ये जहाँ ख़ुदा का
ये जहाँ ख़ुदा का
कितना नायाब है
न जानो तो उलझन
और जानो तो ख़्वाब है
कितने गुल, कितने
अब्र-ए-बहार हैं
कुछ को है दर्द
कुछ को हक़-ए-इंतिख़ाब है |
देखा यहाँ तो
ग़म बेशुमार है
हद है खुशी की
दौलत-ए-खुमार है
आरज़ू हैं सबकी
दुआएँ हज़ार हैं
कुछ को जलन है
और कुछ को प्यार है |
मुन्तज़िर हैं कईं
कई ख़ुद में इज़्तिरार हैं
की है उन्होंने मेहनत पर
थोड़े बेकरार हैं
शिद्दत से चाहा था
उन्होंने मंज़िल को
अपनी मशक्कत पे
उन्हें पूरा ऐतबार है |
इंसाफ़-ए-ख़ुदा
जहाँ में क्या खूब है
है छाँव यहाँ
तो वहाँ पर धूप है
रंगीन फूलों का
है गुलदस्ता बनाया
इंसाफ़-ए-ख़ुदा
जहाँ में क्या खूब है |
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हर्ष नाथ झा