बूढ़े पेड़ का दुख - Boodhe Ped Ka Dukh
Nature Par Hindi Kavitayein
प्रकृति सिर्फ देखने की चीज़ नहीं, महसूस करने की चीज़ है।
छांव में जिसकी खेले बचपन,
जिसकी छाया में बीते जीवन,
आज वही पेड़ खड़ा अकेला,
बता रहा है अपना मन का ग़म।
टहनी-टहनी बिखरी स्मृति,
पत्तों में छुपी हैं कहानियाँ कितनी।
कभी था वह गाँव की शान,
अब अनदेखा, जैसे अनजान।
जड़ें कहती हैं, “मैंने सींचा,
हर धूप-छांव में तुमको सीखा।
फिर क्यों आज तुम भूल गए,
मुझसे मुँह मोड़ दूर हो गए?”
न खेलते अब बच्चे झूले,
न कोई थक कर आ बैठता है।
कभी जिस तने से लगते थे दिल,
अब उसी पे कुल्हाड़ी चलती है।
कहता है पेड़ —
"मैं बूढ़ा हूँ, पर जीवित हूँ,
हर पत्ता अब भी कविता लिखता है।
मुझे मत काटो, मत ठुकराओ,
मैं तुम्हारे कल के लिए जीता हूँ।"
– डॉ. मुल्ला अदम अली
तिरुपति, आंध्र प्रदेश
संक्षिप्त लेखक परिचय;
नाम : डॉ. मुल्ला आदम अली
शिक्षा : एम.ए., पीएच.डी., डी.एफ़.ए.च एण्ड टी., एचपीटी
प्रकाशन : "मेरी अपनी कविताएं" "हिंदी कथा-साहित्य में देश-विभाजन की त्रासदी और सांप्रदायिकता" "युग निर्माता प्रेमचंद और उनका साहित्य", 24 राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लेख प्रकाशित, 30 से ज्यादा राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सेमिनार में भाग लिया गया है, कई पत्र-पत्रिकाओं में कहानियां और कविताएं प्रकाशित।
पुरस्कार व सम्मान : एंटी करप्शन फाउन्डेशन द्वारा “नेशनल एजुकेशन आइकन अवॉर्ड – 2019”
सोसाइटी फॉर यूथ डेवलेपमेंट द्वारा “स्वामी विवेकानंद युवा सम्मान – 2019”, विश्व संवाद परिषद की ओर से हिंदी साहित्य एवं काव्य सभा (प्रकोष्ठ) के लिए अवैतनिक प्रदेश अध्यक्ष (आंध्र प्रदेश) 2021.
काश! मैं वृक्ष होता - Kaash..! Mai Vriksh Hota

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