पड़ोसी से — अटल बिहारी वाजपेयी | देशभक्ति कविता (Full Poem, Meaning & Video)
“पड़ोसी से” अटल बिहारी वाजपेयी जी की एक ऐसी देशभक्ति कविता है जो भारत की अडिग स्वतंत्रता, आत्मसम्मान और दृढ़ संकल्प का प्रतीक है। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री वाजपेयी जी न केवल राजनेता थे, बल्कि राष्ट्र के कवि भी — जिनके शब्द देश के हृदय की धड़कन बनते हैं।
इस कविता में वे पाकिस्तान को संबोधित करते हुए कहते हैं कि भारत शांति चाहता है, पर किसी भी कीमत पर अपने सम्मान से समझौता नहीं करेगा। यह कविता राष्ट्र की आत्मा से संवाद करती है और देशभक्ति का अद्भुत उदाहरण है।
पड़ोसी से कविता (Padosi Se Poem Lyrics)
"मस्तक नहीं झुकेगा"
एक नहीं दो नहीं करो बीसों समझौते,
पर स्वतन्त्र भारत का मस्तक नहीं झुकेगा।
एक नहीं दो नहीं करो बीसों समझौते,
पर स्वतन्त्र भारत का मस्तक नहीं झुकेगा।
"अगणित बलिदानों से अर्जित यह स्वतन्त्रता"
अगणित बलिदानों से अर्जित यह स्वतन्त्रता,
अश्रु, स्वेद, शोणित से सिंचित यह स्वतन्त्रता।
त्याग, तेज, तपबल से रक्षित यह स्वतन्त्रता,
दु:खी मनुजता के हित अर्पित यह स्वतन्त्रता।
इसे मिटाने की साजिश करने वालों से कह दो,
चिनगारी का खेल बुरा होता है ।
औरों के घर आग लगाने का जो सपना,
वो अपने ही घर में सदा खड़ा होता है।
अपने ही हाथों तुम अपनी कब्र ना खोदो,
अपने पैरों आप कुल्हाडी नहीं चलाओ।
ओ नादान पड़ोसी अपनी आँखें खोलो,
आजादी अनमोल ना इसका मोल लगाओ।
पर तुम क्या जानो आजादी क्या होती है?
तुम्हें मुफ़्त में मिली न कीमत गयी चुकाई।
अंग्रेजों के बल पर दो टुकड़े पाये हैं,
माँ को खंडित करते तुमको लाज ना आई?
अमरीकी शस्त्रों से अपनी आजादी को
दुनिया में कायम रख लोगे, यह मत समझो।
दस बीस अरब डालर लेकर आने वाली बरबादी से
तुम बच लोगे यह मत समझो।
धमकी, जिहाद के नारों से, हथियारों से
कश्मीर कभी हथिया लोगे यह मत समझो।
हमलों से, अत्याचारों से, संहारों से
भारत का शीश झुका लोगे यह मत समझो।
जब तक गंगा में धार, सिंधु में ज्वार,
अग्नि में जलन, सूर्य में तपन शेष,
स्वातन्त्र्य समर की वेदी पर अर्पित होंगे
अगणित जीवन यौवन अशेष।
अमरीका क्या संसार भले ही हो विरुद्ध,
काश्मीर पर भारत का सर नहीं झुकेगा
एक नहीं दो नहीं करो बीसों समझौते,
पर स्वतन्त्र भारत का निश्चय नहीं रुकेगा ।
"पड़ोसी से" कविता पाठ (Video)
कविता का भावार्थ और सारांश
“पड़ोसी से” केवल कविता नहीं, बल्कि यह भारत की संकल्पशक्ति, त्याग और बलिदान की जीवंत गाथा है। वाजपेयी जी हमें याद दिलाते हैं कि आज़ादी केवल उपहार नहीं, बल्कि वह विरासत है जिसकी रक्षा हर भारतीय का धर्म है।
यह कविता पाकिस्तान को संदेश देती है कि भारत शांति चाहता है, लेकिन किसी कीमत पर झुकेगा नहीं। यह शांति, स्वाभिमान और राष्ट्रीय एकता की अमर पुकार है।