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शाम से आँख में नमी सी है - Shaam Se Aankh Mein Nami-Si Hai | Gulzar Sahab Ghazal

शाम से आँख में नमी सी है  - Shaam Se Aankh Mein Nami-Si Hai

Gulzar Sahab Ghazal

शाम से आँख में नमी सी है 

आज फिर आप की कमी सी है 

शाम से आँख में नमी सी है  - Shaam Se Aankh Mein Nami-Si Hai  Gulzar Sahab Ghazal

दफ़्न कर दो हमें कि साँस आए 

नब्ज़ कुछ देर से थमी सी है 


कौन पथरा गया है आँखों में 

बर्फ़ पलकों पे क्यूँ जमी सी है 


वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर 

आदत इस की भी आदमी सी है 


आइए रास्ते अलग कर लें 

ये ज़रूरत भी बाहमी सी है 

-

गुलज़ार

शाम से आँख में नमी सी है  - Shaam Se Aankh Mein Nami-Si Hai | Gulzar Sahab Ghazal


Gulzar Sahab Ghazal

shaam se aañkh meñ namī sī hai 

aaj phir aap kī kamī sī hai 


dafn kar do hameñ ki saañs aa.e 

nabz kuchh der se thamī sī hai 

शाम से आँख में नमी सी है  - Shaam Se Aankh Mein Nami-Si Hai  Gulzar Sahab Ghazal

kaun pathrā gayā hai āñkhoñ meñ 

barf palkoñ pe kyuuñ jamī sī hai 


vaqt rahtā nahīñ kahīñ Tik kar 

aadat is kī bhī aadmī sī hai 


aa.iye rāste alag kar leñ 

ye zarūrat bhī bāhamī sī hai 

Gulzar Sahab Ghazal

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Aadmi Chutiya Hai Song Lyrics - फूलों की लाशों में ताजगी चाहता है, आदमी चूतिया है | Rahgir Song Lyrics

Aadmi Chutiya Hai Song Lyrics फूलों की लाशों में ताजगी चाहता है, आदमी चूतिया है फूलों की लाशों में ताजगी चाहता है फूलों की लाशों में ताजगी ताजगी चाहता है आदमी चूतिया है, कुछ भी चाहता है फूलों की लाशों में ज़िंदा है तो आसमान में उड़ने की ज़िद है ज़िंदा है तो आसमान में उड़ने की ज़िद है मर जाए तो मर जाए तो सड़ने को ज़मीं चाहता है आदमी चूतिया है काट के सारे झाड़-वाड़, मकाँ मकाँ बना लिया खेत में सीमेंट बिछा कर ज़मीं सजा दी, मार के कीड़े रेत में काट के सारे झाड़-वाड़, मकाँ बना लिया खेत में सीमेंट बिछा कर ज़मीं सजा दी, मार के कीड़े रेत में लगा के परदे चारों ओर क़ैद है चार दीवारी में मिट्टी को छूने नहीं देता, मस्त है किसी खुमारी में मस्त है किसी खुमारी में और वो ही बंदा अपने घर के आगे आगे नदी चाहता है आदमी चूतिया है टाँग के बस्ता, उठा के तंबू जाए दूर पहाड़ों में वहाँ भी डीजे, दारू, मस्ती, चाहे शहर उजाड़ों में टाँग के बस्ता, उठा के तंबू जाए दूर पहाड़ों में वहाँ भी डीजे, दारू, मस्ती, चाहे शहर उजाड़ों में फ़िर शहर बुलाए उसको तो जाता है छोड़ तबाही पीछे कुदरत को कर दाग़दार सा, छोड़ के अपनी स्याही पीछे छोड़ के अपनी स्याही ...

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