मातृभाषा का महोत्सव — Matribhasha Ka Mahatva
Hindi Diwas Par Kavita | हिंदी दिवस पर प्रेरक और भावपूर्ण कविता जो हमारी मातृभाषा, संस्कृति और पहचान को नमन करती है।
हिंदी दिवस केवल एक तारीख नहीं — यह हमारी मातृभाषा, विरासत और सांस्कृतिक पहचान का उत्सव है। इस कविता “मातृभाषा का महोत्सव” में हमने हिंदी के साहित्यिक वैभव, उसकी ऐतिहासिक जड़ें और आधुनिक युग में उसका सशक्त स्थान उजागर करने का प्रयत्न किया है।
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हिंदी है दिल की जुबां, हिंदी है जन-गान।
भारत माँ की वाणी है, इसका ऊँचा मान।।
माटी की खुशबू लिए, बोले हर इंसान।
गंगा–जमुनी संस्कृति की, हिंदी पहचान।।
तुलसी की चौपाइयों में, सूर की रसधार।
कबिरा के दोहों में बसी, जीवन की पुकार।।
मीरा के पद झंकारित हों, भक्तिरस का गीत।
भारतेंदु का जागरण हो, हिंदी का संगीत।।
प्रेमचंद की कहानियों ने, जग में दिया प्रकाश।
साहित्य के हर पृष्ठ पे, हिंदी का इतिहास।।
महादेवी के भावों में, कोमलता का गीत।
दिनकर की गर्जना में है, ओजस्वी संगीत।।
आओ मिलकर हिंदी को अब, दें हम ऊँचा मान।
विश्व-पटल पर गूंज उठे फिर, हिंदी का जयगान।।
लेखक: अभिषेक मिश्रा (बलिया)
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