Lekhak Hun...लेखक हूँ
कैसी मेरी शायरी है ?
मैं खुशी नहीं दे पाता हूँ
इस दुनिया के ज़हर में
और ज़हर घोल आता हूँ |
क्यों अपनी लेखनी को
मैं मोड़ नहीं सकता हूँ ?
क्यों हृदय की हर पीड़ा को
मैं छोड़ नहीं सकता हूँ ?
काव्य उल्लास के लिखना चाहता हूँ
प्रेम का इज़हार करना चाहता हूँ
ये ग़म तो मेरा साथी है
पर मैं प्यार करना चाहता हूँ |
हाँ ! कर्त्तव्य से बँधा हूँ मैं
देश की पुकार लिखने का
देश की मिट्टी पर
कई बार बिकने का |
शासन की प्रताड़ना का
मेरी लेखनी जवाब है
मेरी मोहब्बत से कहीं बड़ा
मेरे पुरखों का ख़्वाब है |
गुणगान इतिहास का सही है
पर मुझे सवाल उठाने हैं
देश के लिए लिखना होगा
कुछ रहस्य खुलवाने हैं |
अमृत आना तो बाकी है
हलाहल तो अब पीना है
न जिए अगर धरा के लिए
तो ये जीना कैसा जीना है ?
हाँ! किसी को विष तो पीना है
किसी को हर पल जीना है |
कैसी मेरी शायरी है ?
मैं खुशी नहीं दे पाता हूँ
इस दुनिया के ज़हर में
और ज़हर घोल आता हूँ |
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