NATURE POEMS IN HINDI
NATURE PAR HINDI KAVITAYEN
तुम कब तक टिक सकोगे ?
खेल कुदरत के साथ है,
तुम कितनी देर टिक सकोगे?
यह हलाहल तुल्य विष है,
तुम कब तक पी सकोगे?
चुनौती तुमने दी है माँ को,
पैर पर खड़े रह सकोगे?
इस खुद्दारी की राह पर,
तुम कब तक टिक सकोगे?
माफ़ी धर्म है हमारी,
माँ माफ़ी दे सकेगी,
पर बार-बार इस श्राप को,
कितने बरस सह सकेगी?
NATURE POEMS IN HINDI
NATURE PAR HINDI KAVITAYEN
एक विषाणु ने आज,
लाखों मनुष्यों को मार दिया,
अगर दो-चार और आ गए ,
तुम कितनी देर टिक सकोगे ?
यह झलक है, पूरी पुस्तक नहीं?
राह फिर से चुन सकोगे,
यह भगवान है, माँ का आंचल नहीं,
तुम कब तक टिक सकोगे?
अभी माफ़ी मांग लो,
तुम अपनी ही माँ से लड़ोगे ?
इस कुदरत के खेल में,
तुम अब तक टिक सकोगे?