर बचा जीव का आधार नहीं !!
दिखे कही हरयाली का अब नाम नही !
लहलाते थे कभी वृक्ष हर आँगन में
बचा शेष उन गलियारों का श्रृंगार नही !
गौ माता का घरो में स्थान रहा नही !
जहाँ बहती थी कभी दूध की नदिया
कुंए,नलकूपों में जल का नाम नही !!
आनंद के आलावा कुछ याद नही
नित नए साधन की खोज में
पर्यावरण का किसी को रहा ध्यान नही !!
करता ईश पर कोई विश्वास नही !
भूल गए पाठ सब रामयण गीता के,
कुरान,बाइबिल किसी को याद नही !!
बुजुर्गो को मिलता सम्मान नही !
देवो की इस पावन धरती पर
बचा धर्म -कर्म का अब नाम नही !!
वसुंधरा पे करो घातक प्रहार नही !
रब करता आगाह हर पल
प्रकृति पर करो घोर अत्यचार नही !!
- डी. के. निवातियाँ
3. रह रहकर टूटता रब का कहर
(Heart Touching Poem on Nature in Hindi)
खंडहरों में तब्दील होते शहर
सिहर उठता है बदन
देख आतंक की लहर
आघात से पहली उबरे नहीं
तभी होता प्रहार ठहर ठहर
ये कैसा उमड़ा प्रकति का क्रोध
विनाश लीला कर
क्यों झुंझलाकर करे प्रकट रोष
सजा फिर उसकी सबको क्यों मिले
पापी बैठे दरबारों में
जनमानष को पीड़ा का इनाम मिले
इस जगत जननी पर पहर – पहर
कितना सहती, रखती संयम
आवरण पर निश दिन पड़ता जहर
उसका पुरस्कार हमको पाना होगा
लेकर सीख आपदाओ से
अब तो दुनिया को संभल जाना होगा
पश्चाताप की उठानी होगी लहर
शायद कर सके हर्षित
जगपालक को, रोक सके जो वो कहर
बहुत उजड़े घरबार,शहर
कुछ तो करम करो ऐ ईश
अब न ढहाओ तुम कहर !!
अब न ढहाओ तुम कहर !!
- धर्मेन्द्र कुमार निवातियाँ
4. लाली है, हरियाली है
(Short Hindi Poem on Nature for Kids)
रूप बहारो वाली यह प्रकृति,
मुझको जग से प्यारी है।
बहती झील, नदिया,
मन को करती है मन मोहित।
सब कुछ न्योछावर करती,
ऐसे जैसे मां हो हमारी।
ठंडी पवन चला कर हमे सुलाती,
बेचैन होती है तो उग्र हो जाती।
कभी सुनामी, तो कभी भूकंप ले आती,
इस तरह अपनी नाराजगी जताती।
हरी-भरी छटा, ठंडी हवा और अमृत सा जल,
कर लो अब थोड़ा सा मन प्रकृति को बचाने का।
- नरेंद्र वर्मा
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5. प्रकृति से प्रेम करें
(Hindi Kavita on Nature Love)
भूमि मेरी माता है,
और पृथ्वी का मैं पुत्र हूं।
सब मेरे भाई-बहन है,
इनकी रक्षा ही मेरा पहला धर्म है।
खनन-हनन व पॉलीथिन को अब दूर करेंगे,
प्रकृति का अब हम ख्याल रखेंगे।
आओ सब मिलकर जीवन में उमंग भरे,
आओ आओ प्रकृति से प्रेम करें।
सब कुछ इसमें ही बसता,
इसके बिना सब कुछ मिट जाता।
6. वन, नदियां, पर्वत व सागर
(Hindi Poems on Environment)
अंग और गरिमा धरती की,
इनको हो नुकसान तो समझो,
क्षति हो रही है धरती की।
आए पेड़ ही धरती पर,
सुंदरता संग हवा साथ में,
लाए पेड़ ही धरती पर।
अभयारण्य धरती पर,
यह धरती के आभूषण है,
रहे हमेशा धरती पर।
बढ़े रुग्णता धरती की,
हरी भरी धरती हो सारी,
सेहत सुधरे धरती की।
मुक्त बनाएं धरती को,
जैव विविधता के संरक्षण की,
अलख जगाए धरती पर।
- रामगोपाल राही
7. कलयुग में अपराध का
(Poem about Nature in Hindi)
बढ़ा अब इतना प्रकोप
आज फिर से काँप उठी
देखो धरती माता की कोख !!
देती रही कोई न कोई चोट
लालच में इतना अँधा हुआ
मानव को नही रहा कोई खौफ !!
कभी महामारी का प्रकोप
यदा कदा धरती हिलती
फिर भूकम्प से मरते बे मौत !!
चढ़ गए भेट राजनितिक के लोभ
वन सम्पदा, नदी पहाड़, झरने
इनको मिटा रहा इंसान हर रोज !!
नहीं रहा प्रकृति का अब शौक
“धर्म” करे जब बाते जनमानस की
दुनिया वालो को लगता है जोक !!
बढ़ा अब इतना प्रकोप
आज फिर से काँप उठी
देखो धरती माता की कोख !!
- डी. के. निवातियाँ
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| प्रकृति का शांत और गंभीर रूप - जीवन चक्र और बदलाव का संदेश देती पत्तियां। |
8. हरे पेड़ पर चली कुल्हाड़ी
(Nature Poems in Hindi)
मूल्य समय का जाना हमने खो देने के बाद।।
पैसों के लालच में कर दी उर्वरता बर्बाद।।
बन्द हुआ अब तो जंगल से मानव का संवाद।।
पानी के कारण होते हैं हर दिन नए विवाद।।
कुदरत के दोहन ने सबके मन में भरा विषाद।।
- सुरेश चन्द्र
9. कहो, तुम रूपसि कौन?
(Famous Nature Poem by Sumitranandan Pant)
व्योम से उतर रही चुपचाप
छिपी निज छाया-छबि में आप,
सुनहला फैला केश-कलाप,
मधुर, मंथर, मृदु, मौन!
पलक में निमिष, पदों में चाप,
भाव-संकुल, बंकिम, भ्रू-चाप,
मौन, केवल तुम मौन!
नयन मुकुलित, नत मुख-जलजात,
देह छबि-छाया में दिन-रात,
कहाँ रहती तुम कौन?
मधुर नूपुर-ध्वनि खग-कुल-रोल,
सीप-से जलदों के पर खोल,
उड़ रही नभ में मौन!
मदिर अधरों की सुरा अमोल,–
बने पावस-घन स्वर्ण-हिंदोल,
कहो, एकाकिनि, कौन?
मधुर, मंथर तुम मौन?
- सुमित्रानंदन पंत
10. मधुरिमा के, मधु के अवतार
(Hindi Kavita on Nature by Mahadevi Verma)
सुधा से, सुषमा से, छविमान,
आंसुओं में सहमे अभिराम
तारकों से हे मूक अजान!
सीख कर मुस्काने की बान
कहां आऎ हो कोमल प्राण!
रूप से भर कर सारे अंग,
नये पल्लव का घूंघट डाल
अछूता ले अपना मकरंद,
ढूढं पाया कैसे यह देश?
स्वर्ग के हे मोहक संदेश!
अनोखा ले सौरभ का भार,
छ्लकता लेकर मधु का कोष
चले आऎ एकाकी पार;
कहो क्या आऎ हो पथ भूल?
मंजु छोटे मुस्काते फूल!
किलक पडता तेरा उन्माद,
देख तारों के बुझते प्राण
न जाने क्या आ जाता याद?
हेरती है सौरभ की हाट
कहो किस निर्मोही की बाट?
- महादेवी वर्मा
11. धरती माँ कर रही है पुकार
(Plantation Poem in Hindi)
पेङ लगाओ यहाँ भरमार ।।
वर्षा के होयेंगे तब अरमान ।
अन्न पैदा होगा भरमार ।।
किसान हल चलायेगा खेत में ।।
वृक्ष लगाओ वृक्ष बचाओ ।
हरियाली लाओ देश में ।।
सभी दस-दस वृक्ष खेत में रोप दो ।।
बारिस होगी फिर तेज ।
मरू प्रदेश का फिर बदलेगा वेश ।।
हरियाली राजस्थान मे दिखायेंगे ।।
दुनियां देख करेगी विचार ।
राजस्थान पानी से होगा रिचार्ज ।।
धरती माँ फसल खूब सिंचायेगी ।।
खाने को होगा अन्न ।
किसान हो जायेगा धन्य ।।
एक बार फिर कहता है मेरा मन ।
हम सब धरती माँ को पेङ लगाकर करते है टनाटन ।।
“जय धरती माँ”
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| 'पर्वत कहता शीश उठाकर' - प्रकृति की भव्यता और शांति का प्रतीक। |
12. बसंत मनमाना
(Nature Poem by Makhanlal Chaturvedi)
तुम कहाँ चले यात्री, पथ तो है बाएँ।
धूल पड़ गई है पत्तों पर डालों लटकी किरणें
छोटे-छोटे पौधों को चर रहे बाग में हिरणें,
किन्तु आँसुओं का होता है कितना पागल ज़ोर-
बढ़ आते हैं, चढ़ आते हैं, गड़े हुए हों जैसे
उनसे बातें कर पाता हूँ कि मैं कुछ जैसे-तैसे।
खेल रही है वायु शीश पर सारी दनिया झेल।
छोटे-छोटे खरगोशों से उठा-उठा सिर बादल
किसको पल-पल झांक रहे हैं आसमान के पागल?
खींच रहे हैं किसका मन ये दोनों चोरी-चोरी?
फैल गया है पर्वत-शिखरों तक बसन्त मनमाना,
पत्ती, कली, फूल, डालों में दीख रहा मस्ताना।
- माखनलाल चतुर्वेदी
13. ये वृक्षों में उगे परिन्दे
(Easy Poem on Nature in Hindi)
पंखुड़ि-पंखुड़ि पंख लिये
अग जग में अपनी सुगन्धित का
दूर-पास विस्तार किये।
फिर अनगिनती पाँखों से
जो न झाँक पाया संसृति-पथ
कोटि-कोटि निज आँखों से।
हरी मूठ कस डाली
कली-कली बेचैन हो गई
झाँक उठी क्या लाली!
नभ के हरे प्रवासी
सूर्य-किरण सहलाने दौड़ी
हवा हो गई दासी।
कहा-धन्य हो यात्री!
धन्य डाल नत गात्री।
पर होनी सुनती थी चुप-चुप
विधि -विधान का लेखा!
उसका ही था फूल
हरी थी, उसी भूमि की रेखा।
गिर गये इरादे भू पर
युद्ध समाप्त, प्रकृति के ये
गिर आये प्यादे भू पर।
मन पर हो, मधुवाही गन्ध
हरी-हरी ऊँचे उठने की
बढ़ती रहे सुगन्ध!
प्राप्ति रहेगी भू पर
ऊपर होगी कीर्ति-कलापिनि
मूर्त्ति रहेगी भू पर।।
- माखनलाल चतुर्वेदी
प्रकृति कविता संग्रह (Download PDF)
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Download Nature Poems PDFप्रकृति हमारी माता है और हम इसके रक्षक। आशा है कि ये Short & Heart Touching Nature Poems आपको और आपके बच्चों को पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रेरित करेंगी। चाहे रवींद्रनाथ टैगोर की रचनाएँ हों या हिंदी कवियों की पुकार, सबका उद्देश्य एक ही है - हरियाली बचाओ, जीवन बचाओ।
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Frequently Asked Questions (FAQ)
Class 6 के लिए प्रकृति पर सबसे छोटी कविता कौन सी है?
नरेंद्र वर्मा की 'लाली है, हरियाली है' कक्षा 6 के छात्रों के लिए याद करने में बहुत सरल और छोटी कविता है।
प्रकृति के सुकुमार कवि किसे कहा जाता है?
हिंदी साहित्य में सुमित्रानंदन पंत को प्रकृति का सुकुमार कवि कहा जाता है। उनकी कविता 'कहो, तुम रूपसि कौन?' प्रकृति सौंदर्य का अद्भुत उदाहरण है।
पर्यावरण दिवस पर कौन सी कविता सुनाएं?
पर्यावरण दिवस पर 'धरती माँ कर रही है पुकार, पेड़ लगाओ यहाँ भरमार' कविता सबसे उपयुक्त है क्योंकि यह वृक्षारोपण का सन्देश देती है।


