Lal Bahadur Shastri Ji Par Hindi Kavita
था सर्वोपरि निज देश
विवेकशील, विद्वान वह
वरेण्य विख्यात विशेष
विपुल, विशिष्ट व्यक्ति वो
था सर्वोपरि निज देश |
जिन्होंने टूटते भारत को जोड़ा
कइयों का अभिमान तोड़ा था
माँ की लाज बचाई जिसने
विपरीत धाराओं को मोड़ा था |
जीवन के हर पहलू में
उसूलों को न छोड़ा था
कुछ कुपुत्रों के पथ पर
वो हिमगिरि-सा रोड़ा था |
Lal Bahadur Shastri Ji Par Hindi Kavita
Deshbhakti Hindi Kavita
था कद छोटा, काया दुर्बल
बुद्धि उनकी अत्यंत सबल
हर निर्णय में सत्य साथ था
सत्य की थी दृढ़ता प्रबल |
स्वप्न पुरखों के सजाये
वो कैसे बिखरने देता ?
कष्ट से माँ भारती को
वो कैसे बिलखने देता ?
हर आदर्श, हर दर्द को
वो कैसे बिसरने देता ?
क्षुधा से तड़पते भारत को
वो कैसे सिहरने देता ?
Lal Bahadur Shastri Ji Par Hindi Kavita
Deshbhakti Hindi Kavita
राजनीति के श्रेष्ठ पटल के
सिंघासन का मोहरा था
बस वो ही था जलता दीपक
जब हर तरफ वतन में कोहरा था |
कपट, कुटिलता, कटुता से जब
सबका मन-मुख दोहरा था
राजनीति के श्रेष्ठ पटल के
सिंघासन का मोहरा था |
आँख से आँख मिले विश्व से
कईयों को औकात दिखाई थी
छोड़ो जम्मू, पाक हथिया लो
हिम्मत क्या है, सिखाई थी |
Lal Bahadur Shastri Ji Par Hindi Kavita
Deshbhakti Hindi Kavita
उनके कहने पर हरित क्रांति
उनके कहने पर अन्न- त्याग था
उनके कहने पर युद्ध भी जीता
राजनीति का वही प्रयाग था ||
स्वाभिमान से जीना सीखा
उनसे सीखा बलिदान था
सादगी की शक्ति का
ख़ुद शास्त्री ही प्रमाण था |
उनके जैसा स्वार्थहीन, तब
धरा पे कोई इंसान नहीं था
देकर ख़ुद का पुत्र प्रिय
खुश तो ख़ुद भगवान नहीं था |
Lal Bahadur Shastri Ji Par Hindi Kavita
Deshbhakti Hindi Kavita
शिष्ट, शाश्वत, शौर्यशील
शांत, शत्रु-शैलेश
शिरोबिंदु, शालीन शुद्ध
था सर्वोपरि निज देश |
-
हर्ष नाथ झा