भारतीय राजनीति के शिखर पुरुष और संवेदनशील कवि अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) की लेखनी में राष्ट्रप्रेम और वेदना दोनों का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। उनकी कविताएं केवल शब्द नहीं, बल्कि तत्कालीन समय का दस्तावेज हैं।
आज की यह कविता, "क्षमा करो बापू" (Kshama Karo Bapu), उस दौर की है जब देश राजनीतिक उथल-पुथल से गुजर रहा था। इसमें महात्मा गांधी (बापू) के आदर्शों के पतन पर गहरा क्षोभ और लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में नई उम्मीद की किरण दिखाई देती है। यह कविता हमें आत्मचिंतन करने पर विवश करती है।
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क्षमा करो बापू
Atal Bihari Vajpayee Hindi Poetry
क्षमा करो बापू! तुम हमको,
बचन भंग के हम अपराधी,
राजघाट को किया अपावन,
मंज़िल भूले, यात्रा आधी।
जयप्रकाश जी! रखो भरोसा,
टूटे सपनों को जोड़ेंगे।
चिताभस्म की चिंगारी से,
अन्धकार के गढ़ तोड़ेंगे।
कविता का भावार्थ (Meaning & Context)
यह कविता उस समय के राजनीतिक परिदृश्य पर एक करारा व्यंग्य है। 'राजघाट' (महात्मा गांधी की समाधि) का उल्लेख करते हुए अटल जी कहते हैं कि राजनेताओं ने गांधी जी के आदर्शों को भुलाकर देश को धोखा दिया है। "मंज़िल भूले, यात्रा आधी" पंक्ति दर्शाती है कि स्वतंत्रता तो मिली, लेकिन जिस 'रामराज्य' की कल्पना बापू ने की थी, वह यात्रा अभी अधूरी है।
कविता के दूसरे भाग में जयप्रकाश नारायण (JP) का उल्लेख एक नई क्रांति का संकेत है। अटल जी अंधकार के गढ़ को तोड़ने का संकल्प लेते हैं। यह कविता निराशा में आशा का गीत है।
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