उम्र गुज़रेगी इम्तिहान में क्या - जौन एलिया
|| John Elia Ghazal In Hindi ||
|| जौन एलिया की हिंदी ग़ज़ल ||
उम्र गुज़रेगी इम्तिहान में क्या ?
दाग़ ही देंगे मुझ को दान में क्या ?
दाग़ ही देंगे मुझ को दान में क्या ?
मेरी हर बात बे-असर ही रही,
नक़्स है कुछ मेरे बयान में क्या
मुझ को तो कोई टोकता भी नहीं,
यही होता है ख़ानदान में क्या |
अपनी महरूमियाँ छुपाते हैं,
हम ग़रीबों की आन-बान में क्या ?
ख़ुद को जाना जुदा ज़माने से,
आ गया था मेरे गुमान में क्या ?
शाम ही से दुकान-ए-दीद है बंद,
नहीं नुक़सान तक दुकान में क्या ?
ऐ मेरे सुब्ह-ओ-शाम-ए-दिल की शफ़क़,
तू नहाती है अब भी बान में क्या ?
बोलते क्यूँ नहीं मेरे हक़ में ?
आबले पड़ गए ज़बान में क्या ?
ख़ामोशी कह रही है कान में क्या ?
आ रहा है मेरे गुमान में क्या ?
दिल कि आते हैं जिस को ध्यान बहुत,
ख़ुद भी आता है अपने ध्यान में क्या ?
वो मिले तो ये पूछना है मुझे,
अब भी हूँ मैं तेरी अमान में क्या ?
यूँ जो तकता है आसमान को तू,
कोई रहता है आसमान में क्या ?
है नसीम-ए-बहार गर्द-आलूद,
ख़ाक उड़ती है उस मकान में क्या ?
ये मुझे चैन क्यूँ नहीं पड़ता,
एक ही शख़्स था जहान में क्या ?
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