गगन में लहरता है भगवा हमारा
Gagan Me Leharta Hai Bhagwa Hamara
|| अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी कविता ||
|| अटल बिहारी वाजपेयी देशभक्ति कविता ||
गगन मे लहरता है भगवा ...
घिरे घोर घन दासताँ के भयंकर,
गवाँ बैठे सर्वस्व आपस में लड़कर |
बुझे दीप घर-घर हुआ शून्य अंबर,
निराशा निशा ने जो डेरा जमाया ||
ये जयचंद के द्रोह का दुष्ट फल है,
जो अब तक अंधेरा सबेरा न आया |
मगर घोर तम में, पराजय के गम में, विजय की विभा ले,
अंधेरे गगन में, उषा के वसन दुष्मनो के नयन में,
चमकता रहा पूज्य भगवा हमारा ॥१॥
भगावा है पद्मिनी के जौहर की ज्वाला,
मिटाती अमावस लुटाती उजाला |
नया एक इतिहास क्या रच न डाला,
चिता एक जलने हजारों खड़ी थी ||
पुरुष तो मिटे नारियाँ सब हवन की,
समिध बन ननल के पगों पर चढी थी |
मगर जौहरों में घिरे कोहरो में,
धुएँ के घनो में कि बलि के क्षणों में,
धधकता रहा पूज्य भगवा हमारा ॥२॥
मिटे देवता मिट गए शुभ्र मंदिर,
लुटी देवियाँ लुट गए सब नगर-घर |
स्वयं फूट की अग्नि में घर जलाकर,
पुरस्कार हाथों में लोंहे की कडियाँ ||
कपूतों की माता खड़ी आज भी है,
भरें अपनी आंखो में आंसू की लड़ियाँ |
मगर दासताँ के भयानक भँवर में, पराजय समर में,
आखिरी क्षणों तक शुभाशा बंधाता, कि इच्छा जगाता,
कि सब कुछ लुटाकर ही सब कुछ दिलाने,
बुलाता रहा प्राण भगवा हमारा ॥३॥
कभी थे अकेले हुए आज इतने,
नही तब डरे तो भला अब डरेंगे |
विरोधों के सागर में चट्टान है हम,
जो टकराएंगे मौत अपनी मरेंगे ||
लिया हाथ में ध्वज कभी न झुकेगा,
कदम बढ रहा है कभी न रुकेगा |
न सूरज के सम्मुख अंधेरा टिकेगा,
निडर है सभी हम अमर है सभी हम,
के सर पर हमारे वरदहस्त करता,
गगन में लहरता है भगवा हमारा ॥४॥
-
अटल बिहारी वाजपेयी
अमर आग है ( 1994 )
|| अटल जी की कविताएं ||
|| वाजपेयी जी देशभक्ति कविता ||
गगन में लहरता है भगवा हमारा - Gagan Me Leharta Hai Bhagwa Hamara