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मातृभाषा का महोत्सव - Matribhasha Ka Mahatva | Hindi Diwas Par Kavita

हवा हूँ, हवा मैं बसंती हवा हूँ - Nature Hindi Poem | Hawa Hun Hawa Mai

  हवा  हूँ, हवा मैं,  बसंती हवा हूँ। HAWA HUN HAWA MAI BASANTI HAWA HUN हवा  हूँ, हवा मैं बसंती हवा हूँ। सुनो बात मेरी- अनोखी हवा हूँ। बड़ी बावली  हूँ, बड़ी मस्तमौला। नहीं कुछ फिकर है, बड़ी ही  निडर  हूँ। जिधर चाहती हूँ, उधर घूमती हूँ, मुसाफिर अजब हूँ। न घर-बार मेरा, न उद्देश्य मेरा, न  इच्छा  किसी की, न आशा किसी की, न प्रेमी न दुश्मन, जिधर चाहती हूँ उधर  घूमती  हूँ। हवा हूँ,हवा मैं  बसंती हवा हूँ! जहाँ से चली मैं  जहाँ को गई मैं - शहर, गाँव, बस्ती, नदी, रेत, निर्जन, हरे खेत, पोखर, झुलाती चली मैं। झुमाती चली मैं! हवा हूँ, हवा मै बसंती हवा हूँ। चढ़ी पेड़ महुआ,  थपाथप  मचाया;  गिरी धम्म से फिर, चढ़ी आम ऊपर, उसे भी झकोरा,  किया कान में  'कू' , उतरकर भगी मैं, हरे खेत पहुँची - वहाँ, गेंहुँओं में   लहर खूब मारी।  पहर दो पहर क्या, अनेकों पहर तक   इसी में  रही  मैं!   खड़ी देख अलसी  लिए शीश कलसी, मुझे खूब सूझी - हिलाया-झुलाया   गिरी पर न  कलसी ! इसी...

कदंब का पेड़ - Nature Poems In Hindi | सुभद्रा कुमारी चौहान | Kadamb Ka Ped

  कदंब का पेड़ - Nature Poems In Hindi | सुभद्रा कुमारी चौहान | Kadamb Ka Ped Kadamb Ka Ped Hindi Kavita यह कदंब का पेड़ अगर माँ यह कदंब का पेड़ अगर माँ , होता यमुना तीरे , में भी उसपर बैठ  कन्हैया  बनता धीरे – धीरे। ले देती यदि मुझे बांसुरी तुम दो पैसे वाली , किसी तरह नीची हो जाती यह कदंब की डाली। तुम्हे नहीं कुछ कहता पर में चुपके – चुपके आता उस नीची डाली से अम्मा ऊँचे पर चढ़ जाता। वहीं बैठ फिर बड़े मजे से में बांसुरी बजाता अम्मा – अम्मा कह  वंशी  के स्वर में तुम्हे बुलाता। बहुत बुलाने पर भी माँ जब नहीं उतर कर आता माँ , तब माँ का  हृदय  तुम्हारा बहुत विकल हो जाता। तुम आँचल फैला का अम्मा वहीं पेड़ के निचे ईश्वर  से कुछ विनती करतीं बैठी आँखे मींचे। तुम्हे ध्यान में लगी देख में धीरे – धीरे आता और तुम्हारे फैले आँचल के निचे छिप जाता। तुम घबरा कर आँख खोलती , पर माँ खुश हो जाती जब अपने मुन्ना राजा को  गोदी  में ही पाती। इस तरह कुछ खेला करते हम तुम धीरे – धीरे यह  कदंब का पेड़  अगर माँ होता यमुना तीरे। । - सुभद्रा  कुमारी चौहान  H...

मेघ आए बड़े बन-ठन के - Poem In Hindi Nature | Megh Aaye Bade Ban Than Ke

मेघ आए  बड़े बन-ठन के  Hindi Poem For Nature Hindi Poem On Nature Poem I n Hindi Nature Poem In Hindi Of Nature   Megh Aaye Bade Ban Than Ke   मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के। आगे-आगे नाचती-गाती बयार चली, दरवाजे-खिड़कियाँ  खुलने लगीं गली-गली, पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के। मेघ आए बड़े बन-ठन के संवर के। पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाए, आंधी  चली, धूल भागी घाघरा उठाये, बाँकी चितवन उठा, नदी ठिठकी, घूंघट सरके। मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के। बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की, ‘ बरस बाद सुधि लीन्हीं ’ – बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की, हरसाया ताल लाया पानी परात भर के। मेघ आए  बड़े बन-ठन के सँ वर के। क्षितिज अटारी गहराई दामिनी दमकी, ‘ क्षमा करो गाँठ खुल गई अब भरम की ’, बाँध टूटा झर-झर मिलन के अश्रु ढरके। मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के। - सर्वेश्वर  दयाल सक्सेना  Hindi Poem For Nature Hindi Poem On Nature Poem I n Hindi Nature Poem In Hindi Of Nature

Hindi Poem For Nature | Poem In Hindi Nature | Nature Par Kavita

  Hindi Poem For Nature | Poem In Hindi Nature | Nature Par Kavita जन्म-भूमि मेरी जन्म-भूमि, मेरी प्यारी जन्म-भूमि ! Hindi Poem For Nature | Poem In Hindi Nature | Nature Par  Kavita नीलम का आसमान है, सोने की धरा है, चाँदी की हैं  नदियाँ , पवन भी गीत भरा है, मेरी जन्म-भूमि, मेरी प्यारी जन्म-भूमि ! ऊँचा है, सबसे ऊँचा जिसका भाल हिमाला, पहले-पहल उतरा जहाँ अंबर से  उजाला , मेरी जन्म-भूमि, मेरी प्यारी जन्म-भूमि ! हर तरफ़ नवीन मौज, हर लहर नवीन, चरण चूमते हैं रूप  मुग्ध  सिन्धु तीन, मेरी जन्म-भूमि, मेरी प्यारी जन्म-भूमि ! इज़्ज़त  प तेरी माता, यह जान भी निसार ! सौ बार भी मरेंगे हम, जन्में जहाँ इकबार !  - शैलेन्द्र  Hindi Poem For Nature Hindi Poem On Nature Poem I n Hindi Nature Poem In Hindi Of Nature

Hindi Poem For Nature - Poem In Hindi Nature | Nature Par Kavita

Hindi Poem For Nature | Poem In Hindi Nature | Nature Par Kavita जन्म-भूमि मेरी जन्म-भूमि, मेरी प्यारी जन्म-भूमि ! नीलम का आसमान है, सोने की धरा है, चाँदी की हैं नदियाँ , पवन भी गीत भरा है, मेरी जन्म-भूमि, मेरी प्यारी जन्म-भूमि ! ऊँचा है, सबसे ऊँचा जिसका भाल हिमाला, पहले-पहल उतरा जहाँ अंबर से उजाला , मेरी जन्म-भूमि, मेरी प्यारी जन्म-भूमि ! हर तरफ़ नवीन मौज, हर लहर नवीन, चरण चूमते हैं रूप मुग्ध सिन्धु तीन, मेरी जन्म-भूमि, मेरी प्यारी जन्म-भूमि ! इज़्ज़त प तेरी माता, यह जान भी निसार ! सौ बार भी मरेंगे हम, जन्में जहाँ इकबार !  - शैलेन्द्र  Hindi Poem For Nature Hindi Poem On Nature Poem I n Hindi Nature Poem In Hindi Of Nature

Famous Poems

सादगी तो हमारी जरा देखिये | Saadgi To Hamari Zara Dekhiye Lyrics | Nusrat Fateh Ali Khan Sahab

Saadgi To Hamari Zara Dekhiye Lyrics सादगी तो हमारी जरा देखिये   सादगी तो हमारी जरा देखिये,  एतबार आपके वादे पे कर लिया | मस्ती में इक हसीं को ख़ुदा कह गए हैं हम,  जो कुछ भी कह गए वज़ा कह गए हैं हम  || बारस्तगी तो देखो हमारे खुलूश कि,  किस सादगी से तुमको ख़ुदा कह गए हैं हम || किस शौक किस तमन्ना किस दर्ज़ा सादगी से,  हम करते हैं आपकी शिकायत आपही से || तेरे अताब के रूदाद हो गए हैं हम,  बड़े खलूस से बर्बाद हो गए हैं हम ||

महाभारत पर रोंगटे खड़े कर देने वाली हिंदी कविता - Mahabharata Poem On Arjuna

|| महाभारत पर रोंगटे खड़े कर देने वाली कविता || || Mahabharata Poem On Arjuna ||   तलवार, धनुष और पैदल सैनिक कुरुक्षेत्र में खड़े हुए, रक्त पिपासु महारथी इक दूजे सम्मुख अड़े हुए | कई लाख सेना के सम्मुख पांडव पाँच बिचारे थे, एक तरफ थे योद्धा सब, एक तरफ समय के मारे थे | महा-समर की प्रतिक्षा में सारे ताक रहे थे जी, और पार्थ के रथ को केशव स्वयं हाँक रहे थे जी ||    रणभूमि के सभी नजारे देखन में कुछ खास लगे, माधव ने अर्जुन को देखा, अर्जुन उन्हें  उदास लगे | कुरुक्षेत्र का महासमर एक पल में तभी सजा डाला, पांचजन्य  उठा कृष्ण ने मुख से लगा बजा डाला | हुआ शंखनाद जैसे ही सब का गर्जन शुरु हुआ, रक्त बिखरना हुआ शुरु और सबका मर्दन शुरु हुआ | कहा कृष्ण ने उठ पार्थ और एक आँख को मीच जड़ा, गाण्डिव पर रख बाणों को प्रत्यंचा को खींच जड़ा | आज दिखा दे रणभूमि में योद्धा की तासीर यहाँ, इस धरती पर कोई नहीं, अर्जुन के जैसा वीर यहाँ ||    सुनी बात माधव की तो अर्जुन का चेहरा उतर गया, ...

सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है - Sach Hai Vipatti Jab Aati Hai

  सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है रामधारी सिंह "दिनकर" हिंदी कविता दिनकर की हिंदी कविता Sach Hai Vipatti Jab Aati Hai सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है, शूरमा नहीं विचलित होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते, विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं। मुख से न कभी उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं, जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग-निरत नित रहते हैं, शूलों का मूल नसाने को, बढ़ खुद विपत्ति पर छाने को। है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके वीर नर के मग में ? खम ठोंक ठेलता है जब नर , पर्वत के जाते पाँव उखड़। मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है । Sach Hai Vipatti Jab Aati Hai गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर, मेंहदी में जैसे लाली हो, वर्तिका-बीच उजियाली हो। बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है। पीसा जाता जब इक्षु-दण्ड , झरती रस की धारा अखण्ड , मेंहदी जब सहती है प्रहार, बनती ललनाओं का सिंगार। जब फूल पिरोये जाते हैं, हम उनको गले लगाते हैं। वसुधा का नेता कौन हुआ? भूखण्ड-विजेता कौन हुआ ? अतुलित यश क्रेता कौन हुआ? नव-धर्म प्...

Kahani Karn Ki Poem Lyrics By Abhi Munde (Psycho Shayar) | कहानी कर्ण की - Karna Par Hindi Kavita

Kahani Karn Ki Poem Lyrics By Psycho Shayar   कहानी कर्ण की - Karna Par Hindi Kavita पांडवों  को तुम रखो, मैं  कौरवों की भी ड़ से , तिलक-शिकस्त के बीच में जो टूटे ना वो रीड़ मैं | सूरज का अंश हो के फिर भी हूँ अछूत मैं , आर्यवर्त को जीत ले ऐसा हूँ सूत पूत मैं |   कुंती पुत्र हूँ, मगर न हूँ उसी को प्रिय मैं, इंद्र मांगे भीख जिससे ऐसा हूँ क्षत्रिय मैं ||   कुंती पुत्र हूँ, मगर न हूँ उसी को प्रिय मैं, इंद्र मांगे भीख जिससे ऐसा हूँ क्षत्रिय मैं ||   आओ मैं बताऊँ महाभारत के सारे पात्र ये, भोले की सारी लीला थी किशन के हाथ सूत्र थे | बलशाली बताया जिसे सारे राजपुत्र थे, काबिल दिखाया बस लोगों को ऊँची गोत्र के ||   सोने को पिघलाकर डाला शोन तेरे कंठ में , नीची जाती हो के किया वेद का पठंतु ने | यही था गुनाह तेरा, तू सारथी का अंश था, तो क्यों छिपे मेरे पीछे, मैं भी उसी का वंश था ?   यही था गुनाह तेरा, तू सारथी का अंश था, तो क्यों छिपे मेरे पीछे, मैं भी उसी का वंश था ? ऊँच-नीच की ये जड़ वो अहंकारी द्रोण था, वीरों की उसकी सूची में, अर्...

Dar Pe Sudama Garib Aa Gaya Hai Lyrics | दर पे सुदामा गरीब आ गया है

Dar Pe Sudama Garib Aa Gaya Hai Lyrics दर पे सुदामा गरीब आ गया है  लिरिक्स देखो देखो ये गरीबी, ये गरीबी का हाल । कृष्ण के दर पे, विश्वास लेके आया हूँ ।। मेरे बचपन का यार है, मेरा श्याम । यही सोच कर मैं, आस कर के आया हूँ ।। अरे द्वारपालों, कन्हैया से कह दो । अरे द्वारपालों, कन्हैया से कह दो ।। के दर पे सुदामा, गरीब आ गया है । के दर पे सुदामा, गरीब आ गया है ।। भटकते भटकते, ना जाने कहां से । भटकते भटकते, ना जाने कहां से ।। तुम्हारे महल के, करीब आ गया है । तुम्हारे महल के, करीब आ गया है ।। ना सर पे है पगड़ी, ना तन पे हैं जामा । बता दो कन्हैया को, नाम है सुदामा ।। Dar Pe Sudama Garib Aa Gaya Hai Lyrics दर पे सुदामा गरीब आ गया है  लिरिक्स बता दो कन्हैया को, नाम है सुदामा । बता दो कन्हैया को, नाम है सुदामा ।। ना सर पे है पगड़ी, ना तन पे हैं जामा । बता दो कन्हैया को, नाम है सुदामा ।। हो..ना सर पे है पगड़ी, ना तन पे हैं जामा । बता दो कन्हैया को, नाम है सुदामा ।। बता दो कन्हैया को । नाम है सुदामा ।। इक बार मोहन, से जाकर के कह दो । तुम इक बार मोहन, से जाकर के कह दो ।। के मिलने सखा, बदनसीब आ...