राजनीती पर बाबा नागार्जुन की हिंदी कविता
Nagaarjun Poems On Indian Politics
शासन की बंदूक
खड़ी हो गई चांपकर कंकालों की हूक |
नभ में विपुल विराट-सी शासन की बंदूक ||
उस हिटलरी गुमान पर सभी रहे हैं थूक |
जिसमें कानी हो गई शासन की बंदूक ||
बढ़ी बधिरता दस गुनी, बने विनोबा मूक |
धन्य-धन्य वह, धन्य वह, शासन की बंदूक ||
सत्य स्वयं घायल हुआ, गई अहिंसा चूक |
जहां-तहां दगने लगी शासन की बंदूक ||
जली ठूंठ पर बैठकर गई कोकिला कूक |
बाल न बांका कर सकी शासन की बंदूक ||
बाकी बच गया अंडा
पांच पूत भारतमाता के, दुश्मन था खूंखार |
गोली खाकर एक मर गया, बाकी रह गए चार ||
चार पूत भारतमाता के, चारों चतुर-प्रवीन |
देश-निकाला मिला एक को, बाकी रह गए तीन ||
तीन पूत भारतमाता के, लड़ने लग गए वो |
अलग हो गया उधर एक, अब बाकी बच गए दो ||
दो बेटे भारतमाता के, छोड़ पुरानी टेक |
चिपक गया है एक गद्दी से, बाकी बच गया एक ||
एक पूत भारतमाता का, कंधे पर है झंडा |
पुलिस पकड़कर जेल ले गई, बाकी बच गया अंडा ||
अब तक छिपे हुए थे, उनके दांत और नाखून,
संस्कृति की भट्ठी में कच्चा गोश्त रहे थे भून |
छांट रहे थे अब तक बस वे बड़े-बड़े कानून,
नहीं किसी को दिखता था दूधिया वस्त्र पर खून ||
अब तक छिपे हुए थे, उनके दांत और नाखून,
संस्कृति की भट्ठी में कच्चा गोश्त रहे थे भून |
मायावी हैं, बड़े घाघ हैं, उन्हें न समझो मंद,
तक्षक ने सिखलाये उनको ‘सर्प-नृत्य’ के छंद ||
अजी, समझ लो उनका अपना नेता था जयचंद,
हिटलर के तंबू में अब वे लगा रहे पैबंद |
मायावी हैं, बड़े घाघ हैं, उन्हें न समझो मंद ||
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