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मातृभाषा का महोत्सव - Matribhasha Ka Mahatva | Hindi Diwas Par Kavita

बूढ़े पेड़ का दुख - Boodhe Ped Ka Dukh | Nature Par Hindi Kavitayein

बूढ़े पेड़ का दुख - Boodhe Ped Ka Dukh Nature Par Hindi Kavitayein छांव में जिसकी खेले बचपन, जिसकी छाया में बीते जीवन, आज वही पेड़ खड़ा अकेला, बता रहा है अपना मन का ग़म। टहनी-टहनी बिखरी स्मृति, पत्तों में छुपी हैं कहानियाँ कितनी। कभी था वह गाँव की शान, अब अनदेखा, जैसे अनजान। जड़ें कहती हैं, “मैंने सींचा, हर धूप-छांव में तुमको सीखा। फिर क्यों आज तुम भूल गए, मुझसे मुँह मोड़ दूर हो गए?” न खेलते अब बच्चे झूले, न कोई थक कर आ बैठता है। कभी जिस तने से लगते थे दिल, अब उसी पे कुल्हाड़ी चलती है। कहता है पेड़ — "मैं बूढ़ा हूँ, पर जीवित हूँ, हर पत्ता अब भी कविता लिखता है। मुझे मत काटो, मत ठुकराओ, मैं तुम्हारे कल के लिए जीता हूँ।" – डॉ. मुल्ला अदम अली तिरुपति, आंध्र प्रदेश संक्षिप्त लेखक परिचय; नाम : डॉ. मुल्ला आदम अली शिक्षा : एम.ए., पीएच.डी., डी.एफ़.ए.च एण्ड टी., एचपीटी प्रकाशन : "मेरी अपनी कविताएं" "हिंदी कथा-साहित्य में देश-विभाजन की त्रासदी और सांप्रदायिकता" "युग निर्माता प्रेमचंद और उनका साहित्य", 24 राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लेख प्रकाशित, 30 से...

Adhikar - अधिकार | Nature Poems In Hindi | Hindi Nature Poems | वे मुस्काते फूल...

 अधिकार - Adhikar Nature Poems In Hindi Hindi Nature Poems वे मुस्काते फूल, नहीं जिनको आता है मुर्झाना, वे तारों के दीप, नहीं जिनको भाता है बुझ जाना; वे नीलम के मेघ, नहीं जिनको है घुल जाने की चाह वह अनन्त रितुराज, नहीं जिसने देखी जाने की राह; वे सूने से नयन, नहीं जिनमें बनते आँसू मोती, वह प्राणों की सेज, नही जिसमें बेसुध पीड़ा सोती; ऐसा तेरा लोक, वेदना नहीं, नहीं जिसमें अवसाद, जलना जाना नहीं, नहीं जिसने जाना मिटने का स्वाद! क्या अमरों का लोक मिलेगा तेरी करुणा का उपहार? रहने दो हे देव! अरे यह मेरा मिटने का अधिकार!

Poem On Nature In Hindi By Famous Poets | Hindi Poem Of Nature - कदंब का पेड़ | Kadamb Ka Ped Nature Poem

 Poem On Nature In Hindi By Famous Poets | Hindi Poem Of Nature कदंब का पेड़ | Kadamb Ka Ped Nature Poem Kadamb Ka Ped Hindi Kavita यह कदंब का पेड़ अगर माँ यह  कदंब  का पेड़ अगर माँ , होता यमुना तीरे , में भी उसपर बैठ  कन्हैया  बनता धीरे – धीरे। ले देती यदि मुझे बांसुरी तुम दो पैसे वाली , किसी तरह नीची हो जाती यह कदंब की डाली। तुम्हे नहीं कुछ कहता पर में चुपके – चुपके आता उस नीची डाली से अम्मा ऊँचे पर चढ़ जाता। वहीं बैठ फिर बड़े मजे से में बांसुरी बजाता अम्मा – अम्मा कह  वंशी  के स्वर में तुम्हे बुलाता। बहुत बुलाने पर भी माँ जब नहीं उतर कर आता माँ , तब माँ का  हृदय  तुम्हारा बहुत विकल हो जाता। तुम आँचल फैला का अम्मा वहीं पेड़ के निचे ईश्वर  से कुछ विनती करतीं बैठी आँखे मींचे।

Atal Ji Ki Nature Par Hindi Kavita - Nature Hindi Kavita | हरी हरी दूब पर - अटल बिहारी वाजपेयी

Atal Ji Ki Nature Par Hindi Kavita - Nature Hindi Kavita हरी-हरी दूब पर  Atal Bihari Vajpayee Hindi Poems Nature Hindi Kavita हरी-हरी दूब पर ओस की बूंदे अभी थी, अभी नहीं हैं। ऐसी खुशियाँ जो हमेशा हमारा साथ दें कभी नहीं थी, कहीं नहीं हैं।  क्काँयर की कोख से फूटा बाल सूर्य, जब पूरब की गोद में पाँव फैलाने लगा, तो मेरी बगीची का पत्ता-पत्ता जगमगाने लगा, मैं उगते सूर्य को नमस्कार करूँ या उसके ताप से भाप बनी, ओस की बुँदों को ढूंढूँ?  सूर्य एक सत्य है जिसे झुठलाया नहीं जा सकता मगर ओस भी तो एक सच्चाई है यह बात अलग है कि ओस क्षणिक है क्यों न मैं क्षण क्षण को जिऊँ? कण-कण मेँ बिखरे सौन्दर्य को पिऊँ?  सूर्य तो फिर भी उगेगा, धूप तो फिर भी खिलेगी, लेकिन मेरी बगीची की हरी-हरी दूब पर, ओस की बूंद हर मौसम में नहीं मिलेगी। - अटल बिहारी वाजपेय   ==> पहचान <==   ==> कदम मिलाकर चलना होगा <==   ==> पड़ोसी से <==  || Nature Hindi Poems || || Prakriti Par Hindi Kavita ||

Hindi Poems On Parivartan - परिवर्तन पर कविता | Parivartan Par Kavita

Hindi Poems On Parivartan | Parivartan Par Kavita परिवर्तन परिवर्तन   स्वाभाविक काल चक्र का वरदान हैं| सामाजिक जीवन ऋतु में परिवर्तन ही उपादान हैं||   नियम सुना है प्रकृति का, परिवर्तन इसका नाम है। हर युग से पहले आता, प्रकृति का ईनाम है ||   हर नव-निर्माण से पहले, खंडहर ढाये जाते है। हर नव-जीवन आने से पहले, हम पीड़ा ही पाते है।।   अमृत के आने से पहले, हलाहल ही तो आता है। सृष्टि के निर्माण से पहले, काल गीत कुछ गाता है ||   स्वयं बना विध्वंसक मानव, खुद ही का घर जलाता है। अपनी ही मूर्खता से, तांडव को स्वयं को बुलाता है।।   वृक्षों को वो रहा उखाड़, औरों का जीवन रहा उजाड़ | अपने स्वार्थ के लिए मानव, विश्व के साथ कर रहा खिलवाड़ ||   जनसंख्या का विस्फोट हो , या हो कूड़ा दाह संस्कार | जन्म देने वाली माँ पर, हम कर रहे है अत्याचार ||   आ-गया दौर बड़ा विकराल , मौत खड़ी है रूप विशाल । कल ज्योति देता था जो दीपक, जला रहा बन धधकती मशाल।।   केवल एक विषाणु ने, लाखों को है मार ...

NATURE POEMS IN HINDI - तुम कब तक टिक सकोगे ? | Nature Poems Hindi

 NATURE POEMS IN HINDI NATURE PAR HINDI KAVITAYEN  तुम कब तक टिक सकोगे ? खेल कुदरत के साथ है,  तुम कितनी देर टिक सकोगे? यह हलाहल   तुल्य विष है, तुम कब तक पी सकोगे?  चुनौती तुमने दी है माँ को,  पैर पर खड़े रह सकोगे?  इस खुद्दारी की राह पर, तुम कब तक टिक सकोगे?  माफ़ी धर्म है हमारी, माँ माफ़ी दे सकेगी, पर बार-बार इस श्राप को, कितने बरस सह सकेगी?  NATURE POEMS IN HINDI NATURE PAR HINDI KAVITAYEN  एक विषाणु ने आज, लाखों मनुष्यों को मार दिया, अगर दो-चार और आ गए , तुम कितनी देर टिक सकोगे ?  यह झलक है, पूरी पुस्तक नहीं? राह फिर से चुन सकोगे, यह भगवान है, माँ का आंचल नहीं, तुम कब तक टिक सकोगे?  अभी माफ़ी मांग लो, तुम अपनी ही माँ से लड़ोगे ? इस कुदरत के खेल में, तुम अब तक टिक सकोगे? - हर्ष नाथ झा  NATURE POEMS IN HINDI NATURE PAR HINDI KAVITAYEN

Famous Poems

सादगी तो हमारी जरा देखिये | Saadgi To Hamari Zara Dekhiye Lyrics | Nusrat Fateh Ali Khan Sahab

Saadgi To Hamari Zara Dekhiye Lyrics सादगी तो हमारी जरा देखिये   सादगी तो हमारी जरा देखिये,  एतबार आपके वादे पे कर लिया | मस्ती में इक हसीं को ख़ुदा कह गए हैं हम,  जो कुछ भी कह गए वज़ा कह गए हैं हम  || बारस्तगी तो देखो हमारे खुलूश कि,  किस सादगी से तुमको ख़ुदा कह गए हैं हम || किस शौक किस तमन्ना किस दर्ज़ा सादगी से,  हम करते हैं आपकी शिकायत आपही से || तेरे अताब के रूदाद हो गए हैं हम,  बड़े खलूस से बर्बाद हो गए हैं हम ||

महाभारत पर रोंगटे खड़े कर देने वाली हिंदी कविता - Mahabharata Poem On Arjuna

|| महाभारत पर रोंगटे खड़े कर देने वाली कविता || || Mahabharata Poem On Arjuna ||   तलवार, धनुष और पैदल सैनिक कुरुक्षेत्र में खड़े हुए, रक्त पिपासु महारथी इक दूजे सम्मुख अड़े हुए | कई लाख सेना के सम्मुख पांडव पाँच बिचारे थे, एक तरफ थे योद्धा सब, एक तरफ समय के मारे थे | महा-समर की प्रतिक्षा में सारे ताक रहे थे जी, और पार्थ के रथ को केशव स्वयं हाँक रहे थे जी ||    रणभूमि के सभी नजारे देखन में कुछ खास लगे, माधव ने अर्जुन को देखा, अर्जुन उन्हें  उदास लगे | कुरुक्षेत्र का महासमर एक पल में तभी सजा डाला, पांचजन्य  उठा कृष्ण ने मुख से लगा बजा डाला | हुआ शंखनाद जैसे ही सब का गर्जन शुरु हुआ, रक्त बिखरना हुआ शुरु और सबका मर्दन शुरु हुआ | कहा कृष्ण ने उठ पार्थ और एक आँख को मीच जड़ा, गाण्डिव पर रख बाणों को प्रत्यंचा को खींच जड़ा | आज दिखा दे रणभूमि में योद्धा की तासीर यहाँ, इस धरती पर कोई नहीं, अर्जुन के जैसा वीर यहाँ ||    सुनी बात माधव की तो अर्जुन का चेहरा उतर गया, ...

सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है - Sach Hai Vipatti Jab Aati Hai

  सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है रामधारी सिंह "दिनकर" हिंदी कविता दिनकर की हिंदी कविता Sach Hai Vipatti Jab Aati Hai सच है, विपत्ति जब आती है, कायर को ही दहलाती है, शूरमा नहीं विचलित होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते, विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं। मुख से न कभी उफ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं, जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग-निरत नित रहते हैं, शूलों का मूल नसाने को, बढ़ खुद विपत्ति पर छाने को। है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके वीर नर के मग में ? खम ठोंक ठेलता है जब नर , पर्वत के जाते पाँव उखड़। मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है । Sach Hai Vipatti Jab Aati Hai गुण बड़े एक से एक प्रखर, हैं छिपे मानवों के भीतर, मेंहदी में जैसे लाली हो, वर्तिका-बीच उजियाली हो। बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है। पीसा जाता जब इक्षु-दण्ड , झरती रस की धारा अखण्ड , मेंहदी जब सहती है प्रहार, बनती ललनाओं का सिंगार। जब फूल पिरोये जाते हैं, हम उनको गले लगाते हैं। वसुधा का नेता कौन हुआ? भूखण्ड-विजेता कौन हुआ ? अतुलित यश क्रेता कौन हुआ? नव-धर्म प्...

Kahani Karn Ki Poem Lyrics By Abhi Munde (Psycho Shayar) | कहानी कर्ण की - Karna Par Hindi Kavita

Kahani Karn Ki Poem Lyrics By Psycho Shayar   कहानी कर्ण की - Karna Par Hindi Kavita पांडवों  को तुम रखो, मैं  कौरवों की भी ड़ से , तिलक-शिकस्त के बीच में जो टूटे ना वो रीड़ मैं | सूरज का अंश हो के फिर भी हूँ अछूत मैं , आर्यवर्त को जीत ले ऐसा हूँ सूत पूत मैं |   कुंती पुत्र हूँ, मगर न हूँ उसी को प्रिय मैं, इंद्र मांगे भीख जिससे ऐसा हूँ क्षत्रिय मैं ||   कुंती पुत्र हूँ, मगर न हूँ उसी को प्रिय मैं, इंद्र मांगे भीख जिससे ऐसा हूँ क्षत्रिय मैं ||   आओ मैं बताऊँ महाभारत के सारे पात्र ये, भोले की सारी लीला थी किशन के हाथ सूत्र थे | बलशाली बताया जिसे सारे राजपुत्र थे, काबिल दिखाया बस लोगों को ऊँची गोत्र के ||   सोने को पिघलाकर डाला शोन तेरे कंठ में , नीची जाती हो के किया वेद का पठंतु ने | यही था गुनाह तेरा, तू सारथी का अंश था, तो क्यों छिपे मेरे पीछे, मैं भी उसी का वंश था ?   यही था गुनाह तेरा, तू सारथी का अंश था, तो क्यों छिपे मेरे पीछे, मैं भी उसी का वंश था ? ऊँच-नीच की ये जड़ वो अहंकारी द्रोण था, वीरों की उसकी सूची में, अर्...

Dar Pe Sudama Garib Aa Gaya Hai Lyrics | दर पे सुदामा गरीब आ गया है

Dar Pe Sudama Garib Aa Gaya Hai Lyrics दर पे सुदामा गरीब आ गया है  लिरिक्स देखो देखो ये गरीबी, ये गरीबी का हाल । कृष्ण के दर पे, विश्वास लेके आया हूँ ।। मेरे बचपन का यार है, मेरा श्याम । यही सोच कर मैं, आस कर के आया हूँ ।। अरे द्वारपालों, कन्हैया से कह दो । अरे द्वारपालों, कन्हैया से कह दो ।। के दर पे सुदामा, गरीब आ गया है । के दर पे सुदामा, गरीब आ गया है ।। भटकते भटकते, ना जाने कहां से । भटकते भटकते, ना जाने कहां से ।। तुम्हारे महल के, करीब आ गया है । तुम्हारे महल के, करीब आ गया है ।। ना सर पे है पगड़ी, ना तन पे हैं जामा । बता दो कन्हैया को, नाम है सुदामा ।। Dar Pe Sudama Garib Aa Gaya Hai Lyrics दर पे सुदामा गरीब आ गया है  लिरिक्स बता दो कन्हैया को, नाम है सुदामा । बता दो कन्हैया को, नाम है सुदामा ।। ना सर पे है पगड़ी, ना तन पे हैं जामा । बता दो कन्हैया को, नाम है सुदामा ।। हो..ना सर पे है पगड़ी, ना तन पे हैं जामा । बता दो कन्हैया को, नाम है सुदामा ।। बता दो कन्हैया को । नाम है सुदामा ।। इक बार मोहन, से जाकर के कह दो । तुम इक बार मोहन, से जाकर के कह दो ।। के मिलने सखा, बदनसीब आ...