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मातृभाषा का महोत्सव - Matribhasha Ka Mahatva | Hindi Diwas Par Kavita

Atal Ji Ki Nature Par Hindi Kavita - Nature Hindi Kavita | हरी हरी दूब पर - अटल बिहारी वाजपेयी

Atal Ji Ki Nature Par Hindi Kavita - Nature Hindi Kavita

हरी-हरी दूब पर

 Atal Bihari Vajpayee Hindi Poems

Nature Hindi Kavita

हरी-हरी दूब पर
ओस की बूंदे
अभी थी,
अभी नहीं हैं।
ऐसी खुशियाँ
जो हमेशा हमारा साथ दें
कभी नहीं थी,
कहीं नहीं हैं। 

|| Atal Bihari Vajpayee Hindi Poems ||  || Atal Ji Ki Hindi Kavita ||


क्काँयर की कोख से
फूटा बाल सूर्य,
जब पूरब की गोद में
पाँव फैलाने लगा,
तो मेरी बगीची का
पत्ता-पत्ता जगमगाने लगा,
मैं उगते सूर्य को नमस्कार करूँ
या उसके ताप से भाप बनी,
ओस की बुँदों को ढूंढूँ? 

सूर्य एक सत्य है
जिसे झुठलाया नहीं जा सकता
मगर ओस भी तो एक सच्चाई है
यह बात अलग है कि ओस क्षणिक है
क्यों न मैं क्षण क्षण को जिऊँ?
कण-कण मेँ बिखरे सौन्दर्य को पिऊँ? 

|| Atal Bihari Vajpayee Hindi Poems ||  || Atal Ji Ki Hindi Kavita ||

सूर्य तो फिर भी उगेगा,
धूप तो फिर भी खिलेगी,
लेकिन मेरी बगीची की
हरी-हरी दूब पर,
ओस की बूंद
हर मौसम में नहीं मिलेगी।

-

अटल बिहारी वाजपेय

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 || Nature Hindi Poems ||

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