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आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक - aah ko chāhiye ik umr asar hote tak | Mirza Ghalib Ghazal


आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक - Aah ko chāhiye ik umr asar hote tak

Mirza Ghalib Ghazal

आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक 

कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक 


दाम-ए-हर-मौज में है हल्क़ा-ए-सद-काम-ए-नहंग 

देखें क्या गुज़रे है क़तरे पे गुहर होते तक 


आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब 

दिल का क्या रंग करूँ ख़ून-ए-जिगर होते तक 


ता-क़यामत शब-ए-फ़ुर्क़त में गुज़र जाएगी उम्र 

सात दिन हम पे भी भारी हैं सहर होते तक 


हम ने माना कि तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन 

ख़ाक हो जाएँगे हम तुम को ख़बर होते तक 


परतव-ए-ख़ुर से है शबनम को फ़ना की ता'लीम 

मैं भी हूँ एक इनायत की नज़र होते तक 


यक नज़र बेश नहीं फ़ुर्सत-ए-हस्ती ग़ाफ़िल 

गर्मी-ए-बज़्म है इक रक़्स-ए-शरर होते तक 


ग़म-ए-हस्ती का 'असद' किस से हो जुज़ मर्ग इलाज 

शम्अ हर रंग में जलती है सहर होते तक 


aah ko chāhiye ik umr asar hote tak 

kaun jiitā hai tirī zulf ke sar hote tak 


dām-e-har-mauj meñ hai halqa-e-sad-kām-e-nahañg 

dekheñ kyā guzre hai qatre pe guhar hote tak 


āshiqī sabr-talab aur tamannā betāb 

dil kā kyā rañg karūñ ḳhūn-e-jigar hote tak 


tā-qayāmat shab-e-furqat meñ guzar jā.egī umr 

saat din ham pe bhī bhārī haiñ sahar hote tak 


ham ne maanā ki taġhāful na karoge lekin 

ḳhaak ho jā.eñge ham tum ko ḳhabar hote tak 


partav-e-ḳhur se hai shabnam ko fanā kī ta.alīm 

maiñ bhī huuñ ek ināyat kī nazar hote tak 


yak nazar besh nahīñ fursat-e-hastī ġhāfil 

garmī-e-bazm hai ik raqs-e-sharar hote tak 


ġham-e-hastī kā 'asad' kis se ho juz marg ilaaj 

sham.a har rañg meñ jaltī hai Sahar hote tak

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मिर्ज़ा ग़ालिब

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