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Wo Aadmi Nahi Hai Mukammal Bayan Hai - वो आदमी नहीं है मुकम्मल बयान है | दुष्यंत कुमार

Wo Aadmi Nahi Hai Mukammal Bayan Hai - वो आदमी नहीं है मुकम्मल बयान है

दुष्यंत कुमार की ग़ज़ल

वो आदमी नहीं है मुकम्मल बयान है 

माथे पे उस के चोट का गहरा निशान है 

Wo Aadmi Nahi Hai Mukammal Bayan Hai - वो आदमी नहीं है मुकम्मल बयान है  दुष्यंत कुमार

वो कर रहे हैं इश्क़ पे संजीदा गुफ़्तुगू 

मैं क्या बताऊँ मेरा कहीं और ध्यान है 


सामान कुछ नहीं है फटे-हाल है मगर 

झोले में उस के पास कोई संविधान है 


उस सर-फिरे को यूँ नहीं बहला सकेंगे आप 

वो आदमी नया है मगर सावधान है 


फिस्ले जो उस जगह तो लुढ़कते चले गए 

हम को पता नहीं था कि इतनी ढलान है 


देखे हैं हम ने दौर कई अब ख़बर नहीं 

पावँ तले ज़मीन है या आसमान है 


वो आदमी मिला था मुझे उस की बात से 

ऐसा लगा कि वो भी बहुत बे-ज़बान है 

-

दुष्यंत कुमार

Wo Aadmi Nahi Hai Mukammal Bayan Hai - वो आदमी नहीं है मुकम्मल बयान है | दुष्यंत कुमार

Wo Aadmi Nahi Hai Mukammal Bayan Hai - वो आदमी नहीं है मुकम्मल बयान है

दुष्यंत कुमार की ग़ज़ल

vo aadmī nahīñ hai mukammal bayān hai

māthe pe us ke choT kā gahrā nishān hai 


vo kar rahe haiñ ishq pe sanjīda guftugū 

maiñ kyā batā.ūñ merā kahīñ aur dhyān hai 


sāmān kuchh nahīñ hai phaTe-hāl hai magar 

jhole meñ us ke paas koī samvidhān hai 


us sar-phire ko yuuñ nahīñ bahlā sakeñge aap 

vo aadmī nayā hai magar sāvdhān hai


phisle jo us jagah to luḌhakte chale ga.e 

ham ko pata nahīñ thā ki itnī Dhalān hai 


dekhe haiñ ham ne daur ka.ī ab ḳhabar nahīñ 

paaoñ tale zamīn hai yā āsmān hai 

Wo Aadmi Nahi Hai Mukammal Bayan Hai - वो आदमी नहीं है मुकम्मल बयान है  दुष्यंत कुमार

vo aadmī milā thā mujhe us kī baat se 

aisā lagā ki vo bhī bahut be-zabān hai 

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Aadmi Chutiya Hai Song Lyrics - फूलों की लाशों में ताजगी चाहता है, आदमी चूतिया है | Rahgir Song Lyrics

Aadmi Chutiya Hai Song Lyrics फूलों की लाशों में ताजगी चाहता है, आदमी चूतिया है फूलों की लाशों में ताजगी चाहता है फूलों की लाशों में ताजगी ताजगी चाहता है आदमी चूतिया है, कुछ भी चाहता है फूलों की लाशों में ज़िंदा है तो आसमान में उड़ने की ज़िद है ज़िंदा है तो आसमान में उड़ने की ज़िद है मर जाए तो मर जाए तो सड़ने को ज़मीं चाहता है आदमी चूतिया है काट के सारे झाड़-वाड़, मकाँ मकाँ बना लिया खेत में सीमेंट बिछा कर ज़मीं सजा दी, मार के कीड़े रेत में काट के सारे झाड़-वाड़, मकाँ बना लिया खेत में सीमेंट बिछा कर ज़मीं सजा दी, मार के कीड़े रेत में लगा के परदे चारों ओर क़ैद है चार दीवारी में मिट्टी को छूने नहीं देता, मस्त है किसी खुमारी में मस्त है किसी खुमारी में और वो ही बंदा अपने घर के आगे आगे नदी चाहता है आदमी चूतिया है टाँग के बस्ता, उठा के तंबू जाए दूर पहाड़ों में वहाँ भी डीजे, दारू, मस्ती, चाहे शहर उजाड़ों में टाँग के बस्ता, उठा के तंबू जाए दूर पहाड़ों में वहाँ भी डीजे, दारू, मस्ती, चाहे शहर उजाड़ों में फ़िर शहर बुलाए उसको तो जाता है छोड़ तबाही पीछे कुदरत को कर दाग़दार सा, छोड़ के अपनी स्याही पीछे छोड़ के अपनी स्याही ...

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