सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

New !!

Auratein - औरतें By रमाशंकर यादव विद्रोही | Women Empowerment Poems

Hindi Poem For Nature - Poem In Hindi Nature | Nature Par Kavita

Hindi Poem For Nature | Poem In Hindi Nature | Nature Par Kavita


जन्म-भूमि


मेरी जन्म-भूमि,

मेरी प्यारी जन्म-भूमि !

Hindi Poem For Nature Hindi Poem On Nature Poem In Hindi Nature Poem In Hindi Of Nature


नीलम का आसमान है, सोने की धरा है,

चाँदी की हैं नदियाँ, पवन भी गीत भरा है,

मेरी जन्म-भूमि, मेरी प्यारी जन्म-भूमि !


ऊँचा है, सबसे ऊँचा जिसका भाल हिमाला,

पहले-पहल उतरा जहाँ अंबर से उजाला,

मेरी जन्म-भूमि, मेरी प्यारी जन्म-भूमि !


हर तरफ़ नवीन मौज, हर लहर नवीन,

चरण चूमते हैं रूप मुग्ध सिन्धु तीन,

मेरी जन्म-भूमि, मेरी प्यारी जन्म-भूमि !


इज़्ज़त प तेरी माता,

यह जान भी निसार !

सौ बार भी मरेंगे हम,

जन्में जहाँ इकबार !

 -

शैलेन्द्र

Hindi Poem For Nature Hindi Poem On Nature Poem In Hindi Nature Poem In Hindi Of Nature

 Hindi Poem For Nature

Hindi Poem On Nature

Poem In Hindi Nature

Poem In Hindi Of Nature

मेघ आए

मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।

मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।

आगे-आगे नाचती-गाती बयार चली,

दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगीं गली-गली,

पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के।

मेघ आए बड़े बन-ठन के संवर के।


पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाए,

आंधी चली, धूल भागी घाघरा उठाये,

बाँकी चितवन उठा, नदी ठिठकी, घूंघट सरके।

मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।


बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की,

बरस बाद सुधि लीन्हीं’ –

बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की,

हरसाया ताल लाया पानी परात भर के।

मेघ आए  बड़े बन-ठन के सँ वर के।


क्षितिज अटारी गहराई दामिनी दमकी,

क्षमा करो गाँठ खुल गई अब भरम की’,

बाँध टूटा झर-झर मिलन के अश्रु ढरके।

मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।

-

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना

मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।

 Hindi Poem For Nature

Hindi Poem On Nature

Poem In Hindi Nature

Poem In Hindi Of Nature

कदंब का पेड़

कदंब का पेड़


यह कदंब का पेड़ अगर माँ , होता यमुना तीरे ,

में भी उसपर बैठ कन्हैया बनता धीरे – धीरे।

ले देती यदि मुझे बांसुरी तुम दो पैसे वाली ,

किसी तरह नीची हो जाती यह कदंब की डाली।


तुम्हे नहीं कुछ कहता पर में चुपके – चुपके आता

उस नीची डाली से अम्मा ऊँचे पर चढ़ जाता।

वहीं बैठ फिर बड़े मजे से में बांसुरी बजाता

अम्मा – अम्मा कह वंशी के स्वर में तुम्हे बुलाता।


बहुत बुलाने पर भी माँ जब नहीं उतर कर आता

माँ , तब माँ का हृदय तुम्हारा बहुत विकल हो जाता।

तुम आँचल फैला का अम्मा वहीं पेड़ के निचे

ईश्वर  से कुछ विनती करतीं बैठी आँखे मींचे।


तुम्हे ध्यान में लगी देख में धीरे – धीरे आता

और तुम्हारे फैले आँचल के निचे छिप जाता।

तुम घबरा कर आँख खोलती , पर माँ खुश हो जाती

जब अपने मुन्ना राजा को गोदी में ही पाती।


इस तरह कुछ खेला करते हम तुम धीरे – धीरे

यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे। ।

-

सुभद्रा कुमारी चौहान

सुभद्रा कुमारी चौहान

 Hindi Poem For Nature

Hindi Poem On Nature

Poem In Hindi Nature

Poem In Hindi Of Nature

बसंती हवा 

हवा हूँ, हवा मैं  बसंती हवा हूँ।

हवा हूँ, हवा मैं

बसंती हवा हूँ।

सुनो बात मेरी-

अनोखी हवा हूँ।

बड़ी बावली  हूँ,

बड़ी मस्तमौला।

नहीं कुछ फिकर है,

बड़ी ही निडर हूँ।

जिधर चाहती हूँ,

उधर घूमती हूँ,

मुसाफिर अजब हूँ।


न घर-बार मेरा,

न उद्देश्य मेरा,

इच्छा किसी की,

न आशा किसी की,

न प्रेमी न दुश्मन,

जिधर चाहती हूँ

उधर घूमती हूँ।

हवा हूँ,हवा मैं 

बसंती हवा हूँ!


जहाँ से चली मैं 

जहाँ को गई मैं -

शहर, गाँव, बस्ती,

नदी, रेत, निर्जन,

हरे खेत, पोखर,

झुलाती चली मैं।

झुमाती चली मैं!

हवा हूँ, हवा मै

बसंती हवा हूँ।

हवा हूँ, हवा मैं  बसंती हवा हूँ।

चढ़ी पेड़ महुआ, 

थपाथप मचाया; 

गिरी धम्म से फिर,

चढ़ी आम ऊपर,

उसे भी झकोरा, 

किया कान में 'कू',

उतरकर भगी मैं,

हरे खेत पहुँची -

वहाँ, गेंहुँओं में  

लहर खूब मारी। 


पहर दो पहर क्या,

अनेकों पहर तक  

इसी में रही मैं!  

खड़ी देख अलसी 

लिए शीश कलसी,

मुझे खूब सूझी -

हिलाया-झुलाया  

गिरी पर न कलसी!


इसी हार को पा,

हिलाई न सरसों,

झुलाई न सरसों,

हवा हूँ, हवा मैं

बसंती हवा हूँ!


मुझे देखते ही

अरहरी लजाई,

मनाया-बनाया,

न मानी, न मानी;

उसे भी न छोड़ा -

पथिक आ रहा था,

उसी पर ढकेला;

हवा हूँ, हवा मैं  बसंती हवा हूँ।


हँसी ज़ोर से मैं,

हँसी सब दिशाएँ,

हँसे लहलहाते

हरे खेत सारे,

हँसी चमचमाती

भरी धूप प्यारी;


बसंती हवा में

हँसी सृष्टि सारी!

हवा हूँ, हवा मैं

बसंती हवा हूँ!

-

केदारनाथ अग्रवाल

हवा हूँ, हवा मैं  बसंती हवा हूँ।

 Hindi Poem For Nature

Hindi Poem On Nature

Poem In Hindi Nature

Poem In Hindi Of Nature

काली घटा छाई है

काली घटा छाई है

काली घटा छाई है

काली घटा छाई है

लेकर साथ अपने यह

ढेर सारी खुशियां लायी है

ठंडी ठंडी सी हव यह

बहती कहती चली आ रही है


काली घटा छाई है

कोई आज बरसों बाद खुश हुआ

तो कोई आज खुसी से पकवान बना रहा

बच्चों की टोली यह

कभी छत तो कभी गलियों में

किलकारियां सीटी लगा रहे


काली घटा छाई है

जो गिरी धरती पर पहली बूँद

देख इसको किसान मुस्कराया

संग जग भी झूम रहा

जब चली हवाएँ और तेज

आंधी का यह रूप ले रही

लगता ऐसा कोई क्रांति अब सुरु हो रही


छुपा जो झूट अमीरों का

कहीं गली में गढ़ा तो कहीं

बड़ी बड़ी इमारत यूँ ड़ह रही

अंकुर जो भूमि में सोये हुए थे

महसूस इस वातावरण को

वो भी अब फूटने लगे

देख बगीचे का माली यह

खुसी से झूम रहा

और कहता काली घटा छाई है

साथ अपने यह ढेर सारी खुशियां लायी है |

काली घटा छाई है

 Hindi Poem For Nature

Hindi Poem On Nature

Poem In Hindi Nature

Poem In Hindi Of Nature


आ गया वसंत...

Hindi Poem For Nature | Poem In Hindi Nature | Nature Par Kavita

है आ गया वसंत देखो,
कैसी बहार छायी है,
कैसे घूम रहे हैं भवरे,
फूलों पे खुशबू आयी है ।

कैसे प्रकृति में रंग भरा है,
कैसे पेड़ों पर हरियाली है,
कैसे बिखरा है चमक यहां पर,
कितनी सुंदर सूरज की लाली है ।

कैसे बच्चे खेल कूद में,
कैसे तितलियाँ मंडराती हैं,
कैसे सभी खुश दिख रहे,
कैसे हवा ये आती है।

सच है वसंत की अनुपम छटा,
एक जादू सी बिखेरे है,
मैं भी हिस्सा इस आनंद का,
ये सारे अनुभव मेरे हैं।


 Hindi Poem For Nature

Hindi Poem On Nature

Poem In Hindi Nature

Poem In Hindi Of Nature

Hindi Poem For Nature

Famous Poems

महाभारत पर रोंगटे खड़े कर देने वाली हिंदी कविता - Mahabharata Poem On Arjuna

|| महाभारत पर रोंगटे खड़े कर देने वाली कविता || || Mahabharata Poem On Arjuna ||   तलवार, धनुष और पैदल सैनिक कुरुक्षेत्र में खड़े हुए, रक्त पिपासु महारथी इक दूजे सम्मुख अड़े हुए | कई लाख सेना के सम्मुख पांडव पाँच बिचारे थे, एक तरफ थे योद्धा सब, एक तरफ समय के मारे थे | महा-समर की प्रतिक्षा में सारे ताक रहे थे जी, और पार्थ के रथ को केशव स्वयं हाँक रहे थे जी ||    रणभूमि के सभी नजारे देखन में कुछ खास लगे, माधव ने अर्जुन को देखा, अर्जुन उन्हें  उदास लगे | कुरुक्षेत्र का महासमर एक पल में तभी सजा डाला, पांचजन्य  उठा कृष्ण ने मुख से लगा बजा डाला | हुआ शंखनाद जैसे ही सब का गर्जन शुरु हुआ, रक्त बिखरना हुआ शुरु और सबका मर्दन शुरु हुआ | कहा कृष्ण ने उठ पार्थ और एक आँख को मीच जड़ा, गाण्डिव पर रख बाणों को प्रत्यंचा को खींच जड़ा | आज दिखा दे रणभूमि में योद्धा की तासीर यहाँ, इस धरती पर कोई नहीं, अर्जुन के जैसा वीर यहाँ ||    सुनी बात माधव की तो अर्जुन का चेहरा उतर गया, ...

सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है - Sach Hai Vipatti Jab Aati Hai

  सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है रामधारी सिंह "दिनकर" हिंदी कविता दिनकर की हिंदी कविता Sach Hai Vipatti Jab Aati Hai सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है, शूरमा नहीं विचलित होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते, विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं। मुख से न कभी उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं, जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग-निरत नित रहते हैं, शूलों का मूल नसाने को, बढ़ खुद विपत्ति पर छाने को। है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके वीर नर के मग में ? खम ठोंक ठेलता है जब नर , पर्वत के जाते पाँव उखड़। मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है । Sach Hai Vipatti Jab Aati Hai गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर, मेंहदी में जैसे लाली हो, वर्तिका-बीच उजियाली हो। बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है। पीसा जाता जब इक्षु-दण्ड , झरती रस की धारा अखण्ड , मेंहदी जब सहती है प्रहार, बनती ललनाओं का सिंगार। जब फूल पिरोये जाते हैं, हम उनको गले लगाते हैं। वसुधा का नेता कौन हुआ? भूखण्ड-विजेता कौन हुआ ? अतुलित यश क्रेता कौन हुआ? नव-धर्म प्...

सादगी तो हमारी जरा देखिये | Saadgi To Hamari Zara Dekhiye Lyrics | Nusrat Fateh Ali Khan Sahab

Saadgi To Hamari Zara Dekhiye Lyrics सादगी तो हमारी जरा देखिये   सादगी तो हमारी जरा देखिये,  एतबार आपके वादे पे कर लिया | मस्ती में इक हसीं को ख़ुदा कह गए हैं हम,  जो कुछ भी कह गए वज़ा कह गए हैं हम  || बारस्तगी तो देखो हमारे खुलूश कि,  किस सादगी से तुमको ख़ुदा कह गए हैं हम || किस शौक किस तमन्ना किस दर्ज़ा सादगी से,  हम करते हैं आपकी शिकायत आपही से || तेरे अताब के रूदाद हो गए हैं हम,  बड़े खलूस से बर्बाद हो गए हैं हम ||

Kahani Karn Ki Poem Lyrics By Abhi Munde (Psycho Shayar) | कहानी कर्ण की - Karna Par Hindi Kavita

Kahani Karn Ki Poem Lyrics By Psycho Shayar   कहानी कर्ण की - Karna Par Hindi Kavita पांडवों  को तुम रखो, मैं  कौरवों की भी ड़ से , तिलक-शिकस्त के बीच में जो टूटे ना वो रीड़ मैं | सूरज का अंश हो के फिर भी हूँ अछूत मैं , आर्यवर्त को जीत ले ऐसा हूँ सूत पूत मैं |   कुंती पुत्र हूँ, मगर न हूँ उसी को प्रिय मैं, इंद्र मांगे भीख जिससे ऐसा हूँ क्षत्रिय मैं ||   कुंती पुत्र हूँ, मगर न हूँ उसी को प्रिय मैं, इंद्र मांगे भीख जिससे ऐसा हूँ क्षत्रिय मैं ||   आओ मैं बताऊँ महाभारत के सारे पात्र ये, भोले की सारी लीला थी किशन के हाथ सूत्र थे | बलशाली बताया जिसे सारे राजपुत्र थे, काबिल दिखाया बस लोगों को ऊँची गोत्र के ||   सोने को पिघलाकर डाला शोन तेरे कंठ में , नीची जाती हो के किया वेद का पठंतु ने | यही था गुनाह तेरा, तू सारथी का अंश था, तो क्यों छिपे मेरे पीछे, मैं भी उसी का वंश था ?   यही था गुनाह तेरा, तू सारथी का अंश था, तो क्यों छिपे मेरे पीछे, मैं भी उसी का वंश था ? ऊँच-नीच की ये जड़ वो अहंकारी द्रोण था, वीरों की उसकी सूची में, अर्...

Aadmi Chutiya Hai Song Lyrics - फूलों की लाशों में ताजगी चाहता है, आदमी चूतिया है | Rahgir Song Lyrics

Aadmi Chutiya Hai Song Lyrics फूलों की लाशों में ताजगी चाहता है, आदमी चूतिया है फूलों की लाशों में ताजगी चाहता है फूलों की लाशों में ताजगी ताजगी चाहता है आदमी चूतिया है, कुछ भी चाहता है फूलों की लाशों में ज़िंदा है तो आसमान में उड़ने की ज़िद है ज़िंदा है तो आसमान में उड़ने की ज़िद है मर जाए तो मर जाए तो सड़ने को ज़मीं चाहता है आदमी चूतिया है काट के सारे झाड़-वाड़, मकाँ मकाँ बना लिया खेत में सीमेंट बिछा कर ज़मीं सजा दी, मार के कीड़े रेत में काट के सारे झाड़-वाड़, मकाँ बना लिया खेत में सीमेंट बिछा कर ज़मीं सजा दी, मार के कीड़े रेत में लगा के परदे चारों ओर क़ैद है चार दीवारी में मिट्टी को छूने नहीं देता, मस्त है किसी खुमारी में मस्त है किसी खुमारी में और वो ही बंदा अपने घर के आगे आगे नदी चाहता है आदमी चूतिया है टाँग के बस्ता, उठा के तंबू जाए दूर पहाड़ों में वहाँ भी डीजे, दारू, मस्ती, चाहे शहर उजाड़ों में टाँग के बस्ता, उठा के तंबू जाए दूर पहाड़ों में वहाँ भी डीजे, दारू, मस्ती, चाहे शहर उजाड़ों में फ़िर शहर बुलाए उसको तो जाता है छोड़ तबाही पीछे कुदरत को कर दाग़दार सा, छोड़ के अपनी स्याही पीछे छोड़ के अपनी स्याही ...