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बे-सबब मुस्कुरा रहा है चाँद - Besabab Muskura Raha Hai Chand | Gulzar Sahab Shayari

बे-सबब मुस्कुरा रहा है चाँद - Besabab Muskura Raha Hai Chand

 Gulzar Sahab Shayari

बे-सबब मुस्कुरा रहा है चाँद

कोई साज़िश छुपा रहा है चाँद 

बे-सबब मुस्कुरा रहा है चाँद - Besabab Muskura Raha Hai Chand  Gulzar Sahab Shayari

जाने किस की गली से निकला है 

झेंपा झेंपा सा आ रहा है चाँद 


कितना ग़ाज़ा लगाया है मुँह पर 

धूल ही धूल उड़ा रहा है चाँद 


कैसा बैठा है छुप के पत्तों में 

बाग़बाँ को सता रहा है चाँद 


सीधा-सादा उफ़ुक़ से निकला था 

सर पे अब चढ़ता जा रहा है चाँद 


छू के देखा तो गर्म था माथा 

धूप में खेलता रहा है चाँद |

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गुलज़ार

बे-सबब मुस्कुरा रहा है चाँद - Besabab Muskura Raha Hai Chand | Gulzar Sahab Shayari

बे-सबब मुस्कुरा रहा है चाँद - Besabab Muskura Raha Hai Chand

Gulzar Sahab Shayari

be-sabab muskurā rahā hai chāñd 

koī sāzish chhupā rahā hai chāñd 


jaane kis kī galī se niklā hai 

jheñpā jheñpā sā aa rahā hai chāñd 


kitnā ġhāza lagāyā hai muñh par 

dhuul hī dhuul uḌā rahā hai chāñd 


kaisā baiThā hai chhup ke pattoñ meñ 

bāġhbāñ ko satā rahā hai chāñd 


sīdhā-sāda ufuq se niklā thā 

sar pe ab chaḌhtā jā rahā hai chāñd 

बे-सबब मुस्कुरा रहा है चाँद - Besabab Muskura Raha Hai Chand  Gulzar Sahab Shayari

chhū ke dekhā to garm thā māthā 

dhuup meñ kheltā rahā hai chāñd 

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