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साहित्यशाला कविता संग्रह: महाभारत, भक्ति, जीवन, प्रेम और प्रेरणा पर 100+ सर्वश्रेष्ठ कविताएँ

हुई है शाम तो आँखों में बस गया फिर तू - Hui Hai Sham To Aankhon Mein | Ahmad Faraz Ki Ghazal

हुई है शाम तो आँखों में बस गया फिर तू | Hui Hai Sham To Aankhon Mein

Ahmad Faraz Ki Ghazal | अहमद फ़राज़ ग़ज़लें

हुई है शाम तो आँखों में बस गया फिर तू 

कहाँ गया है मिरे शहर के मुसाफ़िर तू 

हुई है शाम तो आँखों में बस गया फिर तू - Hui Hai Sham To Aankhon Mein  अहमद फ़राज़ ग़ज़लें

मिरी मिसाल कि इक नख़्ल-ए-ख़ुश्क-ए-सहरा हूँ 

तिरा ख़याल कि शाख़-ए-चमन का ताइर तू 


मैं जानता हूँ कि दुनिया तुझे बदल देगी 

मैं मानता हूँ कि ऐसा नहीं ब-ज़ाहिर तू 


हँसी-ख़ुशी से बिछड़ जा अगर बिछड़ना है 

ये हर मक़ाम पे क्या सोचता है आख़िर तू 


फ़ज़ा उदास है रुत मुज़्महिल है मैं चुप हूँ 

जो हो सके तो चला आ किसी की ख़ातिर तू 


'फ़राज़' तू ने उसे मुश्किलों में डाल दिया 

ज़माना साहब-ए-ज़र और सिर्फ़ शाएर तू |

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अहमद फ़राज़

हुई है शाम तो आँखों में बस गया फिर तू - Hui Hai Sham To Aankhon Mein  अहमद फ़राज़ ग़ज़लें

Hui Hai Sham To Aankhon Mein Bas Gaya Phir Tu


huī hai shaam to āñkhoñ meñ bas gayā phir tū 

kahāñ gayā hai mire shahr ke musāfir tū


mirī misāl ki ik naḳhl-e-ḳhushk-e-sahrā huuñ 

tirā ḳhayāl ki shāḳh-e-chaman kā taa.ir tū 


maiñ jāntā huuñ ki duniyā tujhe badal degī 

maiñ māntā huuñ ki aisā nahīñ ba-zāhir tū 


hañsī-ḳhushī se bichhaḌ jā agar bichhaḌnā hai 

ye har maqām pe kyā sochtā hai āḳhir tū 


fazā udaas hai rut muzmahil hai maiñ chup huuñ 

jo ho sake to chalā aa kisī kī ḳhātir tū 


'farāz' tū ne use mushkiloñ meñ Daal diyā 

zamāna sāhab-e-zar aur sirf shā.er tū 

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महाभारत पर रोंगटे खड़े कर देने वाली हिंदी कविता - Mahabharata Poem On Arjuna

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Aadmi Chutiya Hai Song Lyrics - फूलों की लाशों में ताजगी चाहता है, आदमी चूतिया है | Rahgir Song Lyrics

Aadmi Chutiya Hai Song Lyrics फूलों की लाशों में ताजगी चाहता है, आदमी चूतिया है फूलों की लाशों में ताजगी चाहता है फूलों की लाशों में ताजगी ताजगी चाहता है आदमी चूतिया है, कुछ भी चाहता है फूलों की लाशों में ज़िंदा है तो आसमान में उड़ने की ज़िद है ज़िंदा है तो आसमान में उड़ने की ज़िद है मर जाए तो मर जाए तो सड़ने को ज़मीं चाहता है आदमी चूतिया है काट के सारे झाड़-वाड़, मकाँ मकाँ बना लिया खेत में सीमेंट बिछा कर ज़मीं सजा दी, मार के कीड़े रेत में काट के सारे झाड़-वाड़, मकाँ बना लिया खेत में सीमेंट बिछा कर ज़मीं सजा दी, मार के कीड़े रेत में लगा के परदे चारों ओर क़ैद है चार दीवारी में मिट्टी को छूने नहीं देता, मस्त है किसी खुमारी में मस्त है किसी खुमारी में और वो ही बंदा अपने घर के आगे आगे नदी चाहता है आदमी चूतिया है टाँग के बस्ता, उठा के तंबू जाए दूर पहाड़ों में वहाँ भी डीजे, दारू, मस्ती, चाहे शहर उजाड़ों में टाँग के बस्ता, उठा के तंबू जाए दूर पहाड़ों में वहाँ भी डीजे, दारू, मस्ती, चाहे शहर उजाड़ों में फ़िर शहर बुलाए उसको तो जाता है छोड़ तबाही पीछे कुदरत को कर दाग़दार सा, छोड़ के अपनी स्याही पीछे छोड़ के अपनी स्याही ...

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