Mahadevi Verma Ji Ki Hindi Kavita महादेवी वर्मा जी की हिंदी कविता अतिथि से | Atithi Se बनबाला के गीतों सा निर्जन में बिखरा है मधुमास , इन कुंजों में खोज रहा है सूना कोना मन्द बतास। नीरव नभ के नयनों पर हिलतीं हैं रजनी की अलकें, जाने किसका पंथ देखतीं बिछ्कर फूलों की पलकें। मधुर चाँदनी धो जाती है खाली कुलियों के प्याले, बिखरे से हैं तार आज मेरी वीणा के मतवाले; पहली सी झंकार नहीं है और नहीं वह मादक राग, अतिथि! किन्तु सुनते जाओ टूटे तारों का करुण विहाग। - महादेवी वर्मा
|| महाभारत पर रोंगटे खड़े कर देने वाली कविता || || Mahabharata Poem On Arjuna || तलवार, धनुष और पैदल सैनिक कुरुक्षेत्र में खड़े हुए, रक्त पिपासु महारथी इक दूजे सम्मुख अड़े हुए | कई लाख सेना के सम्मुख पांडव पाँच बिचारे थे, एक तरफ थे योद्धा सब, एक तरफ समय के मारे थे | महा-समर की प्रतिक्षा में सारे ताक रहे थे जी, और पार्थ के रथ को केशव स्वयं हाँक रहे थे जी || रणभूमि के सभी नजारे देखन में कुछ खास लगे, माधव ने अर्जुन को देखा, अर्जुन उन्हें उदास लगे | कुरुक्षेत्र का महासमर एक पल में तभी सजा डाला, पांचजन्य उठा कृष्ण ने मुख से लगा बजा डाला | हुआ शंखनाद जैसे ही सब का गर्जन शुरु हुआ, रक्त बिखरना हुआ शुरु और सबका मर्दन शुरु हुआ | कहा कृष्ण ने उठ पार्थ और एक आँख को मीच जड़ा, गाण्डिव पर रख बाणों को प्रत्यंचा को खींच जड़ा | आज दिखा दे रणभूमि में योद्धा की तासीर यहाँ, इस धरती पर कोई नहीं, अर्जुन के जैसा वीर यहाँ || सुनी बात माधव की तो अर्जुन का चेहरा उतर गया, ...