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Aaye Jis-Jis Ki Himmat Ho Poem | आए जिस-जिस की हिम्मत हो - वाजपेयी

आए जिस-जिस की हिम्मत हो

AAYE JIS-JIS KI HIMMAT HO

अटल बिहारी वाजपेयी जी की हिंदी कविता

अटल बिहारी वाजपेयी जी की देशभक्ति कविता

हिन्दु महोदधि की छाती में धधकी अपमानों की ज्वाला,
और आज आसेतु हिमाचल मूर्तिमान हृदयों की माला ।

सागर की उत्ताल तरंगों में जीवन का जी भर कृन्दन,
सोने की लंका की मिट्टी लख कर भरता आह प्रभंजन ।

आए जिस-जिस की हिम्मत हो - वाजपेयी

शून्य तटों से सिर टकरा कर पूछ रही सरयू की धारा,
सगरसुतों से भी बढ़कर क्या आज हुआ मृत भारत सारा ?

यमुना कहती कृष्ण कहाँ है, सरयू कहती राम कहाँ है?
व्यथित गण्डकी पूछ रही है, चन्द्रगुप्त बलधाम कहाँ है?

 

अर्जुन का गांडीव किधर है, कहाँ भीम की गदा सो गयी
किस कोने में पांचजन्य है, कहाँ भीष्म की शक्ति सो
खो गयी?

अगणित सीतायें अपहृत हैं, महावीर निज को पहचानो
अपमानित द्रुपदायें कितनी, समरधीर शर को सन्धानो ।

आए जिस-जिस की हिम्मत हो - वाजपेयी

अलक्षेन्द्र को धूलि चटाने वाले पौरुष फिर से जागो
क्षत्रियत्व विक्रम के जागो, चणकपुत्र के निश्चय जागो ।

कोटि कोटि पुत्रो की माता अब भी पीड़ित अपमानित है
जो जननी का दुःख न मिटायें उन पुत्रों पर भी लानत है ।

 


लानत उनकी भरी जवानी पर जो सुख की नींद सो रहे
लानत है हम कोटि कोटि हैं, किन्तु किसी के चरण धो रहे ।

अब तक जिस जग ने पग चूमे, आज उसी के सम्मुख नत क्यों
गौरवमणि खो कर भी मेरे सर्पराज आलस में रत क्यों?

आए जिस-जिस की हिम्मत हो - वाजपेयी

गत गौरव का स्वाभिमान ले वर्तमान की ओर निहारो
जो जूठा खा कर पनपे हैं, उनके सम्मुख कर न पसारो ।

पृथ्वी की संतान भिक्षु बन परदेसी का दान न लेगी
गोरों की संतति से पूछो क्या हमको पहचान न लेगी?

 

हम अपने को ही पहचाने आत्मशक्ति का निश्चय ठाने
पड़े हुए जूठे शिकार को सिंह नहीं जाते हैं खाने ।

एक हाथ में सृजन दूसरे में हम प्रलय लिए चलते हैं
सभी कीर्ति ज्वाला में जलते, हम अंधियारे में जलते हैं ।

आए जिस-जिस की हिम्मत हो - वाजपेयी

आँखों में वैभव के सपने पग में तूफानों की गति हो
राष्ट्र भक्ति का ज्वार न रुकता, आए जिस जिस की हिम्मत हो ।

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अटल बिहारी वाजपेयी

अटल बिहारी वाजपेयी जी की हिंदी कविता

अटल बिहारी वाजपेयी जी की देशभक्ति कविता

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