आन्हर जिनगी (अंधा जीवन) केवल एक कविता नहीं, बल्कि उस विवशता और जिजीविषा का दस्तावेज है जिसे बाबा नागार्जुन (वैद्यनाथ मिश्र 'यात्री') ने अपनी लेखनी से उकेरा है। जब हम आधुनिक मैथिली साहित्य की बात करते हैं, तो 'यात्री' जी का नाम जनवादी चेतना के शिखर पर आता है।
यह कविता 'युगसंधि' (दो युगों के मिलन) पर खड़े एक असमंजस भरे जीवन की कहानी है। क्या आपने कभी सोचा है कि जब आँखों के सामने अंधेरा हो, तो 'टोह' (सहंता) ही दुनिया कैसे बन जाती है? आज के इस लेख में हम पढ़ेंगे यात्री जी की कालजयी रचना "आन्हर जिनगी" और समझेंगे इसका गहरा दार्शनिक भाव।
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कवि परिचय: वैद्यनाथ मिश्र 'यात्री'
| पूरा नाम | वैद्यनाथ मिश्र |
| उपनाम | 'यात्री' (मैथिली में), 'नागार्जुन' (हिंदी में) |
| साहित्यिक धारा | प्रगतिवाद, यथार्थवाद, जनवादी |
| प्रसिद्ध कृतियाँ | पत्रहीन नग्न गाछ, चित्रा, पारो |
।। मूल कविता: आन्हर जिनगी ।।
आन्हर जिनगी
सेहंताक ठेंगासँ थाहए
बाट घाट, आँतर-पाँतरकें
खुट खुट खुट खुट....
आन्हर जिनगी
चकुआएल अछि
ठाढ़ भेल अछि
युगसन्धिक अइ चउबट्टी लग
सुनय विवेकक कान पाथिकें
अदगोइ-बदगोइ
आन्हर जिनगी
नांगड़ि आशाकेर कान्ह पर हाथ राखि का’
कोम्हर जाए छएँ ?
ओ गबइत छउ बटगवनी,
तों गुम्म किएक छएँ ?
त’हूँ ध’ ले कोनो भनिता !
आन्हर जिनगी
शान्ति सुन्दरी केर नरम आंगुरक स्पर्शसँ
बिहुँसि रहल अछि!
खंड सफलता केर सलच्छा सिहकी
ओकर गत्र-गत्रमे
टटका स्पंदन भरि देलकइए।
- यात्री (नागार्जुन)
जिस प्रकार विद्यापति की रचनाओं में भक्ति रस मिलता है (जैसे सुजन नयन मुनि), उसी प्रकार यात्री जी की कविताओं में जीवन का कठोर यथार्थ मिलता है। यह कविता भी उसी यथार्थवाद का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
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| आन्हर जिनगी: बाबा नागार्जुन (यात्री) की कालजयी मैथिली कविता | भावार्थ व विश्लेषण |
कविता का भावार्थ और विश्लेषण (Deep Analysis)
बाबा नागार्जुन की यह कविता प्रतीकों से भरी है। यहाँ 'आन्हर जिनगी' (अंधा जीवन) केवल दृष्टिहीनता नहीं है, बल्कि यह दिशाहीनता और असमंजस का प्रतीक है। आइये, इसका विस्तृत विश्लेषण करते हैं:
1. टोह और संघर्ष (सेहंताक ठेंगा)
कविता की शुरुआत में कवि कहते हैं कि अंधी जिंदगी 'सेहंताक ठेंगा' (अनुमान या टोह लेने वाली लाठी) के सहारे चल रही है। वह 'खुट-खुट' करती हुई रास्ता (बाट-घाट) टटोल रही है। यह पंक्तियाँ दर्शाती हैं कि जब जीवन में स्पष्ट दिशा न हो, तो मनुष्य अपने अनुभवों और अनुमानों के सहारे ही आगे बढ़ता है।
2. युगसंधि का असमंजस
दूसरे पद में, अंधी जिंदगी 'युगसन्धिक अइ चउबट्टी लग' (दो युगों के मिलन वाले चौराहे पर) खड़ी है। वह चकित है (चकुआएल अछि)। यह उस समय का चित्रण है जब पुराने मूल्य टूट रहे थे और नए मूल्य स्थापित नहीं हुए थे। ऐसे में मनुष्य अपने विवेक से दुनिया की 'अदगोइ-बदगोइ' (अफवाहें या बातें) सुनने का प्रयास कर रहा है।
3. आशा का सहारा
कवि पूछते हैं कि यह जिंदगी 'नांगड़ि आशा' (नग्न या निश्छल आशा) के कंधे पर हाथ रखकर कहाँ जा रही है? आशा 'बटगवनी' (राहगीरों के गीत) गा रही है, लेकिन जिंदगी चुप (गुम्म) है। कवि व्यंग्य और प्रेरणा देते हुए कहते हैं कि "तूँ भी कोई गीत (भनिता) क्यों नहीं गुनगुना लेती?" अर्थात, दुख में भी आशा का साथ नहीं छोड़ना चाहिए।
4. शांति और सफलता का स्पर्श
अंतिम पद में, 'शान्ति सुन्दरी' के स्पर्श से अंधी जिंदगी मुस्कुरा उठती है। 'खंड सफलता' (थोड़ी सी सफलता) की सिहरन उसके शरीर के रोम-रोम (गत्र-गत्र) में एक नया स्पंदन (टटका स्पंदन) भर देती है। यह बताता है कि संघर्ष के बीच शांति के कुछ पल और छोटी सफलताएं ही जीने का सहारा बनती हैं।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
Q1. 'आन्हर जिनगी' में 'सेहंताक ठेंगा' का क्या अर्थ है?
उत्तर: इसका अर्थ है 'टोह लेने वाली लाठी'। यह रूपक (metaphor) है उस अनुभव या अंतर्ज्ञान का, जिसके सहारे मनुष्य कठिन समय में बिना स्पष्ट दिशा के भी आगे बढ़ता है।
Q2. इस कविता में 'नांगड़ि आशा' किसे कहा गया है?
उत्तर: 'नांगड़ि आशा' निश्छल और बुनियादी उम्मीद का प्रतीक है। जब सब कुछ साथ छोड़ देता है, तब यही नग्न (यथार्थ) आशा मनुष्य को सहारा देती है।
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